मुकेश कबीर
लता मंगेशकर को गए हुए ढाई साल हो गए हैं लेकिन आज भी वे उतनी ही मौजूद हैं,जितनी वे अपने जीवनकाल में हुआ करती थीं। अभी भी ऐसा कोई दिन नहीं जब कहीं न कहीं उनका कोई गाना सुनाई न देता हो और रेडियो की तो आज भी रानी लता जी हैं ही,रोज उनके गानों की फरमाइश होती है और खास बात यह है कि यह फरमाइशें नई पीढ़ी के लोग ज्यादा करते हैं। यह लता जी की गायकी की ही ताकत है। अभी कुछ दिनों से सोशल मीडिया में देखने में आ रहा है कि नई गायिकाएं लता जी को कॉपी करने में लगी हैं और एक अघोषित कंपीटिशन चल रहा है कि कौन बिल्कुल उनके जैसा गा सकती है और जिन एक दो गायिकाओं ने उनकी आवाज़ या गायकी को थोड़ा सा भी मैच किया हो उनको जमकर लाइक्स और व्यूज मिल रहे हैं।इसका मतलब है कि लोग आज भी लता जी को खोज रहे हैं लेकिन लता जी तो अकेली ही थीं।ऐसा महान कलाकार युग में कोई एक होता है लेकिन सदियों तक पीढ़ियों को प्रेरित करता है,लता जी भी यही कर रही हैं।
लता जी की गायकी के बारे में तो ज्यादातर लोग जानते ही हैं इसलिए उस बारे में कुछ और कहना तो अब सभी के लिए मुश्किल ही है लेकिन जो लोग उनसे मिल चुके हैं वो आज भी उनकी बातों और मुलाकातों को बार बार दोहराने से नहीं चूकते। यह लाजिमी भी है क्योंकि लता जी से मिलना कोई कम बात तो है नहीं। यदि बड़े कलाकारों की बात करें तो प्यारे लाल जी,आनंद जी भाई आज भी उनको याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। प्यारेलाल जी तो लता जी को याद करते हुए अपने बचपन में ही चले जाते हैं, वे जब बच्चे थे तब से ही उनका लता जी के घर आना जाना था और फिर लता जी के एक इंस्टीट्यूट में ही उनको सीखने का सौभाग्य भी मिला और जब पारंगत हुए तो लता जी के साथ काम करने का मौका भी मिला और ऐसा मौका मिला कि लता जी ने सबसे ज्यादा गाने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी के साथ ही गाए। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि उनके पारिवारिक रिश्ते थे और अलग से कहीं बैठकर तैयारी करने की उतनी जरूरत नहीं थी जितनी अन्य लोगों को होती थी, ये लोग घर में उठते बैठते,खाते पीते ,साथ काम करते हुए ही कंपोज कर लिया करते थे और लता जी एल.पी. को अपना छोटा भाई ही मानती थीं इसलिए इनको प्राथमिकता भी बहुत देती थीं,रिकॉर्डिंग में भी फैमिलियर माहौल रहता था। जो नए लोग उनके साथ काम करते थे वे लता जी से डरते भी बहुत थे लेकिन लता उनको सहज बना देती थीं,लता जी के साथ कई फिल्मों में ढोलक बजा चुके अनूप बोरलिया बताते हैं कि लता जी किसी को डांटती नही थीं लेकिन वो चश्मा उठाकर देख लेती थीं इतने में ही लोग कांप जाते थे। लता जी का सम्मान और आभा मंडल था ही ऐसा कि उनके सामने अनुशासन खुद ही कायम हो जाता था।
असल में लता जी की सबसे खास बात यह थी कि वे संगीत के अलावा कुछ और सोचती ही नहीं थी,संगीत ही उनका जीवन था यही कारण है कि उनको बहुत ज्यादा रीटेक या रिहर्सल की जरूरत नहीं पड़ती थी और रिकॉर्डिंग वक्त पर पूरी हो जाती थी,यदि कोई गलती होती भी तो वह अन्य कलाकारों के कारण होती थी इसलिए भी सारे लोग पूरी तरह तैयार होकर ही लता जी के सामने आते थे। एक बार जावेद अख्तर ने भी कहा था कि लता जी गाने को न सिर्फ तुरंत पकड़ लेती थीं बल्कि उसको और बेहतर करके गा देती थीं, लता जी की इसी खासियत के कारण गुणी संगीतकार लता जी को ही प्राथमिकता देते थे। एस डी बर्मन तो कहते थे कि “हमको तो सिर्फ लता ही चाहिए” यही हाल मदन मोहन और खैयाम साब का था। हालांकि मदन मोहन जी ने तो लता जी को अलग तरह से परिभाषित भी किया है और इस जोड़ी ने बहुत से महिला प्रधान गाने दुनिया को दिए, एक अलग ही लेबल का संगीत सुनाया लता जी और मदन मोहन जी ने। इनकी आपसी बॉन्डिंग और अंडरस्टेंडिंग भी ऐसी थी कि कभी तो फोन पर ही धुन सुना दी जाती थी और लता जी सीधा स्टूडियो में आकर रिकॉर्डिंग कर देती थीं, “नैना बरसे” ऐसा ही गाना है,जिसे पहले मदनमोहन जी ने डमी रिकॉर्ड कर दिया था और लता जी जब विदेश से वापस आईं तो उन्होंने उसे सुनकर ही रिकॉर्डिंग में गा दिया और क्या खूब गाया यह तो बताने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि सारी दुनिया ने वो गाना सुना है। असल में हर संगीतकार का स्टाइल और संगीत का स्तर अलग अलग होता है लेकिन लता जी सबके साथ फिट हो जाती थीं। संगीत का असीम अनुभव और गहरी समझ थी उनके पास जिससे वे कभी बेसुरी तो होती ही नहीं थीं। इसीलिए लीक से हटकर काम करने वाले संगीतकार भी खूब लिबर्टी ले लेते थे क्योंकि वे जानते थे कि जैसा वे कंपोज करेंगे वैसा ही लता जी गा देंगी। खैयाम साब ने ऐसे ही अलग हटकर गाने लता जी को दिए जो आज भी सुनें तो ऐसा लगता है कि परा जगत का संगीत हो। लता जी न इस तरह के गाने इसलिए भी गा लेती थीं क्योंकि उन्होंने कभी भी क्वालिटी और मर्यादा से समझौता नहीं किया,वे संगीत को एक उपासना मानती थीं इसलिए उन्होंने कभी भी वल्गर या हल्के स्तर के गाने नहीं गाए। उनकी लिस्ट में डिस्को या कैबरे नहीं मिलेंगे। उन्होंने कभी भी क्वालिटी से समझौता नहीं किया इसका परिणाम यह हुआ कि राजकपूर जैसे फिल्मकार भी लता जी की बात को इनकार नहीं कर सकते थे,उनका रॉयल्टी विवाद तो जग जाहिर है ही। राज कपूर से रॉयल्टी मांगने की हिम्मत किसी कलाकार की नही होती थी लेकिन लता जी ने मांगी और राजकपूर रॉयल्टी देने से इंकार नहीं कर पाए । लता जी खुद बताती थीं कि “राज साहब संगीत को समझते थे इसलिए उन्होंने मुझे रॉयल्टी देना भी मंजूर कर लिया” । राजकपूर हमेशा लता जी से ही गाने गवाया करते थे,बीच में शंकर जयकिशन और लता जी के कुछ विवाद हुए तो भी राज जी ने अपनी फिल्म में लता जी को ही लेने के लिए कहा और शंकर जी को सारे विवाद भूलकर लता जी के साथ रिकॉर्डिंग करना पड़ी।
बाद में राजकपूर ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और रविंद्र जैन को अपने बैनर में ले लिया तो लता जी फिर एकमात्र गायिका हो गईं आरके बैनर की । राजकपूर की अंतिम फिल्म हिना तक लताजी ने राज कपूर के साथ काम किया । लता जी महान गायिका के अलावा महान इंसान भी थीं कभी किसी का अपमान नहीं करती थीं। मुझे भी एक बार लता जी के दर्शन का सौभाग्य मिला।मुंबई की एक आर्ट गैलरी में एक पेंटिंग एग्जीविशन का उद्घाटन करने लता जी आईं थीं मुझे भी उस प्रदर्शनी में जाने का सौभाग्य मिला तब मैंने लता जी को देखा। बहुत ठिगना कद और सांवली लेकिन आभामंडल ऐसा कि कोई आवाज़ भी नहीं कर सकता । यह मई 2006 की बात है तब उनको जेड सुरक्षा मिली हुई थी लेकिन मैं चूंकि संगीत का विद्यार्थी था तो मैंने उनके चरण स्पर्श कर लिए। यह उनके प्रोटोकॉल के खिलाफ था इसलिए उनके सिक्योरिटी ऑफिसर ने गुस्से से मुझे रोका लेकिन मेरे चरण स्पर्श के जवाब में लता जी हाथ जोड़ते हुए आगे निकल गईं, और उनके ऑफिसर पर जो दुर्गा जी सवार हुई थीं उनको साक्षात सरस्वती ने एक पल में ही शांत कर दिया वरना मैने मुंबई में कई कलाकारों को देखा है कि प्रोटोकाल तोड़ने वाले लोगों को तुरंत गेट आउट करा दिया जाता है । संभवतः यही फर्क होता है एक कलाकार और एक महान कलाकार में और लता जी तो इतनी महान कलाकार थीं कि उनके लिए महानता की परिभाषा भी फिर से लिखना पड़ेगी । उनको सबने खूब सुना, अभी भी सुनते हैं और आगे भी सुनना चाहते हैं इसलिए यह उम्मीद जरूर है कि कभी न कभी इस धरा पर वे आएंगी जरूर ,वो खुद भी कहकर गई हैं कि “आएगा आने वाला”….( *लेखक गीतकार हैं।)