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भ्रष्टाचार का नीट लेकिन सियासत ढीट@राकेश अचल

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

नीट परीक्षा के प्रश्नपत्रों का लीक होना इस देश के लिए शायद कोई बड़ी समस्या नहीं है। इस मसले पर सियासत करने वाले ढीट हैं और सरकार असहाय। हालांकि मामला देश की सबसे बड़ी अदालत के साथ ही तमाम जांच एजेंसियों के पाले में है ,फिर भी इस मसले पर देश के प्रधानमंत्री मौन हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर कश्मीर में योगासन लगा रहे हैं ,सेल्फियां ले रहे है। वे नीट भ्र्ष्टाचार के गढ़ बिहार में नालंदा विश्व विद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन भी कर आये ,लेकिन नीट पर वे कुछ नहीं बोल रहे। वे मणिपुर के मामले में भी कहाँ बोले थे ? उन्हें तो हौआ खड़ा करना आता है । मंगलसूत्र लूटने का हौवा,भैंस खोले जाने का हौवा ,मुसलमानों का हौवा। गनीमत है की उनकी सरकार के मानव संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जरूर बोल रहे हैं ,लेकिन वे क्या बोलते हैं ,किसी की समझ में नहीं आता।

नीट परीक्षा के प्रश्न-पत्रों के लीक होने के मामले में किसी के पास नया कुछ नहीं है कहने के लिए। मेरे पास भी नहीं ,लेकिन एक नयी बात ये है की देश में जितनी भी परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लीक होते हैं वे अक्सर उन राज्यों में हो रहे हैं जहाँ डबल इंजिन की सरकारें हैं। बिहार के दुस्साहस को देश वैसे ही परनाम करता हूँ । यहां चारा घोटाले से लेकर नीट घोटाला तक करने वाले लोग रहते है। लेकिन इससे पहले बाबा आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश भी पेपर लीक के मामले में विशेष कौशल हासिल कर चुका है। हमारा मध्यप्रदेश तो इस मामले में सबसे आगे है। यहां डाक्टर से लेकर पटवारी परीक्षा तक के पेपर लीक होते हैं और परीक्षाओं तक में घोटाले हो जाते हैं ,लेकिन कोई ईडी या सीबीआई यहां जांच करने नहीं आती।दुर्भाग्य ये कि इस मामले में कोई भागवत सरकार को बोलने के लिए नहीं कहता। कोई इंद्रेश कुमार घोटालों कि पालनहार सरकारों को उपदेश नहीं देता ।

नीट परीक्षा के प्रश्न -पत्र हों या किसी अन्य परीक्षा के उन्हें लीक करने का एक सुगठित व्यवसाय देश के अनेक राज्यों में चल रहा है । किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की सुचिता की कोई गारंटी इस देश में कोई नहीं दे सकता । आम चुनाव के वक्त भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने तरह-तरह की गारंटियां जनता के सामने रखीं थीं ,किन्तु किसी ने भी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र लीक होने की गारंटी नहीं दी। कोई दे भी नहीं सकता । क्योंकि इस मामले में अधिकाँश राजनीतिक दल और उनके नेता,कार्यकर्ता और नौकरशाही शामिल है । बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और राजद के प्रमुख तेजस्वी यादव के निज सचिव तक का इस घोटाले में शामिल होना इस बात का संकेत देता है कि इस मामले में कोई भी दूध का धुला नहीं है।

दरअसल देश की राजनीति के गर्भ से ही ये भ्र्ष्टाचार जन्म लेता है और फिर पूरे समाज में फ़ैल जाता है। केंद्र सरकार हो राज्य सरकारें इस तरह के अनैतिक कारोबार को रोकने के लिए रोज नए क़ानून बनाती है लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं मिलता। हम यानि हमारा समाज,हमारी राजनीति,हमारी कार्यपालिका,हमारी विधायिका ,हमारी न्यायपालिका में सुचिता सिरे से नदारद है । ठीक वैसे ही जैसे की गधे के सिर से सींग गायब हो गए हैं। आप इस देश की संसद में या विधान सभाओं में लाख क़ानून बना लीजिये लेकिन जब तक समाज की रगों में बहते भ्र्ष्टाचार के काले खून को डायलिसिस कर बाहर नहीं निकालते ,कुछ होने वाला नहीं है। पिछले दो दशक में देश के हर हिस्से में केवल शिक्षा के क्षेत्र में इतने घोटाले हुए हैं कि उनकी गिनती तक करना कठिन है। हम एक बार प्राण-वायु [आक्सीजन ] के बिना जीवित रह सकते हैं लेकिन घोटालों के बिना नहीं।

शिक्षा जगत में होने वाले इन घोटालों की मार देश की उस युवा पीढ़ी को झेलना पड़ रही है जिसे हम और आप देश का भविष्य कहते हैं।इस घोटाले को खाद -पानी वे माध्यम वर्गीय लोग देते हैं जो भ्र्ष्टाचार के जरिये होने वाली कमाई से लाखों रूपये देकर प्रश्न-पत्र लीक करने की कोशिश में लगे रहते हैं। चूंकि सब एक ही थैली के चट्टे -बट्टे हैं इसलिए कोई ,किसी को दोषी नहीं मानता दुर्भाग्य की बात ये है कि इस तरह के घोटालों के तार उस गुजरात से जुड़े निकलते हैं जो महात्मा गाँधी का गुजरात है,जो सरदार पटेल का गुजरात है ,जो प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का गुजरात है । हमारा अपना गुजरात है। ।

नीट घोटाले को लेकर न बिहार के किसी मंत्री ने अपना इस्तीफा दिया है और न केंद्र का कोई मंत्री इस्तीफा देगा । पद से इस्तीफा देने के लिए जिस नैतिकता की जरूरत हो चुकी है ,वो तो न जाने कब की काल कवलित हो चुकी है। देश में नैतिकता न सियासत में है ,न शिक्षा में ,न समाज में। हम एक अनैतिक व्यवस्था का अंग हैं और इस व्यवस्था में हम घोटालों से मुक्ति नहीं पा सकते। कोई अदालत ,कोई सरकार हमारे देश को,समाज को घोटाला प्रूफ नहीं बना सकती। अब कोई अदृश्य शक्ति ही इस विषय में हमारी मदद कर दे तो और बात है। मै अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि इस तरह के घोटालों को न ये सरकारें रोक सकतीं हैं और न नई पीढ़ी को इस बारे में कोई गारंटी दे सकती हैं ,क्योंकि रोजगार न दे पाने की वजह से परोक्ष रूप से वे भी इस घोटाले का एक अदृश्य अंग हैं। ये घोटाले सरकारों और सरकारों के संरक्षण में घोटाले करने वालों की आय का एक पुख्ता स्रोत जो बन चुके हैं।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

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