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‘ लो अब कर लो भाजपा मुठ्ठी में ‘@सबसे बड़ा भी मैं और…. वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

वर्षों पहले अम्बानी परिवार ने अपने एक उत्पाद की बिक्री के लिए एक स्लोगन दिया था ‘ कर लो दुनिया मुठ्ठी में ‘। आज यही स्लोगन नयी शक्ल में देश की सियासत के सामने है। वक्त देश के तमाम छोटे दलों का आव्हान कर रहा है कि -‘कर लो भाजपा मुठ्ठी में ‘। यकीनन अगले दो दिनों में जो भी क्षेत्रीय दल भाजपा को अपनी मुठ्ठी में करना चाहेगा,कर लेगा । इस समय भाजपा 02 से 303 तक पहुँचने के बाद पिछले 44 साल में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है । मजे की बात ये है कि भाजपा आज भी सबसे बड़ा दल होने के बावजूद असहाय है,लाचार है और अपने सहयोगी दलों के समाने चिरोरियाँ करती नजर आ रही है।

वैचारिक रूप से देश में भाजपा का प्रसार होता तो अलग बात थी । पिछले एक दशक में भाजपा का प्रसार धर्मान्धता ,साम्प्रदायिकता और विषवमन की वजह से हुआ। केवल गोबर पट्टी में ही नहीं भाजपा सुदूर पूरब और समुद्रतटीय प्रदेशों तक भी पहुंची । इस बार तो उसने भगवान जगन्नाथ के ओडिशा को भी हथिया लिया। जैसे एक जमाने में 1977 में मार्क्सवादियों ने बंगाल में कांग्रेस से और फिर 2011 में तृमूकां ने वामपंथियों से सत्ता छीनी थी। इसी तर्ज पर भाजपा ने 24 साल के लम्बे बीजद शासन को धूल चटा दी। गंगापुट नरेंद्र मोदी का जादू भले ही उत्तर प्रदेश में नहीं चला लेकिन ओडिशा को उन्होंने जीता। मोदी ओडिशा जीतकर भी देश में हार गए । देश की जनता ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिय। न भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को 400 पार कराया और न भाजपा को 370 का लक्ष्य हासिल करना दिया ,240 पर लाकर खड़ा कर दिया।

आंकड़ों के लिहाज से देखें तो भाजपा आज भी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है ,लेकिन हकीकत में देखें तो भाजपा 240 सीटें जीतने के बाद भी बुरी तरह हार गयी है । उसे अब मजबूरी में भाजपा और मोदी के बजाय गठबंधन की सरकार चलना पड़ेगी । उस गठबंधन की जिसकी न कोई सूरत है और न सीरत। भाजपा ने पूरे चुनाव में अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ चाकरों जैसा व्यवहार किया,लेकिन कहते हैं न कि समय बड़ा बलवान होता है। वे सभी चाकर अब भाजपा के मालिक बन गए है। टीडीपी हो या जेडीयू ,इनके बिना भाजपा के सिर पर सत्ता का सेहरा नहीं बंध सकता।
वर्ष 2014 में भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए प्रक्षेपित नरेंद्र दामोदर दस मोदी इस समय बंधुआ प्रधानमंत्री के रूपमें 9 जून को पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। बहुत से लोगों को शायद पाए नहीं होगा की संख्या बल के हिसाब से भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन के सदस्यों की संख्या कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के मुकाबले कहीं ज्यादा है ,लेकिन एक हकीकत ये भी है कि भाजपा गठबंधन में शामिल 23 दलों को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली है। यानि इन तमाम दलों के नेता केवल कागजी शेर है। असली तो वे हैं जिनके पास कम से कम 5 सीटें हैं। इनमें स्वर्गीय रामविलास पासवान के चश्मों चिराग चिराग पासवान का दल भी शामिल है। अपने पितृतुल्य चाचा को दगा देकर एनसीपी को दो फाड़ करने वाले 70 हजार करोड़ के घोटाले के आरोपी अजित पंवार की एनसीपी को भी मात्र 1 सीट मिली।मोदी केबिनेट के विदोषक रामदास अठावले भी इस बार चुनाव हार गए।

देश के स्वयम्भू विश्वगुरु बने नरेंद्र मोदी के लिए कितनी विषम परिस्थिति है कि पिछले एक दशक में जहाँ उन्होंने अपनी पूरी केबिनेट को अपनी मुठ्ठी में कर रखा था। उन्हीं मोदी जी को अब टीडीपी,जेडीयू और एकनाथ शिंदे ,चिराग पासवान जैसों की मुठ्ठी में सिसकना पडेगा। मोदी जी ने अपने सहयोगी दलों में से यदि किसी को भी आँखें दिखने की कोशिश की तो उसी दिन उनकी कुर्सी डगमगा जाएगी। वे अब तक बाहुबली मदारी थे। सबको उन्होंने जमूरा बना रखा था,लेकिन अब पहला मौक़ा है जब उन्हें जमूरों के बजाय खुद रस्सी पर चलकर दिखाना पडेगा। यानि अब सत्ता संतुलन का खेल बनकर रह गयी है। लेकिन मोदी जी की विवशता ये है कि वे सरकार को छोड़ नहीं सकते। वे कुर्सी के लिए सहयोगी दलों को चिमटे के बजाय दांतों से पकड़कर रखने के लिए मजबूर हैं।

गठबंधन की सरकार चलाना हिकमत अमली और बुद्धि चातुर्य का काम है। मोदी जी से पहले पीव्ही नरसिम्हाराव ,अटल बिहारी बाजपेयी और डॉ मन मोहन सिंह भी गठबंधन की सरकारें कामयाबी के साथ चला चुके है। लेकिन मोरार जी भाई देसाई के हिस्से में ये सफलता नहीं आयी। चंद्रशेखर और चौधरी चरण सिंह के हिस्से में ये सफलता नहीं आयी। मोदी जी के हिस्से में आ जाये तो भगवान का लाख-लाख शुक्र कहियेगा। क्योंकि मोदी में न मोरारजी भाई हैं ,न अटल बिहारी और न मन मोहन सिंह । मोदी जी में सिर्फ मोदी जी हैं ,जो इस चुनाव में बेनकाब हो चुके है। वो तो भला हो बसपा का जो उसने मोदी जी को पराजित होने से बचा लिया। बसपा प्रत्याशी यदि काशी में 3 लाख से ज्यादा वोट न खींचता तो मोदी जी कम से कम दो लाख वोटों से पराजित हो जाते। बसपा को मोदी जी को जिताने की बहुत बड़ी कीमत अदा करना पड़ी।

मुझे ,संघ को और उनके गठबंधन में शामिल दलों को माननीय मोदी जी की असीमित क्षमताओं को लेकर कोई संदेह नहीं है। वे कुछ भी कर गुजर सकते हैं। वे बैशाखियाँ लगाकर चल भी सकते हैं और दौड़ भी सकते है। जरूरत पड़े तो इन बैशाखियों को तोड़ भी सकते हैं। वे बिना बैशाखियों के चलने का जोखिम भी ले सकते हैं। आप इस गफलत में न रहें कि उनके पास कोई प्रमोद महाजन नहीं है। मोदी जी के पास हनुमान के रूप में अमित शाह है। आप उन्हें थैली शाह भी कह सकते हैं। उनकी थैली में इलेक्टोरल बांड का अकूत धन अब भी है । माननीय बड़ी अदालत ने इस धन को भले ही असंवैधानिक घोषित किया हो लेकिन उसे न जब्त किया है और न भाजपा के खाते सीज किये हैं। इसी धन के बूते भाजपा अभी अनेक जोखिम ले सकती है । यूपीए गठबंधन की कमजोर कड़ियों को तोड़ने की कोशिश करने में भाजपा को कोई गुरेज नहीं है।

देश के लिए अगले 48 घंटे और भारी हैं। ये 48 घंटे बीत जाएँ फिर आप और हम ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया माननीय मोदी जी नए संसद भवन की देहलीज पर साष्टांग करते देख सकेंगे। अभी हताश गोदी मीडिया के तेवर भी पूरी तरह बदले नहीं हैं। गोदी मीडिया अभी भी गागरोनी गा रहा है। उसकी आँखें अभी खुली नहीं हैं। खुलना भी नहीं हैं। बीमारी लाइलाज जो हो चुकी है। लेकिन आप अपनी आँखें खोलकर रखिये,क्योंकि खेला जारी है।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

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