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डराने धमकाने की राजनीति, क्या कश्मीर बन जायेगा उत्तर प्रदेश? सत्ता के लिए खौफ की नीति पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का सटीक विश्लेषण

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

उत्तर प्रदेश के चुनाव रोज एक नया विषय बहस के लिए छोड़ रहा हैं.न चाहते हुए भी लिखने वालों को उत्तर प्रदेश पर लिखना पड़ रहा है .उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ दल अपने पांच वर्ष के कार्यकाल का जिक्र कम करता है लेकिन इधर-उधर की बातें ज्यादा करने लगा है .अब सत्तारूढ़ दल की ओर से कहा जा रहा है कि यदि भाजपा न जीती तो उत्तर प्रदेश केरल और कश्मीर बन जाएगा .

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की जनता को डराने के लिए जब कुछ नहीं मिला तो केरल,कश्मीर और बंगाल का उदाहरण दे दिया. लगता है कि योगी इन तीनों राज्यों को भारत का नहीं सोवियत संघ या अमेरिका का हिस्सा मानते हैं .ये तीनों वे राज्य हैं जहां भाजपा को पांव रखने की जगह नहीं मिली है .कश्मीर में भाजपा ने सत्ता के सिंहासन पर बैठने के लिए वहां के राजनीतिक दलों से गठजोड़ किया भी था लेकिन जब कामयाबी नहीं मिली तो न केवल कश्मीर के तीन हिस्से कर दिए बल्कि बीते तीन साल से वहां लोकतंत्र को ही स्थगित करा दिया है.

योगी जी का बयान अविवेकपूर्ण होने के साथ ही राष्ट्र की एकता और अखंडता पर भी प्रहार है. शायद योगी जी नहीं जानते कि जिन तीन राज्यों का हौवा उन्होंने उत्तर प्रदेश की जनता को दिखने की कोशिश की है वे तीनों ही राज्य अनेक मामलों में उत्तर प्रदेश से मीलों आगे हैं .वहां रामनामियाँ ओढ़कर सत्ता का खेल नहीं खेला जाता .इन तीनों राज्यों की उपलब्धि उत्तर प्रदेश से किसी भी मामले में कम नहीं है .बंगाल की जनता ने हाल ही में भाजपा को ठुकराया है,केरल पहले ही ठुकरा चुका है और जम्मू-कश्मीर में भाजपा विधानसभा चुनाव करने का साहस ही नहीं कर पा रही है इसलिए इस खूबसूरत राज्य पर राष्ट्रपति शासन के सहारे राज कर रही है.
भाजपा जिस राज्य में पांच साल से सत्तारूढ़ है उस राज्य की जनता को यदि किसी दूसरे राज्य का हौवा खड़ाकर डराया जा रहा है तो जाहिर है कि भाजपा के तरकश के तीर या तो समाप्त हो गए हैं या फिर निष्प्रभावी साबित हो रहे हैं. देश और कथित रूप से दुनिया की सबसे नैजवान और बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा की इस दयनीय दशा पर मुझे सहानुभूति है .भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए सब तो कर लिया ,सिवाय विकास के .इसलिए उसका घबड़ाना स्वाभाविक है .और घबड़ाहट में योगी जी समेत भाजपा के तमाम नेता कुछ भी बोलने के लिए मजबूर दिखाई दे रहे हैं .
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जो दशा गैर भाजपा दलों की होना चाहिए थी वो दशा केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की हो रही है. इन पाँचों राज्यों में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है.

उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड ,मणिपुर और गोवा में भाजपा सत्ता में है ,केवल पंजाब में कांग्रेस की सरकार है .कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है सिवाय पंजाब के किन्तु भाजपा के पास खोने के लिए चार राज्य हैं .भाजपा ने सात साल में उत्तर प्रदेश का जितना कल्याण किया है वो किसी से छिपा नहीं है .यदि सचमुच भाजपा ने जन हितैषी सरकार चलाई है तो उसे भयभीत होने की जरूरत ही नहीं है .उसे किसी दूसरे राज्य का हवाला देने की जरूरत ही नहीं है ,लेकिन ऐसा हो नहीं रहा .हो उलटा रहा है .

देश का दुर्भाग्य है कि यहां चुनाव जनता से जुड़े मुद्दों पर लड़े ही नहीं जाते,फिर वे चुनाव चाहे संसद के हों,विधानसभाओं के हों या सरपंची के . हर चुनाव में देश पीछे चला जाता है और नए मुद्दे सामने आ जाते हैं. कभी मंदिर ,तो कभी मस्जिद,कभी कश्मीर तो कभी हिजाब .और आजकल तो कांग्रेस का भूत भी एक मुद्दा है. भाजपा के नेताओं को तो छोड़िये प्रधानमंत्री तक के सिर पर कांग्रेस का भूत सवार है. संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जबाब देते हुए दुनिया ने प्रधानमंत्री के कंघों और सिर पर सवार कांग्रेस के भूत को न सिर्फ देखा बल्कि अनुभव भी किया .

विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश ही रहेगा,उसे कोई न केरल बना सकता है और न कश्मीर .बंगाल तो बिलकुल नहीं बना सकता,क्योंकि उत्तर प्रदेश का अपना चरित्र है,अपनी संस्कृति है अपना भूगोल है ,अपना इतिहास है ,इसलिए उत्तर प्रदेश वालों को डरना नहीं चाहिए .उत्तर प्रदेश के मतदाता कभी किसी एक खूंटे से बांधकर नहीं रहे .बीते तीन दशकों का इतिहास तो इसका गवाह है ही. खूंटे से बंधे मतदाता कभी भी लोकतंत्र का आनंद नहीं ले सकते. उन्हें सत्ता के लिए दलों को रोटी की तरह बदलते रहना चाहिए,हालाँकि ये एक चुनौती और जोखिम भरा काम है .

उत्तर प्रदेश का इतिहास बताता है कि पिछले तीन दशक में उसने पांच बार भाजपा को,चार बार बहुजन समाज पार्टी को और तीन बार समाजवादी पार्टी को प्रदेश का भाग्य सवांरने की जिम्मेदारी दी .एक मौक़ा जनता दल को भी दिया और चार बार राष्ट्रपति शासन भी झेला लेकिन कांग्रेस को छोड़ा सो छोड़ा .कांग्रेस इस बार भी सत्ता से दूर खड़ी हुई है लेकिन भविष्य किसी ने नहीं देखा. इस बार कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में क्या भूमिका होगी ये यहां की जनता ही तय करेगी .कांग्रेस के पास अब कोई एनडी तिवारी नहीं है ,कोई वीर बहादुर नहीं है .कांग्रेस यहां अपने किये की सजा भुगत रही है. कांग्रेस ने आठवें दशक में नौ साल सत्ता में रहते हुए सात मुख्यमंत्री ऐसे बदले थे जैसे कोई सोफे के कवर बदलता है .

पहले चरण के मतदान के बाद उत्तर प्रदेश में सियासत अभी और करवट लेगी,क्योंकि रोज कुछ न कुछ नया हो रहा है. लखीमपुर खीरी का कथित खलनायक जमानत पर रिहा हो रहा है .सरकार की और से सही पैरवी न करने की वजह से ऐसा सम्भव हुआ .नए रिश्ते बन ,बिगड़ रहे हैं .नए जुमले गढ़े जा रहे हैं .नई भाव भंगिमाएं अपनायी जा रही हैं. केंचुआ सब देख रहा है ,मतदाता भी सब देख रहे हैं .इसलिए बाकी के चार राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में ही पूरे देश की दिलचस्पी है .अब देखना ये भी है की उत्तर प्रदेश की जनता योगी जी के केरल,कश्मीर और बंगाल के हौवा दिखने से डरती है या नहीं ?
@ राकेश अचल

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