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अयोध्या फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे 40 बुद्धिजीवी

@शब्ददूत ब्यूरो

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सहित 40 बुद्धिजीवियों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का रुख कर अयोध्या मामले में उसके फैसले पर पुर्निवचार का अनुरोध किया है। उन्होंने दावा किया कि फैसले में तथ्यात्मक एवं कानूनी त्रुटियां हैं। इन लोगों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल हैं।

याचिका में कहा गया है कि वे कोर्ट के फैसले से बहुत आहत हैं। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पुर्निवचार याचिका दायर की है। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने पिछले साल 14 मार्च को यह स्पष्ट कर दिया था कि सिर्फ मूल मुकदमे के पक्षकारों को ही मामले में अपनी दलीलें पेश करने की इजाजत होगी और इस विषय में कुछ कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नौ नंवबर को अपने फैसले में समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि ‘राम लला’ विराजमान को दे दी थी और केंद्र को निर्देश दिया था कि वह अयोध्या में एक मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड जमीन आवंटित करे।

इसी बीच राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के वादियों में शामिल अखिल भारत हिंदू महासभा ने अयोध्या में एक मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन आवंटित करने के लिए दिए गए निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस तरह, शीर्ष न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले पर ‘सीमित पुर्निवचार’ की मांग करने वाला महासभा पहला हिंदू संगठन है।

उसने विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित करने वाले निष्कर्षों को हटाने की भी मांग की है। महासभा ने अपनी पुर्निवचार याचिका में कहा है कि शीर्ष न्यायालय ने जिन निष्कर्षों को दर्ज किया, वे सही नहीं हैं और वे साक्ष्य एवं रिकार्ड के विरूद्ध हैं। इनमें (निष्कर्षों में) विवादित ढांचे को मस्जिद बताया गया है।

महासभा की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर पुर्निवचार याचिका में कहा गया है, ‘‘मुसलमान यह साबित करने में नाकाम रहें कि विवादित निर्माण मस्जिद था, वहीं दूसरी ओर हिंदुओं ने प्रमाणित कर दिया कि विवादित स्थल पर भगवान राम की पूजा की जाती रही है, इसलिए रिकार्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह घोषित करे कि विवादित ढांचा मस्जिद था।’’

न्यायालय के फैसले पर सीमित पुर्निवचार की मांग करते हुए याचिका में कहा गया है, ‘‘विवादित ढांचे पर मुसलमानों का कोई अधिकार या मालिकाना हक नहीं है और इसलिए उन्हें पांच एकड़ जमीन आवंटित नहीं की जा सकती…तथा किसी पक्षकार ने इस तरह की कोई जमीन मुसलमानों को आवंटित करने के लिए ऐसा कोई अनुरोध या कोई दलील नहीं दी।’’ याचिका में कहा गया है, ‘‘…मुसलमानों द्वारा अतीत में की गई किसी गलती के लिए मुआवजा नहीं दिया जा सकता।’’

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