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खरी खरी : गैरसैंण न जा सकने वाली सरकार के नाम पाती

इन्द्रेश मैखुरी

मेरी प्यारी सरकार,ठंड की मारी सरकार, प्रचंड बहुमत से जीती, लेकिन ठंड से हारी सरकार! हाय, हम पहाड़वासी तो पलक पांवड़े बिछाये हुए थे कि तुम अब आओगे, हमारे दर कि तब आओगे! पर तुम्हारे दर्शन देने और हमारे दर्शन की अभिलाषा के बीच ये निगोड़ी सर्दी आ गयी! राज्य बनाते समय और उसके पहले से ही हम तो चाहते थे कि तुम हमारे आसपास रहो। जैसे पहाड़ी मांऐ चाहती रही कि उनके बच्चे उनके करीब रहें। पर इन नालायक पहाड़ियों के चाहने मात्र से होता क्या है? चाहा तो इन्होंने कि इनके त्याग से बना राज्य ऐसा बन जाये कि जैसा दुनिया में कोई राज्य नहीं है! और देख तो क्या बना! ऐसा राज्य जहां अपनी चुनी हुई सरकार को काम न करने का भय नहीं है, वायदे पूरे नहीं हुए, इसका डर नहीं है, लोगों की ज़िंदगी की दुश्वारियां कम न कर पाने का भय नहीं है! किसका भय है, सर्दी का भय है,ठंड लगने का भय है! वैसे यह भी कोई कम अनोखा थोड़े है!

अरे भई सरकार है, वो कोई छोटी-मोटी चीज थोड़े ही है कि तुम हुलसट पहाड़ी कहो और वो दौड़ी चली आए पहाड़। सरकार है, उसके नाज-ओ-नखरे हैं, कोमल अदा-ओ-अंदाज है। मुख्यमंत्री का झरझरा मुख देख कर तुम क्या समझे कि सरकार का अपना मिजाज भी ऐसा ही है। ना भई ना, बहुत ही नर्म-नाजुक मिजाज होती है, सरकार। सर्दी,जुकाम,निमोनिया होने का खतरा इस नाजुक मिजाजी के चलते लगातार बना रहता है। तुम पहाड़ियों के लिए अपनी नर्म-नाजुक तबीयत को नासाज़ कर ले सरकार? अरे, वो तो सरकार है कम बोल रही है, वरना होने को ऐसा भी हो सकता है कि कौडियाला से ऊपर चढ़ने की बात सोचते ही बरमण्ड रींगने लग जा रहा होगा, जिकुड़ी झस्स हो रही होगी, उंद-उब हो रहा होगा, कौ-बौ होने लग गया होगा!

तुम्हारा क्या है,जो पहाड़ में हो ! बिना सरकार के रह ही रहे हो, ना। क्या हुआ जो स्कूल में मास्टर नहीं है,अस्पताल में डाक्टर नहीं हैं तो? ठेके में शराब की कमी होने दी हो सरकार ने, तो बोलो! स्कूल भले ही बंद करने पड़े हों पर ठेका कोई एक बंद किया इतने सालों में? बल्कि चार स्कूल बंद किए होंगे तो दस ठेके खोले होंगे, तुम्हारे लिए! इससे बाकी और क्या विकास चाहिए तुमको?स्कूल जा के अंग्रेजी सीखे न सीखे पर अंग्रेजी पी कर तो अंग्रेजी फुकापट करेगा तुम्हारा लड़का! और क्या चाहिए तुमको?

तुम पहाड़ी कोई शराब-खनन वाले हो कि सरकार दौड़ी-दौड़ी आए तुम्हारे लिए! दो साल पहले का दृश्य याद करो तो। उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य के राजमार्गों पर शराब बेचने पर रोक लगा दी थी। सरकार बहादुर ने भी कह दिया कि जिन पर शराब न बिक सके न वो राष्ट्रीय, न वो राज्य, न वो राज और न वो मार्ग! जब इनके किनारे शराब ही न बिक सकेगी तो काहे के राष्ट्रीय और काहे के राज्य राजमार्ग! सरकार के प्राण बसते हैं शराब वालों में। इसलिए इतने से ठंडा न हुआ सरकार का कलेजा। दौड़ी-दौड़ी गयी सरकार सुप्रीम कोर्ट कि इनको शराब बेचने दो वरना दिल पर बड़ा बोझ महसूस हो रहा है। सरकार के नाजुक मिजाज पर सुप्रीम कोर्ट ने भी रहम खाया!

हाय सरकार, हम पहाड़ी सोचते रहे कि जैसे शराब वालों के लिए तुम दिल्ली की ओर दौड़े चले गए, वैसे ही हमारी ओर भी दौड़े चले आओगे पर हाय हम हतभागे पहाड़ी, शराब वालों जैसे रसीले कहां!

वैसे कभी-कभी सोचता हूं कि सरकार कि तुम करोगे भी क्या पहाड़ आ कर? जिनकी तुमको जरूरत है, उनको तुमने अपने पास बुला लिया है। जिनको तुम्हारी जरूरत है, वे तुम्हारे पास आ ही गए हैं, बेइंतहा जुगत-जुगाड़, घूस-रिश्वत करके भी आ गए हैं। अब जो बचे हैं पहाड़ पर, उनकी जरूरत बहुत है पर ये सब कर सकने का दम नहीं है, ना उनमें।

ज़मीनों का सौदा देहारादून से हो ही जाता है, खनन-वनन सब हो ही रहा है। तो फिर पहाड़ आ कर करना भी क्या है। पिछली बार आए थे तो इंद्रधनुष देख कर खुश हुए थे, अबकी बार नहीं आ रहे तो सर्दी वजह है। कुल मिलाकर मुद्रा पर्यटक वाली ही। तो ठीक है घूमने-फिरने के हिसाब से जब मुफीद लगे तो चले आना पहाड़। सूअर,बंदर,बाघ,भालू की कृपा रही, बादल नहीं फटा, धरती नहीं खिसकी तो जो बचे रह जाएंगे, वो मिल ही जाएंगे सरकार आपको। न भी मिले तो आपको क्या फर्क पड़ता है।

पर आप अपना खयाल रखना सरकार। खांसी, जुकाम न लगा बैठना, ठंड-गर्म से बचाना खुद को। लग ही जाये तो जानकार बताते हैं कि ब्रांडी अचूक नुस्खा है, उसकी कमी तो नहीं होगी आपको। हमारे यहां तो चिट्ठियों में लिखा ही जाता था-पहले स्वास्थ्य रक्षा, फिर अन्य कार्य। अन्य कार्य आपने क्या करने हैं, आप तो स्वास्थ्य रक्षा करो बस!

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