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अयोध्या मामला तारीख दर तारीख से ऐतिहासिक फैसले के दिन तक

शब्द दूत ब्यूरो

 आज देश की सर्वोच्च अदालत ने राम जन्मभूमि को लेकर जो फैसला सुनाया है उससे सदियों से चला आ रहा यह विवाद समाप्त हो गया है। देश के लिए यह खुशी का दिन है। आइये आपको तारीख दर तारीख अयोध्या मामले से अवगत कराते हैं।

1528 ईसवीं में मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।1885 में महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी। दिसंबर 1949 में विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गईं। 1950 में रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।

1959 में निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।एक फरवरी 1986 को स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के लिए हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया। इसी वर्ष 14 अगस्त 1989  इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

सबसे ज्यादा सुर्खियों में यह मामला तब आया जब छह दिसम्बर 1992 को रामजन्मभूमि – बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया। तीन अप्रैल 1993 को विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस्माइल फारूकी समेत कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो हाईकोर्ट में लंबित थीं। 24 अक्टूबर 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।

अप्रैल 2002 में हाईकोर्ट में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू की गई ।13 मार्च 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा, अधिग्रहीत स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।

30 सितम्बर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने 2 : 1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। आज सर्वोच्च न्यायालय ने इसी फैसले को पलट कर दो ही पक्षकार बताये। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। 21 मार्च 2017 को सीजेआई जे एस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।

सात अगस्त को  सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।आठ फरवरी 2018 को सिविल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। 27 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इंकार किया।

मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नई पीठ द्वारा किए जाने की बात कही।29 अक्टूबर 2018 से सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी। 24 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों पर चार जनवरी 2019 को सुनवाई करने का फैसला किया। चार जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी।

आठ जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन करते हुए कहा कि  प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुनवाई होगी और इसमें न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी. रमन्ना, न्यायमूर्ति यू.यू. ललित और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ शामिल होंगे।

10 जनवरी को न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नयी पीठ के समक्ष तय की। 25 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर शामिल थे।29 जनवरी को  केंद्र ने विवादित स्थल के आसपास 67 एकड़ अधिग्रहीत भूमि मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा।

आठ मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला बनाए गए। नौ अप्रैल को निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केन्द्र की याचिका का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया। 10 मई को मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 15 अगस्त तक समय बढ़ाई। 11 जुलाई को  सुप्रीम कोर्ट ने “मध्यस्थता की प्रगति” पर रिपोर्ट मांगी।

18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिए कहा। एक अगस्त को मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई। अगले दिन दो अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया। छह अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की। चार अक्टूबर को अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिये कहा। 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।.

और आज देश के इतिहास का वह महत्वपूर्ण दिन आया जिसमें  सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन राम लला को दी, जमीन का कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए एक मुनासिब स्थान पर पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया।

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