@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (09 जून, 2022)
मेडिकल की दुनिया में एक नए चमत्कार ने हर किसी को हैरान कर दिया है। रेक्टल यानी मलाशय के कैंसर के कुछ मरीजों पर एक खास दवा का क्लिनिकल ट्रायल किया गया। इसके नतीजे कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी खुशखबरी लेकर आए हैं। ट्रायल में शामिल सभी 18 मरीजों में कैंसर ट्यूमर पूरी तरह खत्म पाया गया। ये स्टडी न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी है।
स्टडी के लेखक और न्यूयॉर्क के मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टर लुइस ए डियाज ने कहा कि आज तक ऐसी कोई भी स्टडी नहीं आई है जिसमें ये दावा किया जा सके कि इलाज से किसी भी मरीज का कैंसर पूरी तरह से खत्म हो गया हो।
कुल 18 मरीजों पर की गई ये स्टडी बहुत छोटी थी। स्टडी में शामिल सभी मरीजों ने एक ही दवा ली थी। स्टडी के नतीजे चौंकाने वाले थे। ट्रायल में शामिल हर एक मरीज के शरीर से कैंसर पूरी तरह गायब हो चुका था। किसी भी मरीज के शारीरिक परीक्षण, एंडोस्कोपी, पीईटी स्कैन या एमआरआई स्कैन में ये दिखाई नहीं दिया। डॉक्टर डियाज ने कहा, ‘मेरे हिसाब से कैंसर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।’
रेक्टल कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी, रेडिएशन और कई तरह की सर्जरी से गुजरना पड़ता है। इसकी वजह से उन्हें कई आंत, मूत्र और यौन रोग हो जाते हैं। कुछ को कोलोस्टॉमी बैग लगवाने की भी जरूरत पड़ती है।
स्टडी में शामिल इन सारे मरीजों के दिमाग में भी यही था कि एक बार जब ये ट्रायल हो जाएगा तो उन्हें फिर से इन सारी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इनमें से किसी को वास्तव में ये उम्मीद नहीं थी कि इनका ट्यूमर पूरी तरह गायब हो जाएगा। उन्हें हैरानी हुई कि अब उन्हें किसी और ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है।
कैंसर से पूरी तरह ठीक होने के बाद इन मरीजों की आंखों में खुशी के आंसू थे। ट्रायल में शामिल साशा रोथ नाम की मरीज ने बताया कि सिग्मोइडोस्कोपी के दौरान मेरी गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट ने खुशी से उछलते हुए कहा, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा। मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी।’
ट्रायल में शामिल सभी मरीजों को दोस्तरलिमब (Dostarlimab) नाम की दवा दी गई थी। ये मरीजों को छह महीने के लिए हर तीन सप्ताह में दी गई। ये दवा कैंसर कोशिकाओं की उजागर करती है, इम्यून सिस्टम को उन्हें पहचानने और नष्ट करने में मदद करती है। मरीजों पर इस दवा के कुछ खास साइड इफेक्ट नहीं देखे गए।
नॉर्थ कैरोलिना के लाइनबर्गर कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर सेंटर की डॉक्टर हन्ना सैनॉफ ने कहा, ‘ये स्टडी छोटी लेकिन काफी प्रभावी है।’ हालांकि, उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि मरीज पूरी तरह ठीक हो गए हैं या नहीं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी स्टडी फिर से करने की जरूरत है।