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कैलाश का वर्गीकृत गुस्सा:निशाने पर कौन?

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

प्रदेश के पूर्व मंत्री और भाजपा के अभूतपूर्व नेता श्री कैलाश विजयवर्गीय का महाशिवरात्रि पर सीहोर में एक धार्मिक आयोजन स्थगित करने पर प्रकट हुआ गुस्सा बेहद वर्गीकृत है. मुमकिन है कि उनका वर्गीकृत गुस्सा देखकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान डर गए हों और आजकल में सीहोर के कलेक्टर तथा एसपी को हटा भी दें ,लेकिन कैलाश विजयवर्गीय को समझना चाहिए कि प्रदेश या देश में कोई भी धार्मिक आयोजन अराजकता के लिए स्वीकार्य नहीं किया जा सकता और न किया जाना चाहिए .

सीहोर में जिस आयोजन को रोकने के खिलाफ कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखकर उसे सार्वजनिक कराया है उससे जाहिर है कि उनका निशाना सीहोर का जिला प्रशासन नहीं बल्कि कोई और है .कैलाश जी एक लम्बे अरसे से प्रदेश की राजनीति में अप्रासंगिक से हैं. पार्टी हाईकमान ने उन्हें शिवराज का मार्ग निष्कंटक करने के लिए राष्ट्रीय नेता बना रखा है किन्तु उनकी आत्मा मध्यप्रदेश को छोड़ना नहीं चाह रही.छोड़ना भी नहीं चाहिए किन्तु उनकी आत्मा को इस तरह से सरकारी कामकाज में दखल भी नहीं देना चाहिए ,ये गलत बात है .

संयोग से मैं न भाजपा का कार्यकर्ता हूँ और न ‘मामा मीडिया’ का हिस्सा इसलिए मुझे मामा मुख्यमंत्री से कोई सहानुभूति नहीं है ,मेरी सहानुभूति सीहोर जिला प्रशासन के प्रति है .कैलाश जी को नहीं मालूम कि जिस आयोजन को स्थगित कराया गया उसकी वजह से भोपाल-इंदौर राजमार्ग पर कितने घण्टे और किस तरह की अराजकता पैदा हो गयी थी. कई घंटों तक लगे उस जाम में कैलाश जी नहीं बल्कि मै खुद और मेरे जैसे हजारों लोग फंसे थे,जिनकी या तो निर्धारित यात्राएं बर्बाद हो गयीं या जो इलाज के लिए अस्पतालों में नहीं पहुँच पाए .कितना ईंधन बर्बाद हुआ ?

सीहोर में रुद्रष्टिक महभिषेक और कथा की अनुमति निश्चित तौर पर जिला प्रशासन से ली गयी होगी और जब प्रशासन को अराजक स्थितियां नजर आयीं होंगी तो प्रशासन ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इस अनुमति को रद्द कर दिया होगा ,इसमें गलत क्या है ? क्या आयोजकों ने इस आयोजन के लिए आने वाली भीड़ के लिए पार्किंग के पर्याप्त बंदोबस्त किये थे ? क्या जिला प्रशासन को इस बारे में भ्रम में नहीं रखा गया और जब अराजक स्थितियां बन गयीं तो आयोजक हाथ खड़े करके खड़े हो गए .मै तो कहता हूँ कि सीहोर जिला प्रशासन ने बड़ी सूझबूझ से काम लिया अन्यथा वहां स्थितियां भयावह हो सकतीं थीं .

कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री के सत्रह साल के कार्यकाल में सिंहस्थ और इज्तमा जैसे आयोजनों का हवाला देते हुए निशाने पर लिया है. वे आखिर इस आयोजन की तुलना इन दो बड़े पारम्परिक आयोजनों से कैसे कर सकते हैं ?बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी .सिंहस्थ के आयोजन में लोनिवि मंत्री के रूप में इंतजामों को लेकर कितने आरोप लगे थे ,ये सबको पता है लेकिन चूंकि सरकार भाजपा की थी इसलिए सभी दोषियों को बख्श दिया गया .इसके लिए उनका आभार मानने के बजाय रुद्राभिषेक स्थगित करने के बहाने अपना रौद्र रूप दिखाना हास्यास्पद है .कैलाश जी भूल गए कि महाशिवरात्रि पर ही उज्जैन में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल होने के लिए मामा सरकार और उज्जैन जिला प्रशासन ने ही दीपोत्सव का सारा इंतजाम किया था ,यानि प्रदेश की सरकार धर्म विरोधी नहीं बल्कि पूरी तरह से धर्मभीरु है .

पिछले कुछ वर्षो से देखने में आ रहा है कि भाजपा जहाँ-जहां भी सत्ता में है वहां धर्मान्धता लगातार बढ़ रही है. भाजपा के नेता अपनी निजी धार्मिक आस्थाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन ही नहीं कर रहे बल्कि इसके लिए सत्ता और संगठन का भी इस्तेमाल कर रहे हैं .[याद रखिये कि मैंने इसके लिए दुरूपयोग शब्द का इस्तेमाल नहीं किया ]ये एक तरह की नए किस्म की राजनीति है .दुर्भाग्य से इस अभियान में देश के पंत प्रधान तक शामिल हैं .इस विषय को लेकर एक भाजपा भक्त ने सवाल उठाया था कि क्या वजह है कि देश और प्रदेश में अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों का प्रबंध सरकारों के हाथों में नहीं है जबकि बहुसख्यंकों के पूजाघरों का प्रबंध सरकार खुद देखती है ?इस सवाल में ही जबाब छिपा है .और यही जबाब कैलाश जी के वर्गीकृत गुस्से का उत्तर भी है .

दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां धार्मिकता की आड़ में अराजकता पैदा करने की अघोषित रूप से संवैधानिक छूट है.आप चाहे कांबड़ यात्रा करें चाहे सड़कों पर भंडारे कर गंदगी फैलाएं,कोई आपको रोक नहीं सकता .आपको चुनाव प्रचार में रामलीलाओं के प्रदर्शन से बंगाल की ममता सरकार तक नहीं रोक पायी थी .और जहां तक अल्पसंख्यकों के धार्मिक आयोजनों का सवाल है उनमें से ज्यादातर तो सरकारों के भरोसे होते नहीं हैं और जो होते हैं उनमने एक खास किस्म का आत्मानुशासन दिखाई देता है .कम से स्वच्छता के मामले में अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से आगे हैं .

बहरहाल बात कैलाश विजयवर्गीय के वर्गीकृत गुस्से की है तो मै फिर कहूंगा कि वे मुख्यमंत्री और सीहोर जिला प्रश्न के साथ ज्यादती कर रहे हैं .उन्हें दोनों की सराहना करनी चाहिए चाहिए और भविष्य में इस तरह के अप्रिय प्रसंग उपस्थित न हों इसके लिए स्थायी इंतजाम करने में अपना सहयोग करना चाहिए .इंदौर में कैलाश जी को ऐसा करते हुए सबने देखा है. वे कुशल प्रबंधक हैं .बेहतर हो कि वे अपने अनुभवों का लाभ अपनी पार्टी की सरकार को दें .मुमकिन हो तो इस तरह के आयोजनों के नियमन के लिए प्रदेश के धार्मिक धर्मस्व मंत्री को तैनात करें कि जब तक इसी भी धर्म के आयोजन के लिए भीड़ नियंत्रण और पार्किंग तथा सुरक्षा के पूरे इंतजाम न हो जाएँ तब तक उनके आयोजन की अनुमति न दी जाये .
सिंहस्थ और इज्तमा के लिए तो सरकार पहले से ये काम करती ही आ रही है.हाल ही में सरकार ने अपने एक मंत्री को पूरे चार माह तक कुंडलपुर महोत्स्व के लिए तैनात कर ऐसा ही इंतजाम कर दिखाया है .धर्मभीरु सरकार चाहे तो जिला स्तर पर धार्मिक आयोजनों के लिए बीस सूत्रीय जिला समितियों की तरह समितियों का गठन भी कर दे तो बेहतर है .कम से कम कैलाश जी को गुस्सा होने का मौक़ा तो नहीं मिलेगा .सरकार चाहे तो एक नया अधिकरण बनाकर कैलाश जी को ही उसका प्रमुख ना दे क्योंकि हाल फिलहाल उनके मुख्यमंत्री बनने के तो कोई लक्षण दिखाई नहीं देते .
@ राकेश अचल

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