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भाजपा शासित उत्तर प्रदेश देश के सबसे गरीब राज्यों में तीसरे स्थान पर, नीति आयोग की रिपोर्ट

@शब्द दूत ब्यूरो (26 नवंबर 2021)

उत्तर प्रदेश बिहार और झारखंड देश के सबसे गरीब राज्यों में हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट ये कहती हैं। झारखंड में 42.16 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 37.79 फीसदी आबादी गरीब है। सूचकांक में मध्य प्रदेश (36.65 फीसदी) चौथे स्थान पर है, जबकि मेघालय (32.67 प्रतिशत) पांचवें स्थान पर है।

भारत का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव  और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विकसित विश्व स्तर पर स्वीकृत और मजबूत पद्धति का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में मुख्य रूप से परिवार की आर्थिक हालात और अभाव की स्थिति को आंका जाता है। 

केरल (0.71 प्रतिशत), गोवा (3.76 प्रतिशत), सिक्किम (3.82 प्रतिशत), तमिलनाडु (4.89 प्रतिशत) और पंजाब (5.59 प्रतिशत) पूरे देश में सबसे कम गरीब लोग वाले राज्य हैं और इस सूचकांक में सबसे नीचे हैं। 

भारत के एमपीआई में तीन समान आयामों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का मूल्यांकन किया जाता है। इसका आकलन पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते जैसे 12 संकेतकों के जरिए किया जाता है। साल 2015 में 193 देशों द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) रूपरेखा ने दुनिया भर में विकास की प्रगति को मापने के लिए विकास नीतियों और सरकारी प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित किया है। 

इस रिपोर्ट के लिए स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा की स्थिति को देखा गया। 
नीति आयोग की जो सूचकांक प्रस्तावना है उसमें आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक का विकास एक सार्वजनिक नीति उपकरण स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह बहुआयामी गरीबी की निगरानी करता है, साक्ष्य-आधारित और केंद्रित हस्तक्षेप के बारे में बताता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी पीछे न छूटे। 

राजीव कुमार ने यह भी कहा कि भारत के पहले राष्ट्रीय एमपीआई की यह आधारभूत रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की 2015-16 की संदर्भ अवधि पर आधारित है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय एमपीआई को 12 प्रमुख घटकों का इस्तेमाल करके तैयार किया गया है, जिसमें स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है। 

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