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उत्तराखंड आपदा:ग्लेशियर टूटने की दो साल पहले वैज्ञानिकों ने चेतावनी दे दी थी

@शब्द दूत ब्यूरो

नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद हुई तबाही की वजहों पर चर्चा तेज हो गई है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने दो साल पहले ही एक अध्ययन में आगाह कर दिया था कि हिमालय के ग्लेशियर बेहद तेजी से पिघल रहे हैं और बड़े हिमखंड टूटकर गिरने से बड़ी आपदा आ सकती है।

साइंस एडवांस जर्नल में जून 2019 में प्रकाशित अध्ययन में दावा किया गया था कि तापमान बढ़ने के कारण हिमालय के हिमखंड (ग्लेशियर) दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं। इससे भारत समेत कई देशों के करोड़ों लोगों पर संकट आ सकता है। इन इलाकों में जलापूर्ति प्रभावित हो सकती है। भारत, चीन, नेपाल और भूटान में 40 वर्षों के दौरान सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के अध्ययन में यह जानकारी मिली थी। इसमें पाया गया था कि जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालयी ग्लेशियर तेजी से समाप्त हो रहे हैं। दोगुना अधिक तेज गति से पिघल रहे हैं।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता जोशुआ मोरेर ने कहा था कि तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट है कि कितनी तेजी से और क्यों हिमालय के हिमखंड पिघल रहे हैं। अध्ययन के अनुसार,चार दशकों में हिमखंडों ने अपने आकार का एक चौथाई हिस्सा खो दिया है। शोधकर्ताओं ने धरती के बढ़ते तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था। वैज्ञानिकों ने कहा था कि अलग-अलग स्थान का तापमान भिन्न है। लेकिन यह वर्ष 1975 से 2000 की तुलना में वर्ष 2000 से 2016 के बीच औसतन एक डिग्री अधिक पाया गया है।

पश्चिम से पूर्व तक 2,000 किलोमीटर के दायरे में फैले करीब 650 हिमखंडों की सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया गया था। अमेरिकी खुफिया सैटेलाइट की थ्री डी तस्वीरों में बदलाव साफ देखा जा सकता था। अध्ययनकर्ताओं ने जब वर्ष 2000 के बाद ली गई तस्वीरों की पुरानी तस्वीरों से मिलान किया तो सामने आया कि 1975 से 2000 के दौरान प्रतिवर्ष हिमखंडों की 0.25 मीटर बर्फ कम हुई। वहीं पाया गया कि 1990 के दशक में तापमान में वृद्धि के चलते यह बढ़कर आधा मीटर प्रतिवर्ष हो गई।

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