भारत में कोरोना वायरस से बचाव के लिए दो वैक्सीनों को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिली है, पहली कोविशील्ड और दूसरी कोवैक्सीन। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविशील्ड टीके का उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कर रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट को दुनिया की सबसे बड़ी ‘वैक्सीन फैक्ट्री’ भी माना जाता है। पुणे स्थित सीरम की फैक्ट्री का निर्माण 1966 में हुआ था।
कोरोना महामारी से पहले भी सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया में अपना डंका बजा चुका है। एक साल में पोलियो समेत अन्य बीमारियों से बचाव के लिए 1.5 बिलियन वैक्सीन का निर्माण कर सीरम ने दुनियाभर में अपना नाम किया था। पूनावाला परिवार इस फर्म के मालिकान हैं। दरअसल, परिवार को कंपनी बनाने का आइडिया एक फार्म में आया था, जहां घोड़े पाले जाते थे। पशु चिकित्सक के साथ बातचीत से पहले यह एहसास हुआ कि पशुओं से निकाले जाने वाले एंटी-टॉक्सिन सीरम का इस्तेमाल टीका बनाने के लिए किया जा सकता है।
प्रतिद्वंद्वी फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन के विपरीत, कोविशील्ड को तय मानकों के अनुरूप ठंड में संग्रहीत कर इसको ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। यह फाइजर की वैक्सीन के मुकाबले किफायती भी है। यही वजह है कि दुनिया के दूसरे देश भारत में निर्मित वैक्सीन पर भरोसा कर रहे हैं और इसकी मांग कर रहे हैं।
बता दें कि सीरम इंस्टीट्यूट के मंजरी परिसर में पांच मंजिला निर्माणाधीन भवन में बीते दिनों आग लगने की घटना में संविदा पर काम करने वाले पांच मजदूरों की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री ठाकरे स्वयं पुणे स्थित इंस्टीट्यूट पहुंचे और वहां हुए नुकसान का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि कि परिसर में लगी आग दुर्घटना है या किसी ने जानबूझकर ऐसा किया है, इसका खुलासा जांच रिपोर्ट आने पर ही होगा। आग से नुकसान के बारे में बताते हुए अदार पूनावाला ने कहा, ‘1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है क्योंकि वहां ऐसे उपकरण और उत्पाद रखे हुए थे, जिन्हें बाजार में लॉन्च किया जाना था।’