@विनोद भगत
काशीपुर । विकास के मामले में पिछड़े काशीपुर में नेताओं की भी लगातार उपेक्षा की जा रही है। प्रमाण है कि सत्ताधारी दल होने के बावजूद काशीपुर में एक भी भाजपा नेता को दायित्व नहीं सौंपा गया है। इससे स्थानीय भाजपा नेताओं में बेचैनी है।
बीती शाम सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ग्यारह भाजपा नेताओं को दायित्व सौंपे लेकिन उनमें से एक भी काशीपुर का नहीं। जबकि पिछले बीस वर्षों से यहाँ के भाजपा नेता लगातार अपनी पार्टी का विधायक जताते आये हैं। यही नहीं जब भी प्रदेश या केंद्र स्तर का कोई नेता काशीपुर आता है तो यहाँ के भाजपा नेता उसके स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ते। बीस वर्षों से विधायक बनते आ रहे हरभजन सिंह चीमा को प्रदेश में मंत्री पद नहीं मिला वहीं अब दायित्व के नाम पर यहाँ संख्या शून्य। तो क्या शून्य है स्थानीय भाजपा नेताओं की उपलब्धि हाईकमान की नजर में।
एक भाजपा नेता ने तो नाम न बताने की शर्त पर कहा कि लगता है इस बार पार्टी को काशीपुर में ज्यादा आत्मविश्वास हो गया है। उनका कहना है कि हाईकमान की नजर में यहाँ के नेताओं की उपयोगिता महज चुनाव के दौरान ही है। ऐसे में पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
एक अन्य भाजपा नेता तो पार्टी में आये ही इस शर्त पर थे कि उन्हें समय आने पर उचित सम्मान से नवाजा जायेगा। पर वह उचित समय कब आयेगा? इसकी उन्हें प्रतीक्षा है। काशीपुर में तमाम प्रदेश स्तर के भाजपा नेता है। हालांकि पार्टी अनुशासन के डंडे की वजह से चुप हैं।
काशीपुर की चुनावी रणनीति की एक खास बात यह है कि चुनाव के दौरान रातोंरात किसी भी दल के लोग किसी भी दल के पक्ष में वोटिंग के लिए पलट जाते हैं। अब वह नेता चाहे कांग्रेस के हों या भाजपा के। कई चुनावों में ऐसा देखा गया है। इस बार का मेयर चुनाव तो इसका ताजा उदाहरण है। जीत के नजदीक आकर भी प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा।
काशीपुर के नेताओं की उपेक्षा किसी भी दल को भारी पड़ सकती है। इस बार कहीं अपनी उपेक्षा से व्यथित स्थानीय भाजपा नेता ही पांसा पलट न दें।