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शहरनामा :काशीपुर के जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा 30 वर्षों से क्यों? जनता को पूछना चाहिए ये सवाल, एनडी तिवारी आखिरी मंत्री उसके बाद शून्य क्यों?

@विनोद भगत

काशीपुर । केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा पिछले तीस सालों से काशीपुर के जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा की जा रही है। सरकारें इस दौरान किसी भी दल की रही हों। काशीपुर से चुने गए विधायक को हमेशा नगर की समस्याओं और विकास के लिए दूसरों के भरोसे रहना पड़ता है। यहाँ तक कि सासंद भी जो चुने गए हैं उन्होंने जीतने के बाद काशीपुर की ओर मुड़कर नहीं देखा। इक्का दुक्का मौकों पर जरूर यहाँ आते हैं पर अपनी जयजयकार और स्वागत समारोहों में माल्यार्पण करवा कर चले जाते हैं। हालांकि जनता भी इतने में ही खुश हो जाती है। और शहर की दुर्दशा को नजरअंदाज कर जनप्रतिनिधि को सर आंखों पर बैठा देती है।

काशीपुर एक समय उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश की राजनीति का केंद्र होता था। शहर में तमाम शिक्षण संस्थान, औद्योगिक क्षेत्र पूरे देश के लिए मिसाल थे। लेकिन धीरे-धीरे काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से कई महत्वपूर्ण संस्थान हटा दिये गये। मसलन राष्ट्रीय स्तर का आईआईएम संस्थान कहने को तो काशीपुर में कहा जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि अब यह बाजपुर विधानसभा में है। राजनैतिक तिकड़म इस चतुराई से की गई कि शहर के लोगों को मालूम भी नहीं हो पाया कि आईआईएम अब काशीपुर विधानसभा में नहीं है।

जिले की मांग को लेकर एक समय काशीपुर के लोग और तमाम राजनीतिक व सामाजिक संगठन एक स्वर में आवाज उठाते थे। याद दिला दें कि पिछले बीस वर्षों से लगातार विधायक बनते आ रहे हरभजन सिंह चीमा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत ही काशीपुर जिले की मांग को लेकर की थी। एक बार तो उन्होंने यह तक कह दिया कि काशीपुर जिला नहीं बना तो विधायकी छोड़ देंगे। खैर यह तो एक राजनीतिक जुमला मात्र रह गया और लोग भी भूल गये। 

काशीपुर के लोग अपने द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि को मंत्री पद पर देखने को तरस चुके हैं। स्व नारायण दत्त तिवारी संभवतः वह आखिरी जनप्रतिनिधि थे जो मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके हैं। वहीं स्व सत्येंद्र चंद्र गुड़िया भी प्रदेश सरकार (यूपी) में उपमंत्री रह चुके हैं। एक और मंत्री जो थे तो काशीपुर के लेकिन कांठ विधानसभा से विधायक रहने के दौरान यूपी सरकार में मंत्री रहे थे। स्व समरपाल सिंह मूल रूप से काशीपुर के नजदीक कुंडेश्वरी के निवासी थे।

सवाल यह उठता है कि प्रचंड बहुमत से चुने जाने के बावजूद काशीपुर के जनप्रतिनिधियों की प्रदेश सरकार द्वारा लगातार उपेक्षा की जा रही है। दरअसल यह उपेक्षा जनप्रतिनिधि से ज्यादा यहाँ की जनता की कही जाये तो गलत नहीं होगा। जनता ने जिस जनप्रतिनिधि को इतना महत्व दिया उसे सरकार द्वारा महत्व न देना एक गंभीर चर्चा का विषय है।

शहर की दुर्दशा का रोना तो पूरे नगर की जनता रोती है। लेकिन सरकार काशीपुर के जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा कर रही है। इस ओर जनता का ध्यान नहीं जाता। प्रचंड बहुमत देकर जिताने वाली जनता आखिर खामोश क्यों है? यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए उन मंत्रियों और सरकार में बैठे जिम्मेदार नेताओं से कि क्यों इस शहर की उपेक्षा निरंतर होती रहेगी?

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