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मिसाल :काशीपुर की गीता लोकल के लिए वोकल का उदाहरण है,

@विनोद भगत 

काशीपुर । नई सब्जी मंडी में सब्जी के फड़ पर बैठी महिला बड़ी तल्लीनता से मिट्टी की मूर्तियों को आकार दे रही थी। बाजार में आते-जाते लोगों के बीच वह लोकल के लिए वोकल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान को साकार करने में जुटी हुई थी। हालांकि वह यह मूर्तियां आज से नहीं वर्षों से बनाती आ रही थी। 

गीता अपने सधे हुये हाथों से मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियां तैयार करने में मशगूल थी। जहाँ बड़ी बड़ी दुकानों में महंगी मूर्तियां वह भी विदेशी खासतौर पर भारतीय देवी देवताओं की खरीदने के लिए लोग जाते हैं। वहाँ मौ कटरामालियान निवासी गीता बिना किसी सरकारी मदद के इस छोटे से उद्योग की स्वामिनी बन कर खुद का रोजगार अपनाये हुये है।

गीता से बात करने पर उसने शब्द दूत को बताया कि वह सावन, नवमी, नवरात्र, दीवाली आदि अवसरों पर खुद ही मूर्तियां बनाकर बेचती है। अभी वह जो मूर्तियां बना रही है उन पर बाद में रंग भी भरा जाता है। हालांकि हमने देखा कि इस दौरान भी वहां लोग इन मूर्तियों को बगैर रंग के भी खरीदने आ रहे थे।

गीता की बनाई इन मूर्तियों की मांग भी काफी है। उसने बताया कि लोग आर्डर देकर भी उनसे मूर्तियां बनवाते हैं। उनकी बनाई मूर्तियों में दुर्गा माता, शिव पार्वती, श्रीकृष्ण, और स्थानीय गुरुओं की मूर्तियों की बड़ी मांग है। स्कूल में जब बच्चों से मूर्तियां मंगवाई जाती है तो बच्चे गीता की ही मदद लेते हैं। गीता ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं लेकिन पढ़ी लिखी महिलाओं से ज्यादा आत्मनिर्भर है। 

गीता के परिवार का भी उन्हें पूरा साथ मिलता है। पति और बच्चे गीता की इस कला का सम्मान करते हैं। उनके पति इन्द्र कुमार छोले भटूरे का व्यवसाय करते हैं। 

गीता लोकल के लिए वोकल के नारे को साकार कर रही है। पर बिना किसी सरकारी मदद के। दरअसल सरकारी मदद गीता जैसी वास्तविक कलाकार के लिए नहीं है। पर वह मशगूल है अपने कर्म में।

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