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कोविड-19: ग्यारह हिमालयी राज्यों में से टेस्टिंग के मामले में उत्तराखंड दसवें स्थान पर

@शब्द दूत ब्यूरो

देहरादून। उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग की मानें तो राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर स्थिति काफ़ी अच्छी है क्योंकि कोविड-19 के मरीज़ों की रिकवरी दर प्रदेश में 80% से ज़्यादा है। लेकिन यह सिक्के का एक ही पहलू है। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल उत्तराखंड से 80% ज़्यादा टेस्ट कर चुका है। टेस्टिंग के मामले में उत्तराखंड इतना पिछड़ा हुआ है कि 11 हिमालयी राज्यों में यह 10वें नंबर पर है। चिंता की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग टेस्टिंग बढ़ाने के दावे तो कर रहा है लेकिन यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कब, कैसे और कितने टेस्ट बढ़ेंगे।

दुनिया भर के विशेषज्ञ बता चुके हैं और बार-बार कह रहे हैं कि किसी भी संक्रामक रोग में ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट किया जाना बेहद ज़रूरी होता है ताकि संक्रमण की वास्तविक स्थिति का पता चल सके और उसे फैलने से रोका जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कई बार टेस्टिंग बढ़ाने की सलाह दे चुका है लेकिन शायद यह बातें उत्तराखंड के हुक्मरानों के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है।

उत्तराखंड में अब तक करीब सवा तीन लाख प्रवासी वापस आ चुके हैं लेकिन कुल टेस्ट एक लाख से भी कम हुए हैं। हालांकि उत्तराखंड के स्वास्थ्य महानिदेशालय के अनुसार उत्तराखंड में कोविड-19 की टेस्टिंग लगभग दोगुनी हो गई है।

आईसीएमआर की वेबसाइट के अनुसार उत्तराखंड में फिलहाल 16 सरकारी और 2 प्राइवेट लैब्स कोविड-19 की टेस्टिंग कर रही हैं। स्वास्थ्य विभाग ने प्राइवेट लैब्स (आईसीएमआर से अप्रूव्ड) को टेस्टिंग के लिए आमंत्रण दिया था। स्वास्थ्य महानिदेशालय के अनुसार 4 लैब हैं जिन्होंने टेस्ट करने के लिए सहमति दी है।

कोरोना वायरस को लेकर आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे गैर सरकारी संगठन एसडीसी के अनुसार 11 हिमालयी राज्यों में से उत्तराखंड टेस्टिंग के मामले में 10वें स्थान पर है. इस लिस्ट में सबसे ऊपर लद्दाख (UT) है जो हमसे 7 गुना ज़्यादा टेस्ट कर चुका है। पड़ोसी राज्य हिमाचल उत्तराखंड से 80% ज़्यादा टेस्ट कर चुका है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि कोरोना वायरस के 75 फ़ीसदी मरीज़ एसिम्प्टमैटिक (ऐसे कोविड-19 पॉज़िटिव लोग जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे) या बहुत कम लक्षण वाले हैं। दिल्ली में कोविड-19 के एसिम्प्टमैटिक मरीज़ों का 5 दिन के लिए इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन जून में ही अनिवार्य कर दिया गया था।

उत्तराखंड में कितने लोग एसिम्प्टमैटिक हैं इसके बारे में स्वास्थ्य विभाग को कोई जानकारी नहीं है। दरअसल जो राज्य टेस्टिंग के लिहाज से इतना पिछड़ा हुआ हो कि न्यूनतम टेस्ट तक नहीं करवा पा रहा उसे एसिम्प्टमैटिक मरीज़ों का पता कैसे लगेगा?

यहां यह भी गौरतलब है कि प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की पत्नी को कोविड-19 संक्रमण का पता एक निजी लैब में हुए टेस्ट से चला था। मंत्री जी के कैबिनेट बैठकों में शामिल होने की वजह से मुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट के संक्रमित होने का खतरा पैदा हो गया था। सतपाल महाराज समेत उनके परिवार और स्टाफ़ के ज़्यादातर सदस्य एसिम्प्टमैटिक थे यानी उनमें कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे।

दुनिया भर में कोरोना वायरस, कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने पर तेज़ी से काम चल रहा है। भारत में आईसीएमआर 15 अगस्त तक कोविड-19 की वैक्सीन लांच करने की बात कह चुका है। चीन की एक फ़ार्मा कंपनी की वैक्सीन का दूसरे दौर का ट्रायल शुरु हो रहा है और रूस के रक्षा मंत्रालय की वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल अंतिम दौर में है। एक अमेरिकन फ़ार्मा कंपनी ने एक यूरोपीय कंपनी से प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए करार कर लिया है।

इस सबके विपरीत उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग को टेस्टिंग को तेज़ करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हो रही। विभाग के काम करने की रफ़्तार और बर्ताव को देखते हुए यह तय है कि जब तक उत्तराखंड में पर्याप्त (लद्दाख नहीं तो हिमाचल के बराबर) टेस्टिंग की जाएगी, उससे पहले कोविड-19 की वैक्सीन आ जाएगी।

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