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सोचो ! आखिर आरएसएस को क्या हुआ ? वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

आप मंगलसूत्र और विरासत कर की अफवाहों में उलझ गए ,और आपसे एक महत्वपूर्ण खबर छूट गयी । खबर ये है कि जिस आरएसएस की इकलौती संतान भाजपा दस साल केंद्र की सत्ता में रह चुकी उस आरएसएस का शताब्दी समारोह नहीं मनाया जाएगा। संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने खुद ये ऐलान किया ,लेकिन कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर संघ को हुआ क्या जो उसने इतने महत्वपूर्ण अवसर पर एकजुटता दिखाने से मना कर दिया ?

व्यक्ति हो या संस्था ,सभी के लिए सौ का आंकड़ा पार करना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है । भारत में आमतौर पर जन्मदिन पर शतायु होने का आशीर्वाद दिया जाता है। संस्थाएं हों या दल अपनी स्थापना का रजत,स्वर्ण और हीरक जयंती मनाते हैं। कोई इस ख़ास मौके को छोड़ना नहीं चाहता,किन्तु संघ अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष को यादगार नहीं बनाना चाहता। ये हैरान करने वाली घटना है। आखिर ऐसा क्या अशुभ हो गया जो संघ ने अपने शतायु होने को समारोहपूर्वक मनाने का इरादा छोड़ दिया ,जबकि तमाम परिस्थितियां संघ के अनुकूल हैं।

आप सब जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर सन् 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी।
संघ ने आजादी की लड़ाई में क्या कुछ किया ये सब विवादास्पद है ,और हो सकता है। किन्तु संघ प्रतिबंधों कि बावजूद लगातार भारत की राजनीति में किसी न किसी रूप में हिस्सा लेता रहा है । राजनीति में हिस्सेदारी कि लिए संघ ने जनसंघ बनाया। देश में जब 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मिलीजुली सरकार बनी।इसी जनसंघ और संघ की वजह से 1980 में जनता पार्टी टूटी भी और भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ। संघ को देश की सत्ता हासिल करने में पूरे 75 साल लगे। संघ की लम्बी साधना और प्रतीक्षा का ही सुफल था कि 2000 में जब संघ 75 वर्ष का हुआ तब संघदक्ष शाखामृग अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की मिलीजुली सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।

संघ की स्थापना का मूल और प्रारंभिक लक्ष्य हिंदू अनुशासन के माध्यम से चरित्र प्रशिक्षण प्रदान करना और हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिंदू समुदाय को एकजुट करना था। संघ अपने एक उद्देश्य में तो सफल हुआ किन्तु उसकी कल्पना का देश प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी नहीं बना सके। लेकिन संघ ने हार नहीं मान। संघ अपने संगठन कि माध्यम से भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देता रहा। बाजपेयी जी की सत्ता जाती रही किन्तु संघ बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को “मजबूत” करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करने से पीछे नहीं हटा।
बाजपेयी कि बाद संघ ने फिर साधना की और 2014 में अपने नए शाखामृग नरेंद्र मोदी कि जरिये देश की सत्ता पर अपना अधिकार जमाया। मोदी जी 2019 में दूसरी बार भी प्रधानमंत्री बने । उनके शासनकाल में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और राम मंदिर बनाने का सपना भी पूरा हुआ ,लेकिन इस दौर में संघ कमजोर और मोदी जी मजबूत होते चले गये । आज स्थिति ये है कि संघ मोदी जी को नहीं नचा पा रहा जबकि मोदीजी संघ को अपनी उँगलियों पर नचाने में समर्थ हो गए हैं।

मोदी जी की मजबूती से लगातार कमजोर हुआ संघ अब सन्निपात में है। उसे खतरा है कि मोदी ब्रांड आने वाले दिनों में संघ को भी लील सकता है। इसीलिए तीसरी बार सत्ता में वापसी के लिए कमर कसकर काम कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अकेला छोड़कर संघ ने अपनी स्थापना का शताब्दी समारोह मनाने का इरादा ही बदल दिया।

जानकार सूत्र कहते हैं कि मोदी जी पिछली आधी सदी से भी ज्यादा समय से संघ कि लिए काम कर रहे दत्तात्रय होसबाले को संघ की कमान सौंपना चाहते हैं। दत्तात्रय इस समय संघ के सरकार्यवाह हैं और उनका कार्यकाल 2027 तक है। मजे की बात ये है कि संघ के प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने अगले साल होने वाले संघ के शताब्दी समारोह को न मनाने का निर्णय अचानक लिया या ये पहले से तय था ,कोई नहीं जानता। लेकिन आशंका और अनुमान ये है कि डॉ भागवत संघ का शताब्दी समारोह मोदी जी के प्रयोजकत्व में नहीं मनाना चाहते। उन्हें भय है कि मोदी जी ने जैसे अब तक तमाम महत्वपूर्ण अवसरों पर देश की राष्ट्रपति,लोकसभा अध्यक्ष और शंकराचार्यों को पीछे धकेलकर अपनी प्रभुता स्थापित की है ,वैसा ही वे संघ के शताब्दी समारोह में भी करने से बाज नहीं आएंगे।

आपको बता दें कि डॉ मोहनलाल मधुकर राव भागवत 2009 से संघ की कमान सम्हाल रहे है। यानि वे इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी वरिष्ठ हैं। मोदी केंद्र की सत्ता में 2014 में आये। डेढ़ दशक से संघ की कमान सम्हाल रहे डॉ मोहन भागवत किसी भी सूरत में संघ को मोदीमय नहीं होने देना चाहते। मोदी जी के कार्यकाल में संघ के मुकाबले भाजपा ज्यादा मजबूत हुई है । देश के 450 जिलों में भाजपा के आधुनिक कार्यालय खोले किन्तु संघ की शाखाएं लगातार कम होती गयीं। एक जमाने में संघ की प्रात:,शाम और रात को भी लगभग 55 हजार से ज्यादा शाखाएं लागतीं थीं,किन्तु अब ये संख्या लगातार घट रही है । स्वयं सेवक संघ के बजाय भाजपा को महत्व देने लगे हैं। डॉ भागवत की नींद इसी वजह से उड़ी हुईहै। मोदी जी ने तीसरी बार सत्ता में वापस लौटने के लिए संघ परिवार की पुरानी अवधारणा पर भी धूल डालते हुए नया जुमला ‘मोदी का परिवार ‘ देकर संघ को सन्निपात की स्थिति में ला खड़ा किया है।

डॉ भागवत मोदी सरकार का या खुद मोदी का अहसान संघ के ऊपर नहीं लादना चाहते ,इसीलिए उन्होंने संघ का शताब्दी समारोह न मनाने का अप्रत्याशित फैसला सुना दिया। अब जो भी होगा वो डॉ भगवत का कार्यकाल समाप्त होने के बाद होगा। तब मुमकिन है कि दत्तात्रय होसवाले ही संघ के मुखिया हो जाएँ। आपको याद दिला दूँ कि हिंदुत्व,आरक्षण,मुसलमान जैसे अनेक ज्वलंत मुद्दों पर डॉ भागवत और माननीय मोदी जी के विचारों में अंतर्विरोध लगातार झलकता रहा है। डॉ भागवत उदारवादी संघ स्वयं सेवक हैं जबकि मोदी जी कटटरवादी। दोनों के बीच तालमेल की कमी हमेशा महसूस की जाती रही। लेकिन पिछले दस साल में ऐसा एक भी मौक़ा नहीं आया जब संघ ने मोदी जी को नागपुर मुख्यालय बुलाकर हड़काया हो। मोदी जी लगातार संघ की कमान से बाहर होते जा रहे हैं। अब देखना ये है कि संघ की नयी मुद्रा से मोदी जी का भविष्य बनता है या बिगड़ता है ? कुछ जानकारों का कहना है कि संघ को आभास हो गया है कि तीसरी बार मोदी जी का सत्ता में आना संदिग्ध है । वे यदि आ भी गए तो वे न केवल अवाम कि प्रति बल्कि संघ के प्रति भी और निर्मम हो सकते हैं।
@ राकेश अचल
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