पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर की नई जीवनी से बिपिन रावत की सेना प्रमुख के रूप में नियुक्ति को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। उन्हें दो वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी करके सेना प्रमुख बनाया गया था। उस समय दावा किया गया था कि उन्हें सेना प्रमुख बनाने में सही प्रक्रिया का पालन किया गया।
‘मनोहर पर्रीकर : ए ब्रिलिएंट माइंड, सिंपल लाइफ’ में लेखक नितिन गोखले लिखते हैं, ‘यह बोल्ड फैसला था क्योंकि सिविल नेतृत्व सामान्यत: परंपराओं के साथ छेड़छाड़ करना पसंद नहीं करता। पर्रीकर इस बात से आश्वस्त थे कि उस समय भारतीय सेना के प्रमुख के रूप में जनरल रावत बेहतर विकल्प थे। इसलिए उन्होंने दो वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी करके जनरल रावत को सेना प्रमुख बनाने की सिफारिश पर हस्ताक्षर किए थे।’
सेना के इतिहास और लड़ाइयों पर आधा दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके गोखले अपने बेहद करीबी मित्र के साउथ ब्लाक में 28 महीनों के कार्यकाल के बारे में लिखते हैं, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्रीकर के फैसले से सहमति जताई और 31 दिसंबर, 2016 को वह फैसला लिया जिसे एक सेना प्रमुख को नियुक्त करने की परंपरा को तोड़ने वाला माना जाता है। मुझे अब यह तथ्य उजागर करने की आजादी है कि पर्रीकर ने मुझे करीब एक महीने पहले यह गोपनीय बात बता दी थी कि वह जनरल रावत की अगले सेना प्रमुख के रूप में नियुक्ति की सिफारिश कर रहे हैं।’
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