@शब्द दूत ब्यूरो (08 मार्च 2024)
जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के सियासी पाला बदलने से बिहार में सत्ता का स्वरूप ही नहीं बल्कि गठबंधन का समीकरण ही बदल गया है. नीतीश के महागठबंधन में रहते हुए चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में मजबूत पिलर माने जा रहे थे, लेकिन जेडीयू की एंट्री होते ही सारा खेल बदल गया है. जेडीयू और बीजेपी अपनी-अपनी जीती लोकसभा सीटें छोड़ने लिए तैयार नहीं है, जिसके चलते चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को सीटें हासिल करने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है तो जीतनराम मांझी की गया लोकसभा सीट की मनोकामना पर भी संकट गहराया हुआ है. इसके चलते एनडीए में सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय नहीं हो पा रहा.
बिहार में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर जबरदस्त तरीके से पेंच फंसा हुआ है. सूबे में 40 लोकसभा सीटें है, जिसमें से 39 सीटों पर एनडीए का कब्जा है. 2024 के चुनाव में सूबे की सभी 40 सीटों को जीतने का प्लान बीजेपी ने बना रखा है, जिसके लिए नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी की पटकथा लिखी गई. नीतीश के आने से बिहार में एनडीए का सियासी समीकरण जरूर मजबूत हुआ है, लेकिन साथ ही कुशवाहा-चिराग-मांझी की सियासी उम्मीदों पर ग्रहण लगता नजर आ रहा. माना जा रहा है कि इसी कारण चिराग पासवान ने बिहार में पीएम मोदी की दोनों रैलियों से दूरी बनाए रखा, लेकिन गुरुवार देर शाम दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है.
क्या थे 2019 के सियासी समीकरण?
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन का हिस्सा बीजेपी, जेडीयू और अविभाजित एलजेपी थी. बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि 6 सीटों पर एलजेपी चुनाव लड़ी थी. बीजेपी अपनी सभी 17 सीटें जीत गई थी जबकि जेडीयू को 16 सीटों पर कामयाबी मिली थी. एलजेपी अपने कोटे की सभी 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस बार एनडीए गठबंधन में बीजेपी, जेडीयू, जीतन राम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम के अलावा एलजेपी के दोनों धड़े शामिल हैं. इस तरह एनडीए का कुनबा बड़ा हो गया है, लेकिन सभी अपने-अपने डिमांड से पीछे हटने को तैयार नहीं है. इसके चलते सीट शेयरिंग पर पेच फंस गया है.
बीजेपी बिहार में भले ही भाई की भूमिका में रहना चाहती है, लेकिन जेडीयू 2019 में जीती हुई सीटों को छोड़ना नहीं चाहती है. जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा इस बार एनडीए में टिकट के नए दावेदार हैं तो एलजेपी के दोनों धड़े पिछली बार से कम सीटों पर मानने को तैयार नहीं है. बीजेपी को बड़े भाई की भूमिका में एनडीए के सभी सहयोगी चाहते हैं, लेकिन अपनी हिस्सेदारी छोड़ने को भी कोई तैयार नहीं है. एनडीए में नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी में उपेंद्र कुशवाहा 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे, तब उन्हें तीन सीटें मिली थी. कुशवाहा तीनों सीटों जीतने में कामयाब रहे थे.
कुशवाहा को तीन सीटों के साथ मंत्री पद की उम्मीद
नीतीश 2022 में महागठबंधन में शामिल हुए तो कुशवाहा ने जेडीयू से बगावत कर एनडीए का हिस्सा बन गए. चिराग पासवान ने भी एनडीए के साथ खड़े हो गए, वो भी तब जब उनके चाचा पशुपति पारस उनसे पार्टी छीनकर मोदी सरकार में मंत्री बन गए थे. चिराग को लगा था कि फिर से एनडीए में रामविलास पासवान की तरह रुतबा हासिल हो जाएगा. कुशवाहा ने तीन लोकसभा सीटों के साथ केंद्र में मंत्री पद की उम्मीदें पाल रखी है तो चिराग पासवान ने भी छह सीटें की डिमांड कर रहे थे, लेकिन नीतीश के पाला बदलते ही दोनों ही नेताओं का सारा गणित बिगड़ गया है.
एनडीए में चिराग पासवान और पशुपति पारस को छह सीटें देने की बात चल रही है, लेकिन दोनों इसके लिए तैयार नहीं हैं. चिराग की मांग है कि जब एलजेपी टूटी नहीं थी 2019 के फॉर्मूले के मुताबिक उनके 6 सांसद जीते थे तो आगामी लोकसभा चुनाव में भी 6 सीटों पर उनका दावा बना रहा. एलजेपी के नेता राजू तिवारी ने कहा भी कि उनकी पार्टी छह सीटें और एक राज्यसभा सीट चाहती है, उससे कम पर समझौता नहीं होगा. पशुपति पारस का भी दावा है कि लोक जनशक्ति पार्टी के छह में से पांच सांसद अब उनके साथ हैं और उनकी पार्टी एलजेपी का हिस्सा है, ऐसे में उनका दावा भी 6 सीटों पर है.
हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर सियासी मतभेद
चाचा और भतीजे दोनों के बीच हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर भी लड़ाई है, जहां से दोनों लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. फिलहाल पशुपति पारस हाजीपुर से सांसद हैं, लेकिन चिराग पासवान ने भी अपने दिवंगत पिता राम विलास पासवान की विरासत का हवाला देते हुए हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं. बीजेपी दोनों ही नेताओं के बीच सुलह-समझौता का रास्ता तलाश रही है, लेकिन अभी तक मामला सुलझ नहीं पाया है. वहीं, कुशवाहा ने नीतीश के बागवत करके एनडीए के साथ आए थे, उन्हें कितनी सीटें मिलेंगी, उस पर तस्वीर साफ नहीं है. माना जा रहा है कि बीजेपी उन्हें अपने सिंबल पर चुनाव लड़ाना चाहती है जबकि वो तीन सीटें मांग रहे हैं.
एनडीए में सीट शेयरिंग का मामला न सुलझने के चलते चिराग पासवान ने बिहार में पीएम मोदी के कार्यक्रम में शरीक नहीं हुए थे. इतना ही नहीं बीजेपी के ‘मोदी का परिवार’ अभियान में भी चिराग शामिल नहीं हुए जबकि खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताया करते थे. बिहार में एनडीए के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है. समझा जाता है कि एनडीए में नीतीश की वापसी के बाद से ही चिराग पासवान नाराज हैं. बीजेपी ने बिहार में एलजेपी को 6 सीटों का ऑफर दिया है, जिसमें उन्हें अपने चाचा पशुपति पारस के साथ बांटना होगा.
चाचा-भतीजे की अदावत से फंसा पेंच
हालांकि, चाचा-भतीजे की अदावत के चलते सीट शेयरिंग का मामला फंसा हुआ है. नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद बीजेपी चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को बहुत खास तवज्जो नहीं दो रही है. इसके अलावा जीतन राम मांझी का भी मामला उलझा हुआ है, क्योंकि वो जिस गया सीट पर दावेदारी कर रहे हैं, वो सीट अभी नीतीश कुमार की पार्टी के पास है. जेडीयू अपनी सीटिंग सीट किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना चाहती है. जिसकी वजह से चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा बेबस नजर आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें विपक्षी खेमे के साथ भी बहुत ज्यादा सियासी फायदा नहीं दिख रहा है. बीजेपी नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शनिवार को बिहार पहुंच रहे हैं. माना जा रहा है कि वो सीट शेयरिंग की उलझी गुत्थी को सुलझाने का फॉर्मूला निकालेंगे?