@विनोद भगत
“मेरे सामने एक 21 वर्षीय युवती थी। मैं नहीं जानता था वह कौन है। शरीर के कपड़े फटे हुये थे। और जैसे ही उसके उपचार के लिये कपड़े हटाये तो एक डाक्टर होने के बावजूद मैं सहम गया। मैं समझ नहीं पाया कि कोई इतना निष्ठुर और निर्मम कैसे हो गया।”
ये शब्द हैं काशीपुर के चामुंडा कांप्लेक्स निवासी डा विपुल कंडवाल के। डा विपुल कंडवाल ही वह शख्स हैं जिनके सामने सबसे पहले निर्भया को इलाज के लिए लाया गया। डा विपुल कंडवाल उस समय नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में कार्यरत थे। शब्द दूत के संपादक से बात करते हुए डा विपुल कंडवाल उस घटना को याद करते हुए द्रवित हो उठे। उनके चेहरे पर उस पल की भयावहता नजर आने लगी थी।
डा विपुल कहते हैं कि वह उन पलों को भुलाना चाहते हैं।
वह याद करते हुए कहते हैं कि हमने तुरंत लगातार बहते हुए खून को रोकने के लिए सर्जरी करना आरंभ किया लेकिन खून बहना बंद नहीं हुआ। दरअसल क्रूरता की हद तक उसके शरीर पर रॉड से हमले किये गये थे। उसकी आंत भी गहरी कटी हुई थी।
डा कंडवाल ने बताया कि हम उसका इलाज कर ही रहे थे कि मीडिया और पुलिस के तमाम लोग पहुंच गए।
निर्भया की नाजुक हालत को देखते हुए चिकित्सकों का एक पैनल बनाया गया उस पैनल में वह भी शामिल थे। लेकिन निर्भया की लगातार बिगड़ रही हालत को देखते हुए उसे हायर सेंटर रैफर किया गया। जहाँ से बाद में उसे एयर एंबुलेंस से सिंगापुर ले जाया गया। डा कंडवाल बताते हैं कि हर कोई निर्भया को बचाना चाहता था। लेकिन कोशिशें बेकार हो गई। अंततः निर्भया को बचाया नहीं जा सका।
डा विपुल कंडवाल अब देहरादून में कार्यरत हैं। दून अस्पताल के निकट उनका अपना आरोग्य धाम सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर है। बता दें कि डा विपुल कंडवाल काशीपुर के प्रख्यात समाजसेवी और देवभूमि पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष बी डी कंडवाल के सुपुत्र हैं।