@शब्द दूत ब्यूरो (17 जुलाई 2025)
पटना। बिहार के एडीजी (मुख्यालय) कुंदन कृष्णन के हालिया बयान ने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा कर दी हैं। उन्होंने कहा कि मई-जून के महीनों में किसानों के पास काम नहीं होता, इसलिए इस अवधि में आपसी रंजिशें बढ़ती हैं और नतीजतन राज्य में हत्याएं अधिक होती हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही बरसात शुरू होती है और खेतों में काम बढ़ता है, वैसे ही अपराध की दर स्वतः ही घट जाती है।
एडीजी के इस बयान को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस बयान को गैरजिम्मेदाराना करार देते हुए कहा कि यह किसानों को बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रशासन अब हत्याओं की वजह कृषि चक्र को मानेगा? वहीं डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने भी कहा कि “किसान अपराधी नहीं होते, यह बयान असंवेदनशील है और इससे कानून-व्यवस्था की विफलता छिप नहीं सकती।”
पुलिस प्रशासन का तर्क है कि मई-जून में अपराध दर में बढ़ोतरी एक लंबे समय से देखी जा रही प्रवृत्ति है। एडीजी ने बताया कि इस बढ़ोतरी पर काबू पाने के लिए राज्यभर में ‘शूटर सेल’ का गठन किया गया है, जिसमें शूटरों की पहचान कर उन्हें चिन्हित किया जा रहा है। साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष निगरानी भी रखी जा रही है।
हालांकि, एडीजी का यह तर्क कि “खाली समय में किसान आपसी विवादों में उलझते हैं और उससे अपराध बढ़ता है”, कई जानकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गले नहीं उतरा। उनका कहना है कि यह बयान राज्य की बदहाल कानून व्यवस्था पर पर्दा डालने का एक प्रयास है।
बिहार में अपराध की घटनाएं बीते कुछ समय से लगातार चर्चा में रही हैं। हाल ही में राजधानी पटना समेत कई जिलों में गोलीबारी, आपसी रंजिश और जमीनी विवादों को लेकर हत्याएं हुई हैं। ऐसे में एडीजी का यह वक्तव्य न केवल विवादों में आ गया है, बल्कि इससे पुलिस विभाग की सोच पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
कुल मिलाकर, एडीजी कुंदन कृष्णन के बयान ने बिहार में गर्मियों के दौरान बढ़ते अपराधों पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है — जहां पुलिस मौसम और कृषि गतिविधियों को अपराध से जोड़ रही है, वहीं समाज और राजनीतिक वर्ग इस तर्क को सिरे से खारिज कर रहे हैं।
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