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सालिम अली: जिसे गौरैया से मिली करियर चुनने की प्रेरणा

सालिम अली का पूरा नाम सालिम मुईनुद्दीन अब्दुल अली है। वे एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। उन्हें ‘भारत के बर्डमैन’ के रूप में भी जाना जाता है। सालिम अली की पक्षियों पर लिखी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफी मदद की है।

इनका जन्म बॉम्बे के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में हुआ था। वे अपने परिवार में सबसे छोटे और नौंवे बच्चे थे। महज तीन साल के होते-होते उनके सिर से माता-पिता का छाया उठ गया। अली और उनके सभी भाई-बहनों की परवरिश इनके मामा अमिरुद्दीन तैयाबजी ने की। अमीरुद्दीन शिकार के शौकीन थे साथ-साथ प्रकृति-प्रेमी भी। अपने मामा के संगत में रहने के कारण सालिम की रुचि शिकार और प्रकृति में जगी। अली पक्षी की प्रजाति को नहीं पहचानते। एक दिन वे मामा के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) घूमने गए। वहां उन्हें पक्षियों की कुछ प्रजातियों के बारे में जानकारी मिली। वहीं से उनके अंदर पक्षियों के जीवन और अन्य पहलुओं के बारे में जाने की जिज्ञासा पैदा हुई।

बीएनएचएस के तत्कालीन सचिव डब्ल्यूएस मिलार्ड की देखरेख में युवा अली ने पक्षियों पर गंभीर अध्ययन करना शुरू किया। मिलार्ड ने उन्हें बीएनएचएस में पक्षियों के संग्रह को भी दिखाया और उन्हें पक्षी के संग्रह करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। बाद में अली की मुलाकात नोर्मन बॉयड किनियर से हुई, जो कि बीएनएचएस में प्रथम पेड क्यूरेटर थे। उनकी आत्मकथा ‘द फॉल आॅफ ए स्पैरो में’ अली ने पीले-गर्दन वाली गौरैया की घटना को अपने जीवन का परिवर्तन-क्षण माना है क्योंकि उन्हें पक्षी-विज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा वहीं से मिली थी, जो कि एक असामान्य करिअर चुनाव था।

1913 में सालिम ने बांबे विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा पास की। उन्होंने डावर कॉमर्स कॉलेज में वाणिज्यिक कानून और लेखा का अध्ययन किया। हालाकि उनकी ज्यादा रुचि प्राणी विज्ञान में थी, जिसकी उन्होंने कोई डिग्री नहीं ली थी। 1930 में गाइड व्याख्याता की नौकरी के नहीं होने पर इन्होंने अपना सारा ध्यान पक्षियों की दुनिया पर केन्द्रित कर दिया।

उनके शोध कार्य को पक्षीविज्ञान के विकास में अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। उन्होंने 1930 में बुनकर पक्षी की प्रकृति और गतिविधियों पर चर्चा करते हुए एक शोध पत्र प्रकाशित किया जिसने उन्हें क्षेत्र में प्रसिद्ध कर दिया। इन्होंने अपनी जिंदगी के पूरे सफर को ‘फॉल आॅफ ए स्पैरो’ नाम की किताब में बयान किया है। सालिम अली ने कई पत्रिकाओं के लिए लेख लिखा। इसके अलावा उन्होंने कई लोकप्रिय और शैक्षिक पुस्तकें भी लिखी हैं। 1930 में इन्होंने एक लोकप्रिय लेख लिखा था जिसका शीर्षक ‘स्टॉपिंग बाय द वुड्स आॅन ए संडे मोर्निंग।’, जिसका पुन: प्रकाशन 1984 में किया गया था। उनकी सबसे लोकप्रिय पुस्तक ‘द बुक आॅफ इंडियन बर्ड्स’ थी।

1969 में उन्होंने प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ के लिए सी फिलिप्स स्मारक पदक प्राप्त किया। इन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और आंध्र विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट मिली। सालिम अली को देश के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाजा गया था। 1958 में उन्हें पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। यही नहीं पक्षियों की कई प्रजातियों, पक्षी अभयारण्यों और संस्थानों के नाम उनके नाम पर रखे गए। 1985 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। लंबी बीमारी के बाद इक्यानवे साल की उम्र में इनका निधन हुआ।

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