@शब्द दूत ब्यूरो (21 अप्रैल 2024)
आपने चुनाव में धांधली या बूथ कैप्चरिंग की खबरें खूब सुनी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के बलिया इस तरह की धांधली कैसे होती थी? यहां दो दर्जन से अधिक गांवों में वोटिंग की शुरूआत गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति करते थे. वह बूथ पर आकर 101, 151 या 501 वोट मार कर पुनिया (शुभ कार्य की शुरुआत) करते थे. इसके बाद उनके साथ आए 8-10 युवक महज एक से डेढ़ घंटे में 30 फीसदी तक वोटिंग कर देते थे.
फिर पूरे दिन पोलिंग बूथ पर सन्नाटा पसरा रहता.पोलिंग खत्म होने से दो घंटे पहले वही 8-10 लोग दोबारा आते और 55 से 60 फीसदी तक वोट डालकर चले जाते थे. इसके बाद पोलिंगकर्मी भी सामान समेट कर चले जाते थे.यह कहानी भले ही आपको हैरतंगेज लगे, लेकिन यहां लोकसभा चुनावों में यह सामान्य बात थी. जी हां, उत्तर प्रदेश में गंगा और घाघरा की जलधाराओं के बीच बसे बलिया जिले का करीब 35 फीसदी हिस्सा दोआबे में है.
लोकसभा चुनाव में बनती थी अजीब स्थिति
जहां ये दोआबा खत्म होता है, वहीं पर घाघरा नदी का गंगा में संगम हो जाता है. इस 35 फीसदी हिस्से में दर्जनों गांव ऐसे हैं जो आज भी मूल भूत सुविधाओं से वंचित हैं. इन गांवों में वैसे तो हरेक चुनाव में काफी उत्साह होता था, लेकिन 25 साल पहले तक लोकसभा चुनाव के दौरान यहां अजीब स्थिति देखने को मिलती थी. वोटिंग के एक दिन पहले ही गांव के कुछ लोग सभी मुहल्लों में घूम कर लोगों को बता देते थे कि सब लोग रोज की तरह खेतों में काम पर जाएंगे.
लोगों को बूथ पर ना जाने की हिदायत
कड़े शब्दों में लोगों को बताया जाता था कि किसी को वोटिंग के लिए ना तो परेशान होने की जरूरत है और ना ही पोलिंग बूथ पर किसी को जाना है. उन्हें यह भी बता दिया जाता था कि उनका वोट हो जाएगा. चूंकि लोकसभा चुनावों में ज्यादातर लोगों का प्रत्याशी के साथ सीधा जुड़ाव नहीं होता था, इसलिए कोई विरोध भी नहीं करता था. फिर अगले दिन पोलिंग बूथ पर पोलिंग कर्मचारी अपने समय से बैलेट पेपर आदि सजा कर बैठ जाते थे, लेकिन काफी देर तक बूथ पर एक भी वोटर नहीं आता.
501 वोटों से पुनिया करते थे बाबा
करीब 9 बजे गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को लेकर 8-10 युवक बूथ पर आते और पीठासीन अधिकारी को कह देते थे कि बाबा 101, 151 या 501 वोटों से पुनिया करेंगे. इसके बाद यहां वोटिंग शुरू होगी. पीठासीन अधिकारी विरोध करते तो उन्हें बंधक बना लिया जाता और महज डेढ़ दो घंटे में करीब 30 फीसदी तक मतदान कर वोटर लिस्ट में चिन्ह लगा दिया जाता था. इसके बाद बूथ पर पूरे दिन सन्नाटा रहता. इस दौरान पोलिंग कर्मचारी आराम फरमाते थे.