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मुख्तार अंसारी के कुछ अनसुने किस्से…भावुक होकर भाई अफजाल ने सुनाई कहानी

@शब्द दूत ब्यूरो (06 अप्रैल 2024)

फोन की घंटी बज रही थी. पांच बार विधायक और दो बार सांसद रहे अफजल अंसारी अपना फोन उठाते हैं, फिर उसे स्पीकर मोड पर डाल देते हैं. हैलो! कौन? अफजाल ने पूछा. सामने थे रिटायर्ट पुलिस अधिकारी. बोले, ”बहुत दुःख की बात है. बड़ा बुरा हुआ. एक बार मुलाकात हुई थी उनसे 1991 में (यह बहुत दुखद है… मैं आपके भाई मुख्तार से 1991 में एक बार मिला था).” अफजाल ने जवाब दिया “अच्छा… हम्म”. बस इतना बोलकर उन्होंने कॉल काट दी. यह सारा वाकया है मुख्तार अंसारी के अंतिम संस्कार के कुछ घंटे बाद का.

तारीख 30 मार्च 2024…गाजीपुर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर मोहम्मदाबाद इलाके में स्थित अंसारी आवास की छत समर्थकों और शोक मनाने वालों से भरी हुई थी. सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी छत पर एक सोफे पर बैठे थे. उन्हें तमाम राजनेताओं, पुलिस अधिकारियों और समर्थकों के फोन आ रहे थे. अफजाल दुखी मन से फोन उठा रहे थे. कहने को ज्यादा कुछ था नहीं. बस फोन सुन रहे थे. हां, हम्म, अच्छा और ठीक है… बस यही कह रहे थे.

28 मार्च को उनके छोटे भाई और माफिया से राजनेता बने मुख्तार अंसारी (63) का हार्टअटैक से निधन हो गया था. वह बांदा की जेल में कैद थे. उन पर 65 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे. मुख्तार की मौत को परिवार ने हत्या बताया. परिवार का कहना है कि मुख्तार की साधारण मौत नहीं है. बल्कि, उन्हें धीमा जहर देकर मारा गया है. इस हत्याकांड को सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया है. परिवार ने कहा कि वो लोग इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ेंगे. ऊपर तक जाएंगे और अंत में सच सामने आएगा.

खैर, उधर 28 मार्च को मुख्तार की मौत हुई तो उसके दो दिन बाद उनके शव को गाजीपुर स्थित कालीबाग कब्रिस्तान में दफनाया गया. इसी कब्रिस्तान में अंसारी परिवार के 25 लोगों को भी दफनाया गया है. पिता की कब्र के ठीक सामने मुख्तार की कब्र है.

अंसारी परिवार के दो घर, 15 गाड़ियां

अंसारी परिवार के पास मोहम्मदाबाद में दो घर हैं जो एक-दूसरे के ठीक सामने हैं. 25,000 वर्ग फुट में फैले इस घर में संयुक्त परिवार रहता है. कम से कम 15 एसयूवी दोनों घरों के आंगन में खड़ी रहती हैं. सभी गाड़ियों के नंबर 786 (इस्लाम का शुभ अंक) है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, भाई के शव को दफनाने के बाद अपने घर की छत पर गुमसुम बैठे अफजाल ने उनके बारे में बताना शुरू किया. कहा, ”मुख्तार को क्रिकेट खेलना और राइफल चलाना बहुत पसंद था. वह एक महान बल्लेबाज था. उसे चश्मों और एसयूवी गाड़ियों का शौक था. वह सभी गेम बहुत अच्चे से खेलता था. लेकिन क्रिकेट में तो वह कमाल का था.”

‘गजब का खिलाड़ी था मुख्तार’

60 वर्षीय ओबैद-उर-रहमान, जो गाजीपुर पीजी कॉलेज की क्रिकेट टीम के हिस्से के रूप में मुख्तार के साथ खेल चुके हैं, उन्होंने कहा, ”वह तो सिर्फ एक ही मुख्तार को जानते थे, जो क्रिकेटर था. वह एक हरफनमौला और मैच विजेता था. वह किसी भी मैच को पलट सकता था. मुझे गोरखपुर का एक मैच याद है जहां उसने पांचवें नंबर पर बल्लेबाजी करने के बावजूद 63 रन बनाये थे. हमारी टीम ने कुल 140 रन बनाये थे. लेकिन मुख्तार की वजह से ही हम वह मैच जीत गए थे. गजब का क्रिकेट प्लेयर था मुख्तार.”

6 भाई बहनों में सबसे छोटे थे मुख्तार

61 वर्षीय मुख्तार, काजी सुभानुल्लाह और राबिया बीबी की छह संतानों में से सबसे छोटे थे. उनके दो बड़े भाई और तीन बड़ी बहने हैं. मुख्तार के पिता 1970 के दशक में मोहम्मदाबाद के नगर पालिका अध्यक्ष थे. मोहम्मदाबाद से दो बार विधायक और तबलीगी जमात से जुड़े मौलवी 73 वर्षीय सिबगतुल्ला एकमात्र अंसारी भाई हैं जिनका नाम पुलिस रिकॉर्ड में नहीं है. उनके तीनों बेटों के खिलाफ भी कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. गाजीपुर से स्नातक और वाराणसी से स्नातकोत्तर करने के बाद मुख्तार ने राजनीति की ओर रुख किया.

ऐसे शुरू हुआ चुनावी करियर

1994 में, मुख्तार ने अपनी चुनावी शुरुआत की. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के प्रतीक पर गाजीपुर से विधानसभा उपचुनाव लड़ा. अफजाल ने बताया, “उस समय वह सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार राज बहादुर सिंह से चुनाव हार गए, जो मुलायम सिंह यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. मुख्तार ने 1996 में मऊ विधानसभा सीट से बसपा उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव जीता. फिर 2002, 2007, 2012 और 2017 में यह उपलब्धि दोहराई.” मुख्तार की चुनावी सफलताओं के बारे में बात करते हुए, अफजाल अपने छोटे भाई को गैंगस्टर और माफिया कहे जाने से नाराज हैं. उनका कहना है, ”मुझे यहां मोहम्मदाबाद, गाजीपुर या कहीं भी ऐसा कोई व्यक्ति ढूंढकर दिखाओ जो उसे गैंगस्टर या माफिया कहता हो. तब मैं इस बात को मान लूंगा.”

अफगानिस्तान से परिवार आया था भारत

बताया जाता है कि अंसारी वंश 1526 में अफगानिस्तान के हेरात से भारत आकर बसा था. यह परिवार संपन्न जमींदार बनने के लिए भारत में बस गया. उनके करीबी लोगों का दावा है कि 1951 में जमींदारी अधिनियम समाप्त होने के समय उनके पास 21 गांव थे. पिछली सदी में, अंसारी परिवार ने देश के कुछ सबसे प्रतिष्ठित पदों पर काम किया है. मुख्तार और अफजाल के दादाओं में से एक, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी (1880-1936), 1926-27 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक थे. वह आजादी से पहले आठ साल तक इसके चांसलर रहे.

मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, एक युद्ध नायक थे. वो पाकिस्तान के साथ 1947 के युद्ध के दौरान कार्रवाई में मारे जाने वाले भारतीय सेना के सर्वोच्च रैंकिंग अधिकारी थे. ‘नौशेरा का शेर’ के नाम से मशहूर मोहम्मद उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्हीं के मामा पक्ष में फरीद-उल-हक अंसारी थी थे, जो दो बार राज्यसभा सदस्य (1958-64) और एक स्वतंत्रता सेनानी रहे चुके हैं.

हाल के दिनों में, मुख्तार के चाचा हामिद अंसारी दो कार्यकाल के लिए भारत के उपराष्ट्रपति, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति थे. हामिद अंसारी के पिता अब्दुल अजीज अंसारी 1947 में बीमा नियंत्रक थे और कहा जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान में शामिल होने के जिन्ना के व्यक्तिगत प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.

15 साल की उम्र में क्राइम की दुनिया में एंट्री

हालांकि, मुख्तार इन सबसे बहुत अलग रास्ते पर चले गए. 1978 में, जब वह महज 15 साल के थे, मुख्तार पर धमकी देने का आरोप लगा. जिस कारण उन पर केस दर्ज हुआ. यहीं से क्राइम की दुनिया में उनकी एंट्री हुई. उनके खिलाफ हत्या के 16 मामलों में से पहला मामला 1986 में दर्ज किया गया था, जब वह 23 वर्ष के थे. उन्होंने कथित तौर पर एक स्थानीय ठेकेदार सचिदानंद राय की हत्या कर दी थी. इसके बाद से मुख्तार ज्यादा सुर्खियों में आने लगे. सभी उन्हें जानने लगे थे.

अवधेश राय हत्याकांड

यूपी के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि एक समय था जब पूर्वी यूपी में स्थानीय माफियाओं को खुली छूट थी. उस समय मुख्तार का इलाके में काफी नाम भी था. उनका प्रभाव तब और ज्यादा बढ़ा जब चुनावी फायदों के लिए मुख्तार को कुछ राजनीतिक दलों ने पुरस्कृत किया. तब से मुख्तार की गिनती ताकतवर लोगों में होने लगी थी. मुख्तार का हौसला भी बढ़ता रहा. इसके बाद और हत्याएं हुईं. 3 अगस्त, 1991 को गैंग प्रतिद्वंद्विता के एक मामले में, मुख्तार और अन्य हमलावरों द्वारा कथित तौर पर वाराणसी में अवधेश राय की, उनके आवास के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्या के वर्षों बाद, 2014 के चुनावों में, जब अवधेश के भाई अजय राय (अब यूपी कांग्रेस प्रमुख) ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा, अंसारी ने यह कहते हुए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली कि वह नहीं चाहते थे कि “धर्मनिरपेक्ष वोट विभाजित हों”. पिछले साल 5 जून को वाराणसी की एक अदालत ने मुख्तार को अवधेश हत्याकांड में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

हाई-प्रोफाइल मामला कृष्णानंद राय हत्याकांड

मुख्तार के खिलाफ हत्या के मामलों में सबसे हाई-प्रोफाइल मामला कृष्णानंद राय का था, जिन्हें कथित तौर पर मुख्तार के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ब्रिजेश सिंह का समर्थन प्राप्त था. 29 नवंबर 2005 को, मोहम्मदाबाद के मौजूदा भाजपा विधायक कृष्णानंद राय, मोहम्मदाबाद में एक क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने के लिए अपने पैतृक घर से निकले थे. तब मुन्ना बजरंगी के नेतृत्व में मुख्तार के गिरोह के सदस्यों ने विधायक की कार को रोक लिया. बदकिस्मती से उस समय वह बुलेटप्रूफ़ कार में नहीं थे. मामले की जांच करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि हमलावरों में से एक वाहन के बोनट पर चढ़ गया और राय पर गोली चला दी. अधिकारी ने कहा, “हत्यारों ने अपने एके-47 से कम से कम 500 राउंड गोलियां चलाईं. पोस्टमार्टम में राय के शरीर से 60 गोलियां निकाली गई थीं.”

इस हत्याकाडं में मुख्तार, अफजाल और पांच लोग आरोपी थे. जिनमें से मुख्तार जेल में बंद था क्योंकि 2019 में, एक विशेष सीबीआई अदालत ने बाकी को बरी कर दिया था. लेकिन इसी मामले में बाकी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है. राय के बेटे पीयूष कहते हैं कि वह 17 साल के थे जब उनके पिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. खुद को बीजेपी कार्यकर्ता बताने वाले पीयूष कहते हैं, ”मेरे पिता की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने 2002 के चुनाव में अफजल अंसारी को हरा दिया था.”

मऊ में दंगा करने का आरोप

मुख्तार पर 2005 में मऊ में सांप्रदायिक झड़पों के दौरान दंगा करने का भी आरोप लगाया गया था, जब उन्होंने खुली जीप में राइफल लहराते हुए दंगा प्रभावित जिले की यात्रा की थी. 2009 में, मुख्तार ने कथित तौर पर जबरन वसूली के प्रयास में 45 वर्षीय सड़क ठेकेदार मन्ना सिंह और उसके सहयोगी राजेश राय की हत्याओं की एक और साजिश रची. छह महीने बाद, मामले के एक प्रत्यक्षदर्शी राम सिंह मौर्य और उनके सुरक्षा अधिकारी की कथित तौर पर मुख्तार के लोगों द्वारा हत्या कर दी गई. मुख्तार को 2017 में मामले से बरी कर दिया गया था. जबकि, तीन कथित बंदूकधारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

मऊ से, मन्ना के 57 वर्षीय भाई अशोक सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, मेरे भाई का ड्राइवर भी घटना में घायल हो गया था, लेकिन उसने डर के कारण अपनी गवाही नहीं दी. क्योंकि तब ऐसी सरकारें थीं जो मुख्तार का समर्थन करती थीं… जब चार साल बाद मामला लोकल कोर्ट में पहुंचा को हत्या के मामले में कोई भी सुनवाई नहीं हो सकी. क्योंकि मुख्तार हमेशा अपना प्रतिनिधि भेजकर कोई न कोई बहाना बना देता था.”

‘क्यों नहीं लड़ा मोदी के खिलाफ चुनाव’

गाजीपुर में अंसारी परिवार की लोकप्रियता के बारे में पूछे जाने पर, पीयूष राय ने कहा, ”अगर वो मसीहा था, तो वह 2009 में वाराणसी से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से चुनाव क्यों हार गया? अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बावजूद उसने 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव क्यों नहीं लड़ा? वह चुनाव उसने घोसी से लड़ा और हार गया.” बता दें, पीयूष की मां अलका राय मोहम्मदाबाद से पूर्व विधायक हैं, जिन्होंने 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर जीता था. 2022 के चुनाव में वह मोहम्मदाबाद में मुख्तार के भतीजे से हार गई थीं.

परिवार के चार लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज

बता दें, अंसारी परिवार के कम से कम चार अन्य सदस्यों के खिलाफ वर्तमान में आपराधिक मामले हैं. जिनमें से मुख्तार की पत्नी अफशां अंसारी, बड़ा बेटा अब्बास, छोटा बेटा उमर और भाई अफजाल अंसारी शामिल हैं. अफशां अंसारी फिलहाल फरार है. उनके ऊपर दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं. पुलिस ने उन पर इनाम भी घोषित किया है. वहीं, 32 वर्षीय अब्बास अभी कासगंज जेल में है. अफजाल ने कहा कि हम अब्बास की रेगुलर बेल की कोशिश कर रहे हैं. भाई अफजाल पर भी तीन मामले दर्ज हैं. वहीं, मुख्तार का 25 वर्षीय छोटा बेटा उमर एक शूटर है जो उच्च अध्ययन के लिए लंदन गया था. अभी वो गाजीपुर में है. उसके खिलाफ छह मामले दर्ज हैं.

‘गरीबों का मसीहा’

बेशक कई लोग मुख्तार को पसंद नहीं करते थे. लेकिन मोहम्मदाबाद में तो वह गरीबों के मसीहा माने जाते थे. जब उनकी मौत की खबर आई तो पूरे गाजीपुर में शोक की लहर दौड़ पड़ी. हजारों की तादाद में मुख्तार को देखने के लिए हुजूम उमड़ पड़ा था. लेकिन कब्रिस्तान में सिर्फ परिवार वालों को ही जाने की इजाजत थी. लोगों ने काफी कोशिश की कि वो भी मुख्तार की कब्र पर मिट्टी डाल सकें. लेकिन उस समय सुरक्षा काफी कड़ी थी. लगभग पूरे यूपी से पुलिसबल को लाकर उस दिन गाजीपुर में तैनात किया गया था.

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