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काशीपुर:सिख किसान नेता जे एस नरूला का दर्द, एम एस पी की जायज मांग करने वाले आंदोलित किसानों को “खालिस्तानी” घोषित करना नाजायज

@शब्द दूत ब्यूरो (17 फरवरी 2024)

काशीपुर। देश में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर शहर के प्रगतिशील सिख किसान जे एस नरूला आहत हैं। जे एस नरूला प्रदेश के बड़े समाजसेवी और प्रखर वक्ता हैं। किसानों के साथ हो रहे व्यवहार से वह खासे व्यथित भी हैं। वह सवाल उठाते हैं कि आखिर किसानों की मांग में नाजायज क्या है? किसान सिर्फ एम एस पी की मांग कर रहे हैं। अपने हक की मांग को उठाने वाले किसानों को खालिस्तानी करार देने को वह नाजायज ठहराते हैं। सोशल मीडिया पर जे एस नरूला की एक पोस्ट में उनका आक्रोश साफ झलकता है।

जे एस नरूला का कहना है कि किसानों का एम.एस.पी. का मुद्दा आजका नहीं है। एम.एस. स्वामीनाथन जी, जिनको केन्द्र सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया है, उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था और किसानों को फसलों के लाभकारी मूल्य Remunerative Price की बात की थी।

किसान फिलहाल केवल न्युन्तम समर्थन मूल्य की बात कर रहा है। मजेदार बात यह है कि इसका निर्धारण कृषि मन्त्रालय ही करता है। किसान की माँग तो मात्र इतनी है कि सरकार इस पर कानून बना दे ताकि मण्डी में व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही अनाज खरीद करे उससे कम पर नहीं?
इसमें नाजायज़ क्या है???

जे एस नरूला का कहना है कि जहाँ सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा तो कर देती है, उस मूल्य पर अनाज बिक्री की गारन्टी देना नहीं चाहती। जे एस नरूला इसे गलत मानते हैं कि मुद्दे को भटकाने के लिए किसानों को खालिस्तानी, गद्दार जैसे शब्दों से सम्बोधित किया जाता है।

सिख किसान नेता जे एस नरूला याद दिलाते हैं कि जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी  ने एक भिण्डारावाला रूपी खालिस्तानी खड़ा किया था, वर्तमान एस्टेब्लिश्मेन्ट ने पूरे सिक्ख समाज को खालिस्तानी बना दिया है।
इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, सोचकर ही डर लगता है???

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