अपराधी कौन है? अपराधी वो है जो कानून नहीं मानता। कानून के अनुपालन के लिए पुलिस है। कानून का पालन कैसे करवाया जाएगा, यह भी निर्धारित है। पर अचानक जब यह तर्क दिया जाने लगता है कि कानून के दायरे में रह कर तो अपराधी को सजा दिलवा पाना संभव ही नहीं है तो कई सवाल खड़े होते हैं। कानून के दायरे में यदि कानून की कसम उठाने वाले नहीं रह सकते तो फिर वे किसी और से कैसे अपेक्षा करते हैं कि वह उस कानून के दायरे में रहे। जो आपका कानून और उसके दायरे को नहीं मानता, जिसे अँग्रेजी में Outlaw कहते हैं, उससे तो आप चाहते हैं कि वो कानून का पालन करे। पर जैसे ही खुद कानून के दायरे में ऑपरेट करने की बात आएगी तो यही कानून का दायरा,संकरा लगने लगता है, उसे लांघने को मन मचल उठता है!
होना तो यह चाहिए कि अपराधी को कानून के दायरे में खींच कर लाया जाये पर हो ठीक इसके उलट जाता है कि पुलिस कानून के दायरे के बाहर चली जाती है। होना यह चाहिए कि अपराधी के भीतर यह भाव पैदा हो कि कानून के दायरे के बाहर जाना उचित नहीं है। हो इसके ठीक उलट जा रहा है कि पुलिस के भीतर का हत्यारा जाग जा रहा है, खून बहाने की लिप्सा जाग उठ रही है।
न्याय की प्रक्रिया बहुत लंबी है, यह सही है। लेकिन उसका हल क्या है, यह कि थाने के स्तर पर ही मामला निपटा लिया जाये? अगर पुलिस और उसके मामले निपटाने के तरीके के अनुभव न हो तो अपने आसपास घूम करके देखिए, जांच-परख करके देखिये कि पुलिस सिर्फ मामला नहीं निपटाती, वह कानून, न्याय, इंसाफ सबका निपटारा आए दिन करती रहती है। निश्चित ही न्याय की प्रतीक्षा में बरसों-बरस लटके रहने के चलते, न्याय को ही सूली पर लटका देने की प्रवृत्ति बलवती होती जाती। पर रास्ता न्यायिक प्रक्रिया का खात्मा नहीं बल्कि उसको दुरुस्त और चाक-चौबन्द करना है।
क्या ये सब सवाल, अपराधियों के प्रति चिंता या सहानुभूति के कारण उठाए जा रहे हैं? जी नहीं, चिंता यह है कि इंस्टेंट फैसला करने की यह प्रवृत्ति और स्वीकार्यता बड़ी संख्या में निर्दोषों को अपराधी ठहरा कर उनके सफाये का सबब बन जाएगी। इंस्टेंट फैसला करने की यह प्रवृत्ति अपराध का नहीं बल्कि न्याय, विवेक और मनुष्यता का खात्मा अधिक करेगी।
और हां वारदातों के हो जाने के बाद हड़बड़ा कर मत जागिए। सचेत रहिए। सचेत होना है, उन्मादी नहीं। सचेत रहेंगे तो अपराधों के जन्मने और उनके फलने-फूलने के कारकों की शिनाख्त कर पाएंगे और उनके विरुद्ध निरंतर माहौल बना पाएंगे। उन्मादी हो कर तो यही हासिल होना है कि किसी के मारे जाने पर उत्सवी हो जाएंगे, अपराधियों की जाति-धर्म देख कर उनके विरुद्ध बोलना-न बोलना तय करेंगे और कुछ एक के बड़े से बड़े अपराध के बावजूद उन्हें चुन कर संसद-विधानसभा पहुंचाने में भी न हिचकिचाएंगे, न शर्माएंगे।