मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में भीष्म पितामह माने जाने वाले शरद पवार ने भतीजे अजीत पवार से धोखा खाने के बाद जिस तरह से पार्टी और विधायकों को एकजुट रखा, उससे साबित हो गया कि सूबे की सियासत के असली चाणक्य वे ही हैं। जब ऐसा माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ना आसान नहीं है, तब पवार ने सियासी पिच पर सधी हुई पारी खेलकर महाराष्ट्र की हारी बाजी अपने पक्ष में मोड़ दी। उस दौरान कांग्रेस के भी तमाम नेताओं को पवार पर शक होने लगा था।
जानकारों का मानना है कि पवार की बड़ी शख्सियत के चलते ही महाराष्ट्र में उनकी पार्टी सबसे बड़े संकट से बाहर निकलने में सफल रही। वहीं कांग्रेस और शिवसेना भी उनकी छाया में अपना वजूद बचाने में कामयाब रहे। तीनों दलों को साथ लेकर चलने और तक मोर्चा संभाले रखने में पवार का कद काम आया। जानकार मानते हैं कि पवार के दमखम पर विधायकों को भरोसा था।
पवार ने भतीजे की पैंतरेबाजी के बाद कहा था कि वे ऐसी स्थितियों से निपटने में सक्षम हैं। दबाव बनाने के साथ उन्होंने पार्टी में अजीत की वापसी का रास्ता भी खोल कर रखा। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि पार्टी में टूट का कोई संदेश जाए और जूनियर पवार सहानुभूति बंटोर ले। पार्टी में कई विधायक और नेता ऐसे थे जो शरद पवार के प्रति आस्था रखते हुए भी नहीं चाहते थे कि अजीत पवार के खिलाफ कोई कार्रवाई हो।
शरद पवार ने अपने सधे कदम से न सिर्फ अजीत पवार के प्रति सहानुभूति का मौका समाप्त किया बल्कि उन्हें अलग थलग करके यह भी जता दिया कि पार्टी और परिवार दोनों में अभी उनका ही सिक्का चलता है। मजबूरी में ट्वीट करके अजीत पवार ने कहा कि वे एनसीपी में ही हैं और शरद पवार ही उनके नेता हैं। जानकार मानते हैं कि ताजा घटनाक्रम के बाद महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री कोई भी हो शरद पवार की अहमियत सबसे ज्यादा होगी। साथ ही वे केंद्र की सियासत में भी विपक्षी राजनीति की प्रमुख धुरी बनकर उभरेंगे।