@विनोद भगत
कभी काशीपुर की राजनीति में कांग्रेस की तूती बोलती थी। एक समय ऐसा था जब पार्टी न सिर्फ मजबूत संगठनात्मक ढांचे के साथ सक्रिय थी, बल्कि उसके नेताओं का जनाधार भी व्यापक था। लेकिन आज हालात बिल्कुल विपरीत दिखते हैं। कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व काशीपुर में जैसे खोता सा नजर आ रहा है। यह गिरावट अचानक नहीं आई, बल्कि लंबे समय से चल रहे आंतरिक असंतुलन, कमजोर रणनीति और स्थानीय नेतृत्व की उपेक्षा ने मिलकर पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्थानीय मजबूत और अनुभवी नेताओं को नज़रअंदाज किया जा रहा है। कांग्रेस के पास काशीपुर में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। लेकिन नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में है जो जमीनी राजनीति के बजाय संगठनात्मक पदों की राजनीति में अधिक माहिर हैं। जिन नेताओं का जनता से सीधा संवाद और संपर्क होना चाहिए, वे बड़े नेताओं तक पहुंच रखने वाले छुटभैये कार्यकर्ताओं की चालों में फंस जाते हैं। यही वजह है कि काशीपुर में कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई।
पार्टी की पराजय का एक बड़ा कारण उन नेताओं का उदय है, जिनकी अपनी जनस्वीकृति सीमित है। वे छोटे-मोटे चुनाव भी नहीं जीत सकते, लेकिन संगठन में प्रदेश स्तरीय पदों पर काबिज हैं। ऐसे चेहरे जनता के बीच अपना प्रभाव बनाने में विफल रहे हैं, लेकिन प्रदेश नेतृत्व तक पहुंच बनाकर बड़े पद हासिल कर लेते हैं। नतीजा यह होता है कि जमीनी स्तर पर मेहनत करने वाले और जनता में प्रतिष्ठा रखने वाले नेता पीछे धकेल दिए जाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल पार्टी की नीतियों को कमजोर करती है, बल्कि चुनावी समीकरणों को भी बिगाड़ देती है।
प्रदेश नेतृत्व तक गलत आंकड़े और भ्रमित करने वाली रिपोर्ट पहुंचाने वाले ऐसे नेता पार्टी के लिए और भी हानिकारक साबित होते हैं। भूमि-स्तर से वास्तविक जनता का माहौल और संगठन की हालत छुपा दी जाती है। परिणामस्वरूप, गलत रणनीतियाँ बनती हैं और चुनाव में पार्टी हार का सामना करती है।
काशीपुर में कांग्रेस की कमजोरी का यह सिलसिला तब तक नहीं रुकेगा, जब तक पार्टी अपनी जड़ों से दूरी खत्म नहीं करती। मजबूत, लोकप्रिय और जनता के बीच सक्रिय नेताओं को उनकी भूमिका और महत्व दिया जाना जरूरी है। 2027 का चुनाव नजदीक है, और यह कांग्रेस के लिए निर्णायक समय साबित हो सकता है। अगर पार्टी समय रहते अपनी नीतियों और रणनीति में सुधार नहीं करती, तो आने वाले चुनावों में भी पराजय उसका पीछा नहीं छोड़ेगी।
आज जरूरत है कि कांग्रेस काशीपुर में आत्ममंथन करे, स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को अवसर दे और संगठन को भीतर से मजबूत करे। तभी वह अपनी खोई हुई जमीन वापस पा सकती है। अन्यथा, राजनीतिक हाशिये पर जाने का सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।
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