@शब्द दूत ब्यूरो (09 अक्टूबर 2025)
देहरादून। उत्तराखंड में अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण विधेयक पर सियासत तेज हो गई है। गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान जब यह बिल पारित हो रहा था, तब कांग्रेस विधायकों ने चुप्पी साध ली थी। मगर अब राज्यपाल द्वारा बिल को मंजूरी मिलने के बाद कांग्रेस ने धामी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि मदरसा बोर्ड को खत्म करना “असंवैधानिक” कदम है। उन्होंने आरोप लगाया कि धामी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन किया है, जो नागरिकों को अपने धार्मिक संस्थान चलाने की स्वतंत्रता देता है। धस्माना ने कहा कि मदरसे पहले से सोसाइटी रजिस्ट्रार से पंजीकृत हैं, उन्हें यह अधिकार है कि वे जहां से चाहें मान्यता प्राप्त करें।
वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर मजहबी राजनीति करने का आरोप लगाया है। प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि “कांग्रेस का बस चलता तो देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी भी खुलवा देती। अब मदरसों के नाम पर वह तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है, जबकि भाजपा सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार देने पर विश्वास करती है।”
मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. शम्मून कासमी ने भी सरकार के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि “यह ऐतिहासिक निर्णय है, जो मुस्लिम बच्चों को मजहबी शिक्षा की बजाय राष्ट्रीय पाठ्यक्रम से जोड़ेगा। इससे उनका बौद्धिक और सामाजिक विकास होगा।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया कि सरकार किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि मजहबी शिक्षा के स्थान पर आधुनिक शिक्षा की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा,
> “कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को सुविधाएं नहीं, बल्कि उत्पीड़न दिया। हमारी सरकार उन्हें समान अवसर दे रही है। केंद्र सरकार ने तीन तलाक खत्म कर महिलाओं को अधिकार दिया, हमने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर संपत्ति के अधिकार दिए और अब मदरसा बोर्ड खत्म कर आधुनिक शिक्षा का हक दे रहे हैं।”
सीएम धामी ने खुलासा किया कि राज्य में 224 अवैध मदरसे बंद कराए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ मदरसा संचालक “गरीब बच्चों के वजीफे और मिड-डे मील की रकम तक हड़प रहे थे।”
धामी सरकार का मानना है कि उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन राज्य के अल्पसंख्यक छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने और समान अवसर प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा सुधारात्मक कदम है। यह विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के साथ अब अधिनियम बन चुका है और शीघ्र ही इसे प्रदेश में लागू किया जाएगा।
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