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पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी करांची में रामलीला का मंचन: विविधता और सहिष्णुता की अनूठी मिसाल, देखिए वीडियो

@शब्द दूत डेस्क (14 जुलाई 2025)

कराची। पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची में जब रामायण का मंचन हुआ तो यह सुनकर भले ही किसी को आश्चर्य हो, लेकिन यह सच है। कराची जैसे शहर में भगवान राम के जीवन प्रसंगों पर आधारित रामलीला का मंचन हुआ और वह भी बिना किसी विरोध के। कराची के मशहूर ‘मौज’ थिएटर ग्रुप द्वारा तीन दिनों तक प्रस्तुत की गई इस नाट्य प्रस्तुति ने वहां के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक नया अध्याय जोड़ा है।

11 से 13 जुलाई तक कराची की प्रतिष्ठित आर्ट्स काउंसिल में रामायण पर आधारित यह नाट्य प्रस्तुति आयोजित की गई, जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली। इससे पहले यह नाटक नवंबर 2024 में कराची के टी2एफ सभागार में भी प्रस्तुत किया जा चुका था, लेकिन इस बार प्रस्तुति को अधिक भव्य और तकनीकी रूप से समृद्ध बनाया गया।

निर्देशक योगेश्वर करेरा की इस कलात्मक पहल को लेकर शुरुआत में तमाम आशंकाएँ थीं, खासकर कट्टरपंथी विरोध को लेकर। लेकिन कराची की आम जनता ने इस प्रस्तुति को खुले दिल से सराहा और किसी भी प्रकार का विरोध नहीं हुआ। योगेश्वर का कहना है कि कला की अभिव्यक्ति के प्रति सम्मान का भाव लोगों में अभी भी ज़िंदा है।

इस मंचन में एआई तकनीक का प्रभावी उपयोग किया गया, जिससे रामायण के दृश्य और अधिक जीवंत बन पाए। महलों की भव्यता, जंगल की नीरवता, पेड़ों की हरकतें और युद्ध के दृश्यों को आधुनिक तकनीक से प्रस्तुत किया गया, जिसने युवा दर्शकों को भी आकर्षित किया। पारंपरिक कथा और आधुनिक टेक्नोलॉजी का यह संगम एक नया अनुभव लेकर आया।

राम की भूमिका अश्मल लालवानी ने निभाई, सीता बनीं राणा काजमी जो इस नाटक की निर्माता भी हैं, जबकि रावण की भूमिका सम्हान गाजी ने निभाई। अन्य प्रमुख कलाकारों में आमिर अली (राजा दशरथ), वक्कास अख्तर (लक्ष्मण), जिबरान खान (हनुमान), सना तोहा (कैकेयी) और अली शेर (अभिमंत्री) शामिल रहे।

प्रस्तुति में लाइव संगीत, रंगीन परिधान और बेहतरीन प्रकाश व्यवस्था ने समूचे नाटक को भव्यता प्रदान की। कराची के नाट्य समीक्षक ओमैर अलवी ने इसकी कहानी कहने में बरती गई ईमानदारी और प्रस्तुतिकरण की कलात्मकता की सराहना की।

राणा काजमी ने इस अनुभव को “यादगार” बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तुति केवल अभिनय नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी थी—कि रामायण जैसी गाथाएँ किसी एक समुदाय की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की साझा धरोहर हैं।

सोशल मीडिया पर भी इस रामलीला की जमकर सराहना हो रही है। कई लोगों ने इसे पाकिस्तान में सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता की ओर एक सकारात्मक संकेत बताया है।

जहाँ एक ओर पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता अक्सर सुर्खियों में रहती है, वहीं कराची में रामायण का यह सफल मंचन यह दिखाता है कि वहां आज भी कला और सांस्कृतिक समावेशिता के लिए स्थान बाकी है। यह मंचन न सिर्फ़ एक साहसिक पहल है, बल्कि बदलते सामाजिक दृष्टिकोण की एक झलक भी है।

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