महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के पार्थिव शरीर की दुर्गति का वीडियो वायरल होने के बाद अब कहीं जाकर उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाने की घोषणा बिहार सरकार ने की है। सिंंह का निधन 14 नवंबर, 2019 को पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (पी एम् सी एच) में हुआ। वह बीमार थे। निधन के बाद भी उनकी उपेक्षा की तस्वीर सोशल मीडिया के जरिए दुनिया ने देखी। अस्पताल कैंपस में उनका शव यूं ही स्ट्रेचर पर पड़ा था। यह तस्वीर वायरल होने पर सरकार की ओर से राजकीय सम्मान के साथ वशिष्ठ नारायण सिंह की अंत्येष्टि करने की घोषणा हुई। शायद पी एम सी एच प्रशासन से जवाब भी तलब किया गया।
वशिष्ठ नारायण सिंह का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव भोजपुर जिले के बसंतपुर में होगा। इससे पहले पटना के कुल्हड़िया कॉम्पलेक्स स्थित उनके भाई केघर पर अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर रखा गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी वहां जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
74 साल के वशिष्ठ नारायण सिंह सालों से बीमार थी। 14 नवंबर को तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। उनके भाई उन्हें पीएमसीएच लेकर गए। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पीएमसीएच प्रशासन ने परिजनों को डेथ सर्टिफिकेट देकर पल्ला झाड़ लिया। शव वाहन तक मुहैया नहीं कराया।
बिहार की विभूति वशिष्ठ नारायण सिंह ने अलबर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनका दिमाग कंप्यूटर जैसा चलता था। लेकिन सिजोफ्रेनिया बीमारी की चपेट में आ जाने से उनकी प्रतिभा का पूरा फायदा विश्व नहीं उठा सका। वह 1973-74 से ही बीमार थे।
वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार में जन्म जरूर लिया, पर वे पूरी दुनिया के लिए विभूति थे। उनका जन्म 2 अप्रैल, 1946 को हुआ। 1958 में नेतरहाट की परीक्षा में वह टॉपर थे। 1963 में हायर सेकेंड्री की परीक्षा में भी टॉप किया। इनका रिकॉर्ड और प्रतिभा देखते हुए 1965 में पटना विश्वविद्यालय ने एक साल में ही इन्हें बीएससी ऑनर्स की डिग्री दे दी थी। इसके लिए खास तौर पर नियम बदला गया।
पटना साइंस कॉलेज में जब वह छात्र थे, तो गणित के प्रोफसर को ही चैलेंज कर देते थे। गलत पढ़ाने पर पकड़ लेते थे और टोक भी देते थे। अपनी प्रतिभा के दम पर वह कॉलेज में मशहूर हो गए और सब उन्हें ‘वैज्ञानिक जी’ कह कर बुलाने लगे। पटना में पढ़ाई के दौरान ही कैलोफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने उन्हें अमेरिका आने की पेशकश की। 1965 में वशिष्ठ नारायण अमेरिका चले गए। वहां 1969 में पीएचडी की डिग्री ली।
पीएचडी के लिए वशिष्ठ नारायण सिंह ने ‘द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी’ नाम से शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ को चुनौती दी। पीएचडी करने के बाद वह वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे।
वशिष्ठ नारायण सिंंह का दिमाग कंप्यूटर की तरह काम करता था। उन्होंने कुछ समय के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में भी काम किया। वहां काम करने के दौरान का उनका एक किस्सा काफी प्रचलित है।
कहा जाता है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए। वशिष्ठ नारायण ने मैनुअल कैलकुलेशन किया। कहते हैं जब कंप्यूटर्स ठीक किए गए और डेटा निकाला गया तो पता चला कि कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन वही था जो ”वैज्ञानिक जी” ने किया था।