@शब्द दूत ब्यूरो (23 फरवरी 2025)
काशीपुर। शहर की पत्रकारिता लंबे समय से संक्रमण के दौर से गुजर रही थी। बिडम्बना ये है कि यह संक्रमण बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह की घटनायें हुई हैं उससे पत्रकारिता के गिरते स्तर का भान होता है। एक मामले को लेकर जैसे प्रचारित किया जा रहा है उससे लगता है कि पुलिस प्रशासन या अदालतों की भूमिका नजर अंदाज कर दी गई है।
एक घटना होती है। घटना को लेकर मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसके बाद का काम पुलिस की जांच पर आधारित है। लेकिन मीडिया ने आरोपियों को लेकर जिस तरह से उन्हें पूरी तरह दोषी साबित कर डाला वह अप्रत्याशित है। हालांकि दोषी साबित होना या ना होना यह अदालत पर निर्भर है। हर व्यक्ति इस बात से इत्तफाक रखता है कि अदालत अपना काम करेगी और उसके काम पर किसी भी तरह की टीका टिप्पणी नहीं की जा सकती। मीडिया की अपनी सीमायें हैं। सीमाओं को तोड़ रहे मीडिया के कुछ लोग एक विद्रूप तस्वीर पेश कर रहे हैं।
वहीं मीडिया की मौजूदा भूमिका को देखकर लगता है कि वह इस्तेमाल होने को तैयार है। यह पत्रकारिता के लिए दुखद स्थिति है। ऐसे मीडिया के कथित लोगों को समझना होगा कि फैसला करना उनका काम नहीं। मीडिया किसी घटना की खबर लोगों तक पहुंचा सकती है। खासकर ऐसे मामलों में तो मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब घटना किसी व्यक्ति के सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है। मीडिया को ये अधिकार किसी ने नहीं दिया कि वह किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को तार तार कर दे वह भी उससे पहले जब तक कि न्यायपालिका उसका फैसला न कर दे।पत्रकारिता के गिरते स्तर का दुख एक पत्रकार ही समझ सकता है।