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वो जब याद आए, बहुत याद आये@वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का अमेरिका प्रवास में उमड़ा स्वदेशी प्रेम

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

अमेरिका दुनिया का भले ही समृद्ध और ताकतवर मुल्क हो लेकिन जो हमारे पास है, यहां नहीं। यहां आजादी है पर अनुशासन की बेड़ियों में जकड़ी है। यहां अल्पसंख्यकों का भले सम्मान हो पर अल्पबचत का कोई सम्मान नहीं है।

मुझे अक्सर अमेरिका आना पड़ता है।मै अमेरिका आता हूं लेकिन बहुत सी चीजें भारत छोड़ आता हूं। सबसे ज्यादा मुझे याद आती है ‘कट’चाय की। बड़े गिलास की जगह पन्नी में बिकने वाली चाय की। यहां चाय मिलती है लेकिन कागज के अपारदर्शी गिलास में। किसी को पता ही नहीं चलता कि आप पी क्या रहे हैं ? अमेरिका जैसे गिलासों का चलन हमारे यहां होता तो कलारियो की भीड़ गायब हो जाती।लोग तानसेन समारोह में भी इन्हीं गिलासों में ठर्रा भरकर पी रहे होते।

अमरीकी सड़कों पर पंचर जोड़ने की दूकानों का घोर अभाव है। सड़कें इन दूकानों के बिना श्रंगार विहीन युवती सी लगती है। यहां चाट के ठेलों,खोमचों की भारी कमी है। पानी पूरी मिलती है लेकिन वो मज़ा कहां जो भारत में है।भारत की ‘ड्राइव थ्रू ‘ सर्विस का मुकाबला अमेरिका कर ही नहीं सकता। हमारे यहां चाट का ठेला चलकर आपके पास आ सकता है, अमेरिका में नहीं।

भारत के मुकाबले अमेरिका में मुझे सबसे ज्यादा याद नगर निकायों द्वारा बनाए गए जन सुविधा केंद्रों की आती है। यहां ऐसे केंद्र हैं ही नहीं। सड़क किनारे खड़े होकर या बैठकर आप कुछ कर नहीं सकते। मानवाधिकारों के उल्लंघन का ये सबसे बड़ा उदाहरण है। खुले में शौच कर नहीं सकते,थूक नहीं सकते,धुंआं नहीं उड़ा सकते तो फिर काहे का लोकतंत्र?
यहां के जलाशय देखकर छपाक से छलांग लगाने का मन करता है।हाय! कितना नीला पानी होता है, लेकिन आप छलांग नहीं लगा सकते। हमारे यहां ऐसे जलाशय हों तो स्वीमिंगपूल वालों का धंधा ठप्प हो जाए। अमेरिका में चना जोर गरम की भी बहुत याद आती है। सर्दियों में हमारे भारत में जिस तरीके से ठेले वाले ककड़ी, टमाटर,मूली, खीरा काटकर मसाला मारकर बेचते हैं वैसा कुछ अमेरिका में है ही नहीं।

भारत का सार्वजनिक परिवहन अद्वितीय है। जहां हाथ दिखा दो वहीं बस,आटो, रिक्शा,तांगा, ट्रेक्टर,कार रोको,किराए का मोलभाव करो। यहां सब अॉनलाइन है। भारत की तरह सब्जी मंडी,बकरा मंडी,दही मंडी की तो आप कल्पना कर ही नहीं सकते।
अमरीका में कट चाय के बाद सबसे ज्यादा याद सड़क बिहार करते श्वान,बराह और गौमाताओं के साथ नंदियों की आती है। यहां पुण्य कमाने के लिए यदि आप गाय खोजेंगे तो निराश हो जाएंगे। ज्योतिषी के कहने पर काले कुत्ते को रोटी खिलाना चाहेंगे तो आपको वापस भारत जाना पड़ेगा। सड़कों पर गंदर्भ, खच्चर दर्शन दुर्लभ है।

अमेरिका आकर भारत की बहुत सी चीजें याद आती है। मुर्गों की कुकड़ू -कू’, चिड़ियों का कलरव, घरों से उठती मसालों की तीखी गंध, चौराहों पर नाश्ते की दुकानों पर लगने वाली चटोरों की भीड़ यहां देव दुर्लभ है। दुर्लभ तो वसूली करती पुलिस भी है और नगरीय निकाय के पर्ची काटते कर्मचारी भी। लंबी फेहरिस्त है अमेरिका में न मिलने वाली भारतीय विशेषताओं की।किस किसको याद कीजिए,किस किसको रोइए ।आराम बड़ी चीज है ,मुंह ढक के सोइए।

अमेरिका में घर हैं, चबूतरे भी हैं, लेकिन उन पर बैठने वाले लोग नहीं हैं। यहां घर की देहलीज पर बैठना, गप्पें हांकना, तंबाकू खाकर पीकना असभ्यता माना जाता है। यहां हाय, हैलो सूखी,सूखी होती है। हमारे यहां बीड़ी सुलगा कर या खैनी घिसकर खिलाना राम-जुहार के लिए जरूरी है। यहां नहीं। हमारे प्रधानमंत्री रोज किलो गाली खाते हैं किन्तु अमेरिका का राष्ट्रपति आम अमरीकी की तरह सेंडविच,टोस्ट आमलेट खाते हैं।
मेघ यादों के जब बरसते हैं
एक कट चाय को तरसते हैं
@ राकेश अचल

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