@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (25 फरवरी, 2022)
रूस की सेना ने यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु पावर प्लांट पर कब्ज़ा कर लिया है। रूसी सेना ने इस पावर प्लांट पर तब कब्ज़ा किया जब यूक्रेनी सेनाएं रूस के तीन तरफ से किए गए आक्रमण जवाब दे रही थीं। रूस ने यूक्रेन पर ज़मीन, समुद्र और हवा से हमला किया था।
दरअसल, हमले से ठीक पहले रूस की सेनाएं बेलारूस में सैन्य अभ्यास कर रहीं थीं। बेलारूस से यूक्रेन की राजधानी कीव से लिए चेर्नोबिन साइट सबसे छोटा रास्ता है। इसलिए यूक्रेन पर हमला बोलते हुए रूसी सेनाओं ने ज़ाहिर तौर पर इस रास्ते का प्रयोग किया।
पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने अपने दोस्त देश बेलारूस के ज़रिए अपनी थलसेना को कीव पहुंचाने के लिए सबसे तेज रास्ते का प्रयोग किया। चेर्नोबिल पर कब्जा यूक्रेन में घुसने की योजना का हिस्सा था।यूक्रेन के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि चेर्नोबिल को रूसी सेना ने कब्ज़े में ले लिया था।
हालांकि एक वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने कहा कि अमेरिका इसकी पुष्टि नहीं कर सकता।
चेर्नोबिल का चौथा रिएक्टर यूक्रेन की राजधानी कीव से 108 किलोमीटर दूर है। अप्रैल 1986 में एक असफल सुरक्षा टेस्ट के दौरान इसमें धमाका हो गया था और इसका रेडिएशन यूरोप के कई हिस्सों और अमेरिका के पूर्वी इलाकों तक पहुंच गया था।
गौरतलब है कि रेडियोएक्टिव स्ट्रोंटियम, केसियम और प्लूटोनियम से खास तौर से यूक्रेन और बेलारूस प्रभावित हुए थे और रूस और यूरोप के कुछ हिस्सों पर भी इसका प्रभाव पड़ा था। इस दुर्घटना के सीधे या अपरोक्ष प्रभाव से करीब कुछ हजारों लोगों की मौत हुई थी और पूरी दुनिया में इसके असर से 93,000 लोग कैंसर से मारे गए थे।
सोवियत संघ के अधिकारियों ने पहले इस दुर्घटना को छिपाना चाहा और तुरंत धमाके को स्वीकार नहीं किया। इससे सुधारवादी सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव की छवि धूमिल हुई थी। इससे सोवियत संस्थानों में पारदर्शिता और समाज में खुलापन बढ़ाने वाली उनकी ग्लासोंनास्त नीति पर सवाल खड़े हो गए थे।
चेर्नोबिल की त्रासदी को छिपाने और आसपास के पर्यावरण को रेडिएशन से बचाने के लिए धमाके वाले रिएक्टर को एक “पत्थर के ताबूत” जैसे ढांचे से ढंकने की कोशिश हुई जिसे छह महीने में बनाया गया। साल 2016 में पुराने पथरीले कवर के उपर एक और “नई परत से उसे सुरक्षित” करने की कोशिश हुई।