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वैक्सीन की कम होती प्रभावशीलता कोरोना से जंग को और मुश्किल बना देगी

@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (03 सितंबर, 2021)

पूरी दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी की चुनौती से जूझ रही है। भारत की बात करें तो यहां कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को लेकर लोग डरे हुए हैं। इस बीच, नए वैश्‍विक अनुसंधानों ने कोविड-19 और वैक्‍सीनेशन को लेकर पूर्व की मान्‍यताओं को बदल दिया है। इन रिसर्च के निष्‍कर्ष बताते हैं कि कोविड के खिलाफ हमारी यह ‘जंग’ पहले से कहीं ज्‍यादा मुश्किल साबित होने वाली है।

वैश्विक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि वैक्‍सीन की ‘ढाल’ लंबी नहीं चलती है। यहां तक कि पूरे साल भर में नहीं, जैसी कि पहले उम्‍मीद लगाई जा रही थी। अब यह लगभग स्‍पष्‍ट है कि पूरी तरह से वैक्‍सीनेट व्‍यक्ति की वैक्‍सीन की प्रभावशीलता माह दर माह कम होती जाएगी।

फायज़र की वैक्‍सीन 95% तक संरक्षण/ प्रभावशीलता का दावा करती है लेकिन केवल चार माह. इसका प्रदर्शन बाद में गिरकर निराशाजनक 48% तक पहुंच जाता है। इसी तरह एस्ट्रा-जेनेका की वैक्‍सीन जो भारत में कोविशील्‍ड के नाम से जानी  जाती है, की शुरुआत 75% ‘प्रोटेक्‍शन’ से होती है जिसकी प्रभावशीलता चार माह में गिरकर 54% तक पहुंच जाती है।

प्रोटेक्‍शन यानी कोविड के खिलाफ सुरक्षा में कमी का पहलू देश के टीकाकरण कार्यक्रम पर असर डाल सकता है। वैक्‍सीन का प्रोटेक्‍शन चार से पांच माह में 50% से नीचे गिरने के चलते बूस्‍टर (या तीसरे) डोज की जरूरत महसूस हो रही है। यह जरूरी है कि दूसरी डोज के छह या आठ महीने बाद बूस्‍टर डोज लिया जाए।

भारत को जल्‍द से जल्‍द बूस्‍टर डोज देने की शुरुआत करनी होगी। इसकी शुरुआत डॉक्‍टरों, नर्सों और सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स से करनी होगी। दूसरे नंबर पर साठ से ऊपर के लोगों और गंभीर/अन्‍य दूसरी बीमारियों से पीडि़तों को इसके दायरे में लाना होगा। इसके बाद पूरी तरह से वैक्‍सीनेट हुई आबादी को बूस्‍टर डोज देनी होगी। पंद्रह करोड़ लोगों को कोरोना वैक्‍सीन की दोनों डोज लगाई जा चुकी हैं और इन्‍हें तीसरी यानी बूस्‍टर डोज की जरूरत होगी। यह संख्‍या हर माह बढ़ती जाएगी।

   

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