भारत में 1.50 से 1.70 लाख टन कचरा रोज निकलता है, जो जल, वायु और भूतल प्रदूषण का कारण बन रहा है। इसमें 25 फीसदी का ही निस्तारण हो पाता है, 60 फीसदी ही लैंड फिल साइट तक पहुंचता है। बाकी इधर-उधर ही पड़े रहकर पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। भारत में 75 फीसदी से ज्यादा कचरा खुले में डंप किया जाता है।
@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है दिल्ली में करीब 30 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जो मुंबई, बेंगलुरु,हैदराबाद जैसे शहरों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। लेकिन इन शहरों मे भी इलेक्ट्रानिक, प्लास्टिक, टेट्रा पैक जैसे कचरों को अलग-अलग करने और सही ढंग से रिसाइकलिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इन शहरों में लैंड फिल साइट भर चुकी हैं। प्लास्टिक या कचरे को कई जगहों पर जलाया जाता है।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के कोविड वेस्ट ट्रैकिंग सिस्टम के मुताबिक, जून 2020 से मई 2021 के बीच 50 हजार मीट्रिक टन बायो मेडिकल वेस्ट पैदा हुआ है, जो पिछले साल के मुकाबले कई गुना अधिक है। प्रतिदिन औसतन यह 140 मीट्रिक टन रहा है, जो पिछले साल से कई गुना ज्यादा रहा।
प्लास्टिक की तुलना में पेपर कार्टन रिन्यूवेबल सोर्स से आते हैं और उन्हें आसानी से रिसाइकल किया जा सकता है। टेट्रा पैक कार्टन का 75 फीसदी पेपर बोर्ड होता है.बाकी 20 फीसदी पॉलिथिन और 5 फीसदी एल्युमिनियम होता है। लाइफ साइकल एनालिसिस के आधार पर देखें तो पेपर कार्टन का कार्बन फुटप्रिंट या कार्बन उत्सर्जन सबसे कम है। इनके निर्माण में भी प्रदूषण न के बराबर है।
यूरोपीय देशों में कार्टन का 70 से 80 फीसदी तक रिसाइकल हो जाता है। पेट बोटल, प्लास्टिक का भी 60-70 फीसदी तक रिसाइकल होता है। इसका एक बड़ा कारण एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पांसबिलिटी (ईपीआर) कानून है, जो ऐसे वेस्ट मैटिरयल का उत्पादन करने वालों पर ही रिसाइकलिंग की जिम्मेदारी डालता है।
भारत में भी नेशनल ईपीआर फ्रेमवर्क प्रस्तावित तो है, लेकिन अमल में नहीं आय़ा है। लेकिन ये स्वैच्छिक है, जबकि यूरोपीय देशों में यह कानूनी रूप से अनिवार्य है। उल्लंघन करने पर पेनाल्टी या लाइसेंस रद्द हो सकता है।
पैकेजिंग इंडस्ट्री के सामने सबसे बड़ी समस्या देश और राज्यों के अलग-अलग कानून हैं। टेट्रा पैक के गोखले का कहना है कि प्रदूषण, पैकेजिंग, रिसाइकलिंग के क्षेत्र संगठित तरीके से काम करने में दिक्कतें पेश आती हैं। लिहाजा पूरे देश में एक जैसा कानून हो, स्पष्ट और अच्छे तरह से परिभाषित हो. उनका सही तरह से अनुपालन भी कराया जाए।
वेस्ट मैनेजमेंट का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी देश में मजबूत नहीं है, जिससे कि घरों से ही कूड़े को अलग-अलग किया जा सके। इसकी पूरी वैल्यू चेन बननी चाहिए। कंज्यूमर, कूड़ा या कबाड़ इकट्ठा करने वाले, कलेक्शन पाटनर्स, रिसाइकलर, म्यूनिसिपिलिटी, एनजीओ सबको इसमें सही तरह से हिस्सेदार बनाना होगा। इन्हें किसी सामाजिक सुरक्षा, सब्सिडी देने का विकल्प भी बेहतर है।