@विनोद भगत
तीन दिन पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के एक बयान ने सूबे की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। बंशीधर भगत के बयान से पार्टी के मौजूदा विधायकों में बेचैनी बढ़ गयी है। उनके बयान से कई मौजूदा विधायकों को 2022 में अपना टिकट कटने का डर सताने लगा है। ऐसे में विधायक अब लामबंद होने शुरू हो गये हैं।
विधायकों की ताबड़तोड़ बैठक हो रही है। हालांकि बहाना अधिकारियों के व्यवहार का है पर मामला कुछ और ही निकल कर सामने आ रहा है। नाराज विधायक मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी नाराजगी से अवगत कराने पर आमादा हैं। वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध हैं। बता दें कि चुफाल उत्तर प्रदेश के जमाने से विधायक हैं। और सरकार में लगातार अपनी उपेक्षा से अब खुलकर सामने आ रहे हैं।
सूत्र तो यहाँ तक बता रहे हैं कि एक दर्जन से अधिक विधायक इस मामले पर जल्द ही प्रेस कांफ्रेंस भी कर सकते हैं। अपने अब तक के कार्यकाल में त्रिवेन्द्र सिंह रावत को अपने ही विधायकों की नाराजगी का पहली बार सामना करना पड़ रहा है। चुनाव से लगभग डेढ़ साल पूर्व भाजपा के प्रचंड बहुमत 57 विधायकों वाली सरकार पर अब संकट के बादल घिरने लगे हैं।
उधर विधायकों की नाराजगी को लेकर सरकार समर्थक लॉबी भी सक्रिय हो गयी है। नाराज विधायकों की मान मनौव्वल भी शुरू हो गई है। लेकिन अब देर हो गई है। लंबे समय से खाली पड़े मंत्रिमंडल के पदों पर पर नियुक्ति इस सरकार की सबसे बड़ी असफलता है। दावेदारों की संख्या को देखते हुए इन पदों पर सरकार फैसला नहीं ले पा रही है।
2022 का चुनाव भाजपा नहीं जीत पायेगी यह आशंका विधायकों को सताने लगी है। एक विधायक ने यहाँ तक मांग कर दी कि पेंशन बढ़ायी जाये। इस विधायक का कहना है कि जीत मुश्किल है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने प्रदेश अध्यक्ष के बयान को लेकर शब्द दूत से नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जब प्रदेश अध्यक्ष ही यह बात कह रहे हैं कि जीत के लिए मोदी के नाम से ज्यादा काम जरूरी है। तो इसका सीधा मतलब है कि जीत की राह कठिन है।
बहरहाल 57 विधायकों वाली उत्तराखंड की सरकार के लिए 2022 का चुनाव जीत पाना टेढ़ी खीर होगा। यह बात विपक्ष की भाजपा नेता ही कहें तो समझ लीजिए कि सरकार की परफॉर्मेंस पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
एक भाजपा नेता ने तो यहाँ तक कहा कि विरोधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के अलावा सरकार ने किया क्या है?