@विनोद भगत
हमर उत्तराखंडैकि सांस्कृतिक और लोक पर्व मनौणेकि पुराणि परंपरा छू। पुर साल भर में अनेक त्यार मनोणक् अवसर मिलों। आज घ्यू त्यार छू, जैके घ्यू संक्रांद लै कौनि । उसिक यौ त्यार औलगी और ओलगिया संक्रांद लै कैयी जां ।
आजक् दिन गोरूक घी खैयी जां। पहाड़ में कौनि कि आजक् दिन जो घ्यू नि खन उ अघिल जन्म में गनेल (घोंघा) बणौल ।
आजक् दिन मांशैकि दाव (उड़द) कै भिजैबेरि पिसनि और वीक पिट्ठी बणौनि। यौ पिट्ठी रोटि में भरनि। कचौडि जसि रवट बणैयीं जां। पहाड़ में जैके बेड़ू कौनि। बेड़ू में घ्यू चुपड़ बेरि खनिं। गोरूक दूधक घ्यू प्रयोग करनि। उसिक गोरुक दूधक प्रयोग करणक् वैज्ञानिक महत्व लै छू। गोरुक दूधक घ्यू स्मरण शक्ति, बुद्धि व ओज वर्धक मानि जांछ। वात पित्त बुखारक नाश लै करौं।
पुराण लोग आज लै घ्यू त्यारक महत्व जाणनि। पर आजैकि पीढ़ी पुराण परंपरागत त्यार और उनर सांस्कृतिक व लोक महत्व नि जाणनि।