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जंगली जानवरों को मारने की छूट देने वाले राज्यों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

@शब्द दूत ब्यूरो

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने फसलों को बचाने के लिए कुछ राज्यों में नीलगाय जैसे जंगली जानवरों को मारने की अनुमति दिए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर राज्यों को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे ने कहा कि इस मामले में हम जानना चाहते हैं कि वन विभाग क्या कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को केरल में कुछ दिनों पहले हुई हथिनी की मौत के मामले के साथ जोड़ा है।  

गौरतलब है कि सांसद अनुभव मोहंती ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और भारत में जंगली जानवरों की अंधाधुंध और नृशंस हत्या के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की है। अपनी याचिका में केंद्रपाड़ा के बीजेडी सांसद ने दलील दी है कि बिहार, हिमाचल प्रदेश और केरल जैसे कई राज्यों की सरकारों ने नीलगाय और जंगली सुअर जैसे जंगली जानवरों की हत्या को वित्तीय रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। दुर्भाग्य से राज्य सरकारों द्वारा पुरस्कृत होने का एक लोकप्रिय तरीका जंगलों में बम और जहर लगाकर जानवरों की हत्या करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बिहार, हिमाचल, केरल और अन्य राज्यों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि मनुष्य और पशुओं के बीच टकराव रोकने का उपाय ढूंढा जाना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस मामले को चिंता के साथ ले रहे हैं। क्या होगा अगर जंगली जानवर खेत की भूमि को नष्ट कर दें। फसलों को नष्ट करने वाले एक जंगली बाघ या दुष्ट हाथी को मारा जा सकता है या नहीं? हां, 50 नीलगायों को मारना न्यायसंगत नहीं है।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि रबर की गोलियां होती हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है, जिन्हें विस्फोटक के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है। याचिका में सुझाव दें और यह भी देखें कि क्या ऐसा हो रहा है कि जंगलों के अंदर जानवरों की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा है। मुख्य न्यायधीश ने कहा कि हमें एक समाधान की आवश्यकता है। केवल यह कहना कि उन्हें मत मारो कोई समाधान नहीं।

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