दिल्ली से वेद भदोला और उत्तराखंड से विनोद भगत की विशेष रिपोर्ट
दिल्ली में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और कुछ विधायकों का जमावड़ा एक बड़ा संकेत दे रहा है। नेतृत्व परिवर्तन को महज अफवाह करार देने वाले भी अब हैरत में हैं। इधर राज्य के दौरे पर आये केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक के बयान से भी हलचल मची हुई है।
डा निशंक ने नेतृत्व परिवर्तन की खबरों पर तो कुछ नहीं कहा पर यह कहकर कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देती है वह उसे स्वीकार करते हैं। लेकिन नेतृत्व परिवर्तन के सवाल को वह चतुराई से टाल गये। उधर खबर आ रही है नेतृत्व परिवर्तन को लेकर बीजेपी के सभी विधायकों को दिल्ली बुलाया था। परंतु सीएम के आवास पर मात्र 13 विधायक दो सांसद ही उनसे मिले हैं आज शाम तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी सतपाल महाराज या रमेश निशंक के मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है उच्च पद सूत्रों के मुताबिक आज देर शाम तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी दिल्ली में हलचल तेज हो गई है।
दरअसल राज्य में जब भी भाजपा की सरकार रही है तब तब बीच में मुख्यमंत्री बदले हैं। हालांकि मुख्यमंत्री बदलने से पार्टी को नुकसान ही हुआ है। पर मौजूदा स्थिति ऐसी बताई जा रही कि अगर मुख्यमंत्री नहीं बदला तो भी नुकसान झेलना पड़ सकता है। भाजपा हाईकमान पशोपेश में है।
हाईकमान के सामने उदाहरण है कि 2012 में निशंक के रहते पार्टी दुबारा सत्ता में नहीं लौटी से बाहर किया अब कहीं 2022 में त्रिवेंद्र इतिहास न दोहरायें। आज पार्टी को राज्य में जिताऊ नेता नजर नहीं आ रहा है। दिल्ली में पार्टी बगैर चेहरे के मोदी के बल पर चुुुनाव नहीं जीत पाई।
भगत सिंह कोश्यारी भुवन चंद्र खंडूरी जैसे नेताओं वाला आकर्षण मौजूदा किसी भाजपा नेता में नहीं दिखाई देता। इसका मतलब स्पष्ट है कि बीजेपी के लिए 2022 में अपनी बुरी स्थिति देखने की मजबूरी पैदा कर चुके हैं त्रिवेंद्र।
साल 2011 में जब रमेश चंद्र पोखरियाल मुख्यमंत्री थे तो भी यही कहा जा रहा था कि यदि निशंक ही मुख्यमंत्री बने रहे तो राज्य के उस समय के आगामी विधानसभा चुनाव 2012 में भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगेगा। जिसमें भाजपा दहाई के अंकों में भी मुश्किल ही आ पाएगी। ये सब इसीलिए था कि निशंक के खाते में 56 जल विद्युत परियोजना घोटाले, तीर्थनगरी ऋषिकेश का बहुचर्चित स्टर्डिया घोटाला, जिसमें मुख्य न्यायाधीश को सरकारी हेलीकॉप्टर तक में घुमाने को लेकर निशंक पर गंभीर आरोप लगे थे और सबसे बड़ा घोटाला कुंभ सुनने को मिला था। उस समय तो निशंक पर गुजरात के तबके मुख्यमंत्री रहे और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान उनका हेलीकॉप्टर न उतरने देने का भी आरोप लगा था। इन्हीं आरोपों की डिग्रियां लेकर निशंक के साथ भाजपा के लिए 2012 का चुनाव लड़ना खतरे से खाली नहीं था। तब 2011 में भाजपा की हाई कमान तिकड़ी ने निशंक को हटाकर फिर खंडूरी की ताजपोशी कर दी। तब ये चर्चा काफी जोरों पर रही कि आखिर निशंक ने क्या गलती की जो उन्हें हटाया गया फिर भी भाजपा ने खंडूरी के नेतृत्व में चुनाव लड़कर 31 सीटें जीती लेकिन खुद खंडूरी अपना चुनाव कोटद्वार से हार गए।
उस समय भाजपा की केंद्र में कमान नितिन गडकरी के पास थी, लेकिन नियंत्रण लाल कृष्ण आडवाणी के हाथ में था। आडवाणी ने तुरंत उसी लोकप्रिय चेहरे को याद किया, जिसे अपने लोकसभा चुनाव में राज्य से भाजपा को 5 सांसदों में से एक भी संसद नहीं दिया था, जिससे नाराज होकर उस समय भी आडवाणी ने खंडूरी को हटाकर निशंक को मुख्यमंत्री बना दिया था। तब आडवाणी के मुख्य सलाहकारों में राजनाथ सिंह भी हुआ करते थे। उस समय यही समझा गया कि खंडूरी की वजह से ही लोक सभा चुनाव में राज्य की 5 सीटों के ये हाल हुए। उस 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का एक भी सांसद चुनाव नहीं जीता था। जिसका खामियाजा खंडूरी को अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी चुकाकर भुगतना पड़ा।
आज भी वही 2011 वाली परिस्थितियां राज्य में पैदा हो गई है। भले ही सीएम त्रिवेंद्र पर भ्रष्टाचार के कोई गंभीर आरोप नहीं लगे हों पर राज्य में ऐसा कोई भी काम त्रिवेंद्र सरकार द्वारा होता हुआ दिखाई ही नहीं दे रहा है, जिससे त्रिवेंद्र की छवि में कोई सुधार हो या बढ़ोत्तरी। इसीलिए यहां एक सर्वे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की लोकप्रियता जीरो टॉलरेंस के बावजूद भी 5 पायदान नीचे गिरकर ऋण पांच पर पहुंच गई है। ये इसीलिए भी कि बगल के राज्य यूपी में योगी की सरकार की हलचलें यहां की सुस्त राजनीति पर काफी चोट कर रही है। वहां की योगी सरकार मीडिया में भी अच्छा स्थान पा रही है, जिससे योगी की लोकप्रियता यहां त्रिवेंद्र की छवि को काफी डैमेज दिखा रही है।
जिसे भाजपा की राजनीति में दस कदम आगे की सोच रखने वाले मोदी और शाह जैसे अग्रिम पंक्तियों के नेताओं के लिए काफी गंभीर विषय समझा जा सकता है। लेकिन उन नेताओं के लिए सोचने वाली ये बात भी आती है कि राज्य में आखिर त्रिवेंद्र का कौन बेहतरीन विकल्प हो सकता है? जिसे राज्य की कमान देकर वो भाजपा को बेहतरीन स्थिति में पहुंचा सके।
अब उन्हीं निशंक पर कैसे दांव खेलें, जिन्हें 2011 में हटा दिया गया था। बात सतपाल महाराज की हो रही है, लेकिन इनके अंदर की खूबी को जब कांग्रेस नहीं पहचान पाई तो मोदी शाह इन परिस्थितियों में कैसे मौका दें, जब भाजपा के अंदर कांग्रेस से आए नेताओं को ज्यादा तवज्जो देने का संघर्ष चलता हुआ आ रहा हो। इसीलिए कुछ साल पहले कांग्रेस से आए नेताओं को मुख्यमंत्री बनाना भी पार्टी के अंदर भितरघात पैदा कर सकता है। अब पुराने भाजपाइयों में आज के दौर में ऐसा कोई लोकप्रिय नेता नहीं है जो त्रिवेंद्र की भरपाई कर सके।