@विनोद भगत
साल 2019 मोदी सरकार के कई कड़े फैसलों के साथ विदा हो रहा है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले, जम्मू-कश्मीर से 370 अनुच्छेद की समाप्ति और पुलवामा जैसे दुखद हादसों तो बालाकोट एयर स्ट्राइक तथा नागरिकता संशोधन कानून के बाद देशभर में फैले बवाल के साथ खत्म हो रहा है।
2019 में इतने बड़े और कड़े फैसले लिये गये कि इतिहास में यह वर्ष भारत के लिये महत्वपूर्ण साबित होगा । सत्ता में वापसी के बाद मोदी सरकार के अनुच्छेद 370 खत्म करना और नागरिकता पर नया कानून बनाना सबसे ज्यादा दूरगामी प्रभाव डालने वाले फैसले रहे हैं। सत्ता में आने के दो महीने बाद ही मोदी सरकार ने संवैधानिक आदेश पारित कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने का साहसिक निर्णय लिया। एक झटके में राज्य का विशेष दर्जा खत्म हुआ और 31 अक्तूबर से जम्मू कश्मीर और लद्दाख नए केंद्रशासित प्रदेश बन गए। यहां एक बात तो गौर करने वाली है कि मोदी सरकार ने विरोध की परवाह किए बिना फैसले लेकर यह साबित करने की कोशिश की कि सरकार वोट के सियासी लाभ हानि से प्रभावित नहीं होगी। सात दशकों के कानून को एक झटके में खत्म करना एक साहसिक फैसला था। इस अनुच्छेद को लेकर पूरी दुनिया में मोदी सरकार ने अपने सशक्त फैसलों से चौंका दिया। इससे पहले पूरे देश में चाक चौबंद इंतजाम कर तमाम नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत ने पाकिस्तान और उसके साथ खड़े चीन की हर चाल नाकाम कर दी।
जम्मू-कश्मीर के खास दर्जे को समाप्त कर उसके विधिवत एकीकरण का फैसला गृह मंत्री अमित शाह के एजेंडे में सबसे ऊपर था। शाह ने इस पर अपनी मंशा जाहिर करने में भी संकोच नहीं किया। संसद में कश्मीर पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा था कि 370 संविधान का अस्थायी प्रावधान है। जुलाई में पत्रकारों से मुलाकात में भी उन्होंने इसका साफ संकेत दिया था। लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हरी झंडी के साथ इसकी तैयारी शुरू कर दी गई। शाह ने बतौर गृह मंत्री पहली बड़ी बैठक कश्मीर पर ही की।
पुलवामा हमले के बाद घाटी के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गई और अमरनाथ यात्रा रोककर बड़े पैमाने पर केंद्रीय बलों की तैनाती की गई और इसके बाद इतिहास बनते देर नहीं लगी। फैसले के चार महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद जम्मू कश्मीर में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत मुख्यधारा के तमाम नेता व अलगाववादी अभी भी या तो हिरासत में हैं या जेल में। जिन लोगों ने शांति कायम रखने के बॉन्ड पर दस्तखत किए हैं, उन्हें छोड़ा जा रहा है। कई हफ्तों बाद लैंडलाइन फोन और मोबाइल नेटवर्क तो बहाल हो गए लेकिन कारगिल को छोड़कर बाकी जगह इंटरनेट सेवाएं अब भी निलंबित हैं।
तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी और नागरिकता कानून पर मुहर ऐसे फैसले हैं, जो साबित करते हैं कि सरकार तय एजेंडे पर आगे बढ़ने को प्रतिबद्ध है। साल बीतते-बीतते राष्ट्रवाद की एक अलग परिभाषा तय करके केंद्र सरकार ने अपने समर्थक वर्ग की उम्मीदों का ग्राफ कई गुना बढ़ा दिया है। इसके आधार पर अब पीओके पर कब्जे की रणनीति को लेकर भी चर्चा होने लगी है।
संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित करवाकर सरकार ने अपने एक और कोर एजेंडे को पूरा किया। इसके जरिये पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होने वाले हिन्दू सहित छह अल्पसंख्यक समुदायों को नागरिकता का रास्ता साफ हो गया है। इस मुद्दे पर देश भर में विरोध और समर्थन के बीच सरकार अपने इरादे पर दृढ़ नजर आ रही है।
नागरिकता कानून पर सरकार के ठोस फैसला लेने के अंदाज ने साफ कर दिया है कि आगे शायद बहुत कुछ हलचल होनी बाकी है। सबकी निगाह एनआरसी और एनपीआर पर टिकी हैं जिस पर केंद्र और कई राज्य आमने-सामने हैं। नागरिकता संशोधन कानून से भेदभाव का आरोप लगाते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं और इन प्रदर्शनों के दौरान करीब दो दर्जन लोगों की मौत भी हो चुकी है।
सरकार का कहना है कि इस कानून के जरिये 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के चलते आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के सदस्यों को अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। इसमें देश के किसी नागरिक की नागरिकता छीने जाने का कोई प्रावधान नहीं है। विपक्ष की तरफ से नए कानून को लेकर कई आशंकाएं जताई जा रही हैं। साथ ही इसे वापस लेने की मांग भी की जा रही है। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि सरकार पीछे नहीं हटेगी।
इसी साल सात जनवरी को केंद्रीय कैबिनेट ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण वाले विधेयक को अपनी मंजूरी दी थी। अगले चार दिनों में संसद के दोनों सदनों ने इसे अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। 12 जनवरी को राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए और इसी दिन इसे अधिसूचित कर दिया गया। सरकार यह सभी वर्गों को समझाने में सफल रही कि इससे एससी-एसटी या पिछड़े वर्ग के आरक्षण पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला हुआ जो सबसे भीषण हमलों में से एक था। जैश-ए-मोहम्मद ने सीआरपीएफ की एक बस को निशाना बनाया, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए। जवाब में भारत ने 12 दिन बाद यानी 26 फरवरी को पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में आतंकी शिविरों पर बमबारी की। इसमें 200 से ज्यादा आतंकवादी मारे जाने का दावा किया गया। बालाकोट के बाद भारत की सीमा में घुसने की हिमाकत भी पाक को भारी पड़ी। विंग कमांडर वर्द्धमान अभिनंदन ने पाक के एफ-16 को मार गिराया। अभिनंदन को एलओसी पार पकड़ भी लिया गया लेकिन बाद में पाक को उन्हें छोड़ना पड़ा।
सरकार ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मिली एसपीजी सुरक्षा वापस लेने का निर्णय भी लिया। उन्हें अब सीआरपीएफ की जेड-प्लस सुरक्षा दी गई। इस फैसले के कुछ दिनों बाद गृह मंत्री ने संसद के दोनों सदनों से इससे जुड़े कानून को भी पारित करा लिया। नए कानून के तहत प्रधानमंत्री और उनके परिवार को ही एसपीजी सुरक्षा मिलेगी। पूर्व प्रधानमंत्री भी इसके दायरे में नहीं होंगे।
सरकार ने यूएपीए एक्ट में संशोधन किया। इसके तहत व्यक्ति विशेष को आतंकी घोषित किया जा सकेगा। नया यूएपीए कानून आतंकी गतिविधियों में लिप्त या उसे प्रोत्साहित करने वाले किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने का अधिकार देता है। पहले संगठनों को ही आतंकी घोषित करना संभव था। चार सितंबर को नए कानून के तहत दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, मौलाना मसूद अजहर और जकीउर रहमान लखवी को आतंकी घोषित किया।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सितंबर में कॉरपोरेट टैक्स की दरों में ऐतिहासिक कटौती की घोषणा की। पुरानी कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स दर को 30% से घटाकर 22% और नई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए यह दर 25% से घटाकर 15% कर दी गई।