@विनोद भगत (संपादक की अपनी बात)
कन्फ्यूजन शब्द इन दिनों देश में पैदा हो गया है या कर दिया गया है। अफसोस इस बात का है कि इस कन्फ्यूजन के चलते कई नागरिक मौत के शिकार हो गये हैं। नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजनशिप इन दो मुद्दों को लेकर देश में घालमेल चल रहा है।
सरकार कुछ कहती है लोग कुछ समझते हैं और पूरे देश में एक समुदाय विशेष को टारगेट बनाकर प्रदर्शन और समर्थन के बीच सब गड्ड-मड्ड हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस घालमेल के लिए विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पर दोषारोपण करते रहे।एकाएक स्थिति बदली जहाँ प्रधानमंत्री मोदी को आख़िरकार कहना पड़ता है कि पूरे देश में एन आर सी लागू करने की बात कभी नहीं कही। पर प्रधानमंत्री की यह बात गृहमंत्री अमित शाह के वक्तव्य के बिल्कुल उलट थी। जिसमें अमित शाह ने कहा था कि एन आर सी पूरे देश में लागू होगी। यहाँ से कन्फ्यूजन की शुरुआत हो गई।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के परस्पर विरोधाभासी बयानों ने एक अजीब सी स्थिति बना दी। हालांकि बाद में में अमित शाह ने भी एन आरसी पूरे देश में लागू करने की बात पर गोलमोल बयान देकर इस कन्फ्यूजन को और बढ़ा दिया।वहीं खास बात यह है कि एन आर सी और सीएए को लेकर एक समुदाय विशेष को टारगेट करने से भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर चोट पड़ती देख और विश्व भर इसके परिणाम स्वरूप होने वाले संभावित प्रतिक्रिया के मद्देनजर सरकार के मंत्रियों को कहना पड़ा कि किसी भी भारतीय मुस्लिम को इन कानूनों के तहत अपनी नागरिकता नहीं गंवानी पड़ेगी। यहाँ तक केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो एक निजी चैनल पर कहा कि भारत की उन्नति में मुसलमानों का योगदान उल्लेखनीय रहा है।
दरअसल देशभर में मचे बवाल के बाद मोदी सरकार को देश के अल्पसंख्यकों को समझाने के लिए अपने पूर्व के कठोर बयानों से पलटना पड़ा। यहाँ तक कि विरोध करने वाले लोगों को उकसाने में कांग्रेस का हाथ कहने वाले प्रधानमंत्री मोदी को बयान देना पड़ा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नागरिकता कानून की वकालत अपने कार्यकाल में की थी। यही नहीं भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1971 में दिये गये एक बयान को भी उद्धृत किया गया। प्रधानमंत्री मोदी के इन खुलासों के बाद यह बात बेमानी साबित हो जाती है कि कांग्रेस इन कानूनों के विरोध प्रदर्शन को हवा दे रही है।
गृहमंत्री अमित शाह ने एक निजी चैनल पर साफ शब्दों में कहा जब उनसे पूछा गया कि देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों की वजह क्या कहीं कोई कमी तो नहीं। अमित शाह ने कहा कि हां कमी तो रही होगी। पर सीधे सरकार की कमी को उन्होंने नहीं स्वीकारा।हालांकि सबसे बड़ी कमी यह रही कि सीएए के पास होने के बाद इसका समर्थन करने वालों ने एक समुदाय विशेष के विरोध में इस कानून को लेकर खुशी जाहिर की। जबकि होना यह चाहिए था कि संयमित रुप से देश की सरकार द्वारा पास कानून का समर्थन किया जाता। सोशल मीडिया ने इसमें खलनायक की भूमिका निभाई। सरकार के इस कदम की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने समय रहते इंटरनेट पर रोक लगा दी।
लेकिन केंद्र सरकार की इसलिये आलोचना होनी चाहिए कि इस कानून के बाद हो रहे विरोध प्रदर्शनों के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहरा कर इस पर राजनैतिक रोटियां सेंकनी चाही हालांकि देर में सरकार या भाजपा को यह समझ में आया कि अल्पसंख्यक समुदाय को समझाया जाय। यदि कानून बनाने की प्रक्रिया के दौरान ही सरकार और भाजपा संगठन की यह कोशिश रहती तो संभवत ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह इतना तो समझते हैं कि विपक्ष में रहकर विरोध किया जाता है। लंबे समय तक विपक्ष में रहने का उन्हें भी तो अनुभव है।