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शख्सियत काशीपुर : एक कवि जो सीवर से मल जल से हानिकारक गैस अलग करने की तकनीक का आविष्कारक, पूरे विश्व में एकमात्र व्यक्ति अमेरिका ने भी जिसका लोहा माना

शिवरत्न अग्रवाल

@विनोद भगत

मां तुम दुर्लभ 

मां तुम कोमल कमल, मां तुम निर्मल

आ जाओ न! फिर एक बार

मां के बाद का अतीत” एक काव्य संग्रह के रचयिता शिवरत्न अग्रवाल के इन शब्दों में मां के न रहने पर पुत्र की कातरता और मां के बगैर उत्पन्न शून्य से उपजी पीड़ा प्रदर्शित हो रही है। कवि शिवरत्न अग्रवाल के 76 वर्ष के संघर्षों से भरे जीवन में उन्होंने जो भी भोगा उसे कविता के रूप में व्यक्त किया है। ढाई साल की उम्र में मां को खोने की पीड़ा सहते हुए शिवरत्न जीवन भर मां की न मिल सकी ममता को तलाशते रहे। शिवरत्न अग्रवाल के ह्रदय की पीड़ा काव्य संग्रह में परिलक्षित हुई है।

कोमल और संवेदनशील भावनाओं को समेटे हुए शिवरत्न अग्रवाल ने सरकारी नौकरी सिर्फ इसलिये छोड़ दी कि उन्हें भ्रष्टाचार से सख्त नफरत थी। पर जीवन यापन के लिए उन्होंने सीमेंट और कंक्रीट की कठोरता के साथ काम करना शुरू किया और ठेकेदारी के व्यवसाय में अपना भाग्य आजमाया। इस क्षेत्र में उन्हें सफलता मिली। कविता के साथ उन्होंने ठेकेदारी को महज आमदनी का साधन नहीं बनाया। बल्कि शिवरत्न ने इस क्षेत्र में कुछ नया करने का सोचा। चूंकि वह शोध प्रवृत्ति के थे इसलिए घरेलू और व्यवसायिक समस्याओं के बीच उन्होंने समाज और पर्यावरण संवर्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया।

शब्दों के चितेरे शिवरत्न ने घरों से निकलने वाले मल मूत्र के निस्तारण का नया रास्ता निकाला। उन्होंने डी सेंट्रीलाइजेशन एंड डाइजेशन एवर क्लीन आर सी सी होलो पाइप टैंक टैक्नालाजी के आधार पर सीवर में जमा होने वाले मल-जल से शुद्ध पानी और हानिकारक गैसों को अलग करने में सफल रहे। मल जल पर प्रक्रिया के बाद प्लांट से केवल नाइट्रोजन गैस वायुमंडल में छोड़ी जाती हैं। जिसका कोई विपरीत प्रभाव पर्यावरण पर नहीं पड़ता।

काशीपुर के गौरी बिहार निवासी शिवरत्न अग्रवाल समूचे विश्व में पहले व्यक्ति हैं जो इस अनोखी तकनीक पर काम कर रहे हैं। शिवरत्न अग्रवाल को उनकी इस तकनीक के लिए आईआईटी दिल्ली ने गैस फोरम का आजीवन सदस्य मनोनीत किया है। शिवरत्न अग्रवाल के देश के कई शहरों में उनकी इस तकनीक पर प्लांट स्थापित किए जा चुके हैं। शब्द दूत से एक संक्षिप्त वार्ता में शिवरत्न अग्रवाल ने बताया कि उनकी इस तकनीक के लिए उन्हें नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा के शुद्धिकरण के लिए भी आमंत्रित किया जा चुका है। इतना ही नहीं अमेरिका तक ने शिवरत्न अग्रवाल की इस तकनीक को कई शहरों में अपनाया।

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