@फैसल खान
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सूचना का कानून (आरटीआई) मामले पर अहम टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि क्या आरटीआई ऐक्ट किसी का व्यवसाय भी हो सकता है? ऐसे लोग, जिनका सूचना के विषय से कोई लेना-देना नहीं है, वे सूचना के लिए आरटीआई डाल रहे हैं। कानून का उद्देश्य था कि लोगों को वह सूचनाएं मिलें, जिनसे वे प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन अब हर कोई आरटीआई लगा रहा, चाहे उसे अधिकार हो या नहीं। अधिकार का कोई महत्व नहीं रह गया है। अदालत ने संकेत दिया कि वह इस मामले में दिशा-निर्देश बना सकता है।
अदालत ने कहा कि हम देख रहे हैं कि लोग अपने लेटरहेड पर खुद को आईटीआई एक्सपर्ट लिख रहे हैं और ऐसे लोग जिनका कोई लेना-देना नहीं है तथा जिनका विषय से कोई संबंध नहीं है वह सूचनाओं के लिए याचिकाएं लगा रहे हैं। देखा जाए तो ये बुनियादी रूप से आईपीसी की धमकी (धारा 506) है। यानी धमकी देना है। हालत ये हो गई है कि अब कोई फैसला नहीं लेना चाहता, क्योंकि उसे डर है कि उसके खिलाफ आर्टीआई लगा दी जाएगी।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि मुंबई में मुझे लोगों ने बताया कि सूचना कानून के डर के कारण मंत्रालय में काम को वास्तिवक रूप से लकवा मार गया है। इस पर अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि जो भ्रष्ट हैं उन्हें ही डरने की जरूरत है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हर कोई व्यक्ति गैरकानूनी काम नहीं कर रहा है। हम कानून के या सूचनाओं के प्रवाह के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन क्या ये इस तरह से जारी रह सकता है? ये अप्रतिबंधित अधिकार, जिसमें कोई भी किसी से कुछ भी मांग सकता है? यहां तक कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अजिर्यां लगाई जा रही हैं। लोग आपसी खुन्नस निकाल रहे हैं। इस मामले में कुछ दिशा-निर्देंश होने ही चाहिए।