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काशीपुर :पौराणिक महत्व के महाभारत काल का द्रोणासागर टीला उपेक्षा का शिकार, देखिए वीडियो

@शब्द दूत ब्यूरो (13 दिसंबर 2025)

काशीपुर की धरती केवल औद्योगिक या व्यापारिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके गर्भ में महाभारत कालीन सभ्यता की अमूल्य धरोहरें समाहित हैं। इन्हीं धरोहरों में एक है द्रोणासागर टीला, जो अपने भीतर गौरवशाली पौराणिक परंपरा और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए है। यह वही स्थल माना जाता है जहां गुरू द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को शस्त्र विद्या की शिक्षा दी थी। कल्पना कीजिए, जिस भूमि पर महाभारत के नायकों ने अस्त्र-शस्त्र साधना की हो, उसका महत्व केवल स्थानीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो सकता है।

दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इतना महत्वपूर्ण पुरातात्विक और पौराणिक स्थल आज सरकारी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। समय-समय पर हुई खुदाइयों में यहां से महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष सामने आए हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि द्रोणासागर टीला केवल कथा या किंवदंती नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास है। इसके बावजूद न तो इसे संरक्षित करने की ठोस पहल हुई और न ही इसे पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने के गंभीर प्रयास किए गए।

विभिन्न सरकारों ने इस स्थल के विकास और संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े दावे जरूर किए, लेकिन वे दावे कागजों से बाहर कभी हकीकत का रूप नहीं ले पाए। यदि इच्छाशक्ति दिखाई जाती, तो द्रोणासागर टीला काशीपुर ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना सकता था। यहां एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पुरातात्विक पर्यटन केंद्र विकसित किया जा सकता था, जिससे इतिहास, संस्कृति और रोजगार—तीनों को नई दिशा मिलती।

आज स्थिति यह है कि जहां कभी ज्ञान, पराक्रम और संस्कृति का केंद्र रहा होगा, वही द्रोणासागर टीला जंगली जानवरों, विशेषकर तेंदुओं का आश्रय स्थल बनता जा रहा है। पर्यटकों की चहल-पहल, शोधार्थियों की आवाजाही और श्रद्धालुओं की आस्था के स्थान पर अब सन्नाटा, भय और वीरानी पसरी हुई है। इसके आसपास रहने वाले लोग दहशत में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं, जबकि यह स्थान सांस्कृतिक चेतना और पर्यटन का केंद्र होना चाहिए था।

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार कभी इस ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के स्थल की सुध लेगी? क्या द्रोणासागर टीले को उसका खोया हुआ गौरव वापस मिलेगा, या यह यूं ही उपेक्षा और जंगल में तब्दील होकर इतिहास की एक और उपेक्षित कहानी बन जाएगा? अब समय आ गया है कि केवल दावे नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस गौरवशाली विरासत से जुड़ सकें और काशीपुर की पहचान उसके इतिहास के साथ विश्व पटल पर स्थापित हो सके।

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