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उपलब्धि :अमेरिका के रिसर्च पेपर में शामिल हुई पाराशर गौड़ की गढ़वाली कविता ‘उखेल’, गढ़वाली भाषा के लिए गौरव का क्षण

@शब्द दूत ब्यूरो (09 नवंबर 2025)

गढ़वाली भाषा और संस्कृति के लिए यह अत्यंत गर्व का अवसर है। टोरंटो (कनाडा) में रहने वाले प्रसिद्ध गढ़वाली कवि, नाटककार और फिल्म निर्माता पराशर गौर की प्रसिद्ध कविता ‘उखेल’ को अमेरिका के प्रोफेसर ल्यूक व्हिटमोर (Luke Whitmore) ने अपने रिसर्च पेपर में शामिल किया है।

प्रोफेसर व्हिटमोर का यह शोधपत्र — “Dance the Angry God of the Politicians: Re-imagining the Poetics of Possession in Toronto” — उत्तर अमेरिका में हिन्दू धर्म, उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और प्रवासी गढ़वाली समुदाय पर आधारित है। इसमें उन्होंने पराशर गौर की गढ़वाली कविता ‘उखेल’ का विशेष उल्लेख करते हुए उसकी विषयवस्तु और सांस्कृतिक महत्त्व पर विस्तार से चर्चा की है।

यह कविता गौर की गढ़वाली कविता-संग्रह ‘उकाल-उंदार’ (Ascent–Descent) से ली गई है, जो 2006 में प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह में गौर ने उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर गहराई से प्रकाश डाला है। कविता ‘उखेल’ में उन्होंने पारंपरिक गढ़वाली ‘झाड़-फूंक’ (healing ritual) की संरचना के माध्यम से समाज और राजनीति के बिखराव, और पारंपरिक पहचान को बचाने के संघर्ष को रूपक के रूप में प्रस्तुत किया है।

प्रोफेसर व्हिटमोर ने इसे “a literary attempt to treat the poetics of possession as an interpretive resource for Canadian Garhwali Hindus” बताया है — यानी यह कविता प्रवासी गढ़वाली समाज के लिए अपनी जड़ों और सांस्कृतिक शक्ति को पुनः खोजने का माध्यम बनती है।

पराशर गौर ने इस उपलब्धि पर कहा —

> “मेरी यह कविता ‘उखेल’, जिसे मेरी पुस्तक ‘उकाल–उंदार’ में शामिल किया गया था, को अमेरिका में रिसर्च पेपर में स्थान मिलना मेरी ही नहीं, बल्कि पूरी गढ़वाली भाषा के लिए गर्व का दिन है। श्री ल्यूक व्हिटमोर ने न केवल मेरी रचना को सराहा, बल्कि गढ़वाली में लिखी जा रही सृजनशीलता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुँचाने का प्रयास किया है। मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।”

ज्ञात हो कि पराशर गौर गढ़वाली सिनेमा की पहली फिल्म ‘जगवाल’ के निर्माता भी हैं और गढ़वाली साहित्य एवं रंगमंच को नई दिशा देने वाले अग्रणी रचनाकारों में गिने जाते हैं।

यह उपलब्धि न केवल पराशर गौर की व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि गढ़वाली भाषा, साहित्य और संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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