@विनोद भगत
काशीपुर कभी राष्ट्रीय राजनीति का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। उस दौर में यहां की पहचान केवल औद्योगिक या शैक्षणिक संस्थानों से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से भी जुड़ी थी। उस समय के दिग्गज नेता स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी ने इस नगर को देश ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर भी प्रतिष्ठित किया। तिवारी के नेतृत्व में काशीपुर ने विकास की ऊँचाइयाँ छुईं और कांग्रेस के बैनर तले यह नगर राजनीतिक, औद्योगिक और शैक्षणिक रूप से निरंतर आगे बढ़ता गया।
लेकिन समय के साथ मानो काशीपुर की चमक पर ग्रहण लग गया। राजनीतिक समीकरण बदले, कांग्रेस बिखरती चली गई और भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व के बावजूद स्थानीय नेतृत्व शहर को गति नहीं दे सका। जो नेता सत्ता के केंद्र में थे, वे विकास की बजाय व्यक्तिगत हितों के इर्द-गिर्द घूमते रहे। जनता के मुद्दे भाषणों और कागजी योजनाओं तक सिमट गए। कांग्रेस के स्थानीय नेता आपसी खींचतान में उलझे रहे और शहर की पुरानी रौनक फीकी पड़ती चली गई।
मगर अब हालात बदलते दिख रहे हैं। काशीपुर की पहचान फिर से लौटने की ओर है—और इस बार यह कहानी कांग्रेस नहीं, बल्कि भाजपा के नेतृत्व में लिखी जा रही है। नगर के महापौर दीपक बाली ने जिस तेजी से शहर को संवारने का अभियान शुरू किया है, उसने उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। बाली की कार्यशैली बताती है कि वे पारंपरिक महापौर की परिभाषा से कहीं आगे हैं। उनका विजन सिर्फ नालियों और सड़कों तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण नगर के रूपांतरण तक फैला हुआ है।
महापौर बनने के बाद दीपक बाली ने शहर के विकास को अपने मिशन का केंद्र बना लिया है। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपनी नजदीकी का उपयोग व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर काशीपुर के हित में किया है। यही कारण है कि नगर के लिए जो योजनाएँ पहले सिर्फ कागजों में रहती थीं, अब वे धरातल पर उतरती नजर आ रही हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का महापौर बाली को मिल रहा सहयोग भी इस बदलाव की बड़ी वजह है। धामी और बाली की समन्वित कार्यशैली ने काशीपुर के पुराने निवासियों को 1970 से 1990 के दशक के उस दौर की याद दिला दी है, जब यहां वाकई “डबल इंजन” सरकार का असर दिखता था। फर्क सिर्फ इतना है कि आज का डबल इंजन आधुनिक तकनीक और नए विजन से संचालित है।
काशीपुर एक बार फिर विकास की मुख्यधारा में लौटने की राह पर है। शहर के सौंदर्यीकरण से लेकर अधोसंरचना, औद्योगिक विकास और नागरिक सुविधाओं तक—हर क्षेत्र में नई गति महसूस की जा रही है। यह दौर केवल राजनीतिक उपलब्धियों का नहीं, बल्कि उस खोए गौरव को पुनः प्राप्त करने का प्रतीक बन गया है, जिसने कभी काशीपुर को देश की राजनीतिक और औद्योगिक मानचित्र पर अलग पहचान दी थी।
ऐसा लगता है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है—फर्क बस इतना है कि इस बार काशीपुर का पुनर्जागरण आधुनिक सोच, प्रगतिशील दृष्टिकोण और कर्मठ नेतृत्व के संग हो रहा है। शहर की नई तस्वीर बन रही है, और लोग उम्मीद से देख रहे हैं कि आने वाले समय में काशीपुर फिर से “उत्तराखंड का गौरव” कहलाएगा।
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