@शब्द दूत ब्यूरो (02 नवंबर 2025)
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में शिक्षा का एक अनोखा अध्याय रच रहे हैं विद्या भारती के सरस्वती शिशु मंदिर। बिना किसी सरकारी सहायता के संचालित ये विद्यालय राष्ट्रवाद, संस्कार और सनातन संस्कृति की शिक्षा के साथ आधुनिक ज्ञान का समन्वय कर रहे हैं।
क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में ऐसे सरस्वती शिशु मंदिरों की संख्या 562 है? सुदूर सीमांत से लेकर पहाड़ के दुर्गम इलाकों तक—जहां सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं, वहां ये शिशु मंदिर अपने सीमित संसाधनों में शिक्षा का दीप जलाए हुए हैं।
देश का पहला गांव माणा, जो भारत की आखिरी सीमा पर स्थित है, वहां भी सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चे संस्कारों के साथ पढ़ते दिखाई देते हैं। सीमांत नगर धारचूला के विद्यालय में भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल के विद्यार्थी भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। वहीं धराली, थराली, पीपलकोटी, लोहाघाट, ग्वालदम और मुनस्यारी जैसे क्षेत्रों में भी ये विद्यालय सक्रिय हैं — जहां कभी प्राकृतिक आपदाओं ने जनजीवन को झकझोरा, वहां भी शिशु मंदिरों की शिक्षण ज्योति नहीं बुझी।
विद्या भारती, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार परिवार का अंग है, देशभर में इन विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा और संस्कार का अभियान चला रही है। उत्तराखंड में इन विद्यालयों में वर्तमान में 1,14,719 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यह संख्या अपने आप में चौंकाने वाली है, क्योंकि ये विद्यालय सरकारी सहायता के बिना भी निरंतर बढ़ रहे हैं और कई जगह स्मार्ट क्लास तक में परिवर्तित हो चुके हैं।
नैनीताल के पास वीरभट्टी स्थित पार्वती प्रेमा जगाती सरस्वती विहार आवासीय विद्यालय में लगभग 800 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों से आए छात्र भी गुरुकुल परंपरा और सीबीएसई पाठ्यक्रम के मिश्रण के साथ शिक्षा ले रहे हैं। वहीं पिथौरागढ़ जिले के मुवानी में शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार विद्यालय भी इसी ध्येय के साथ कार्यरत है, जिसका लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने किया था।
विद्यालय के प्रबंधक श्याम अग्रवाल के अनुसार, उत्तराखंड में भारतीय संस्कृति पर आधारित एक आधुनिक विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना भी गतिमान है।
इन विद्यालयों की सबसे बड़ी विशेषता है—जनसहयोग। कोई कंप्यूटर दान करता है, कोई कमरे बनवाता है, कोई गरीब बच्चों के लिए किताबें या ड्रेस दिलवाता है। कहीं उद्योगपति सीएसआर फंड से स्मार्ट क्लास बनवाते हैं तो कहीं कोई संस्था स्कूल बस उपलब्ध कराती है।
इन विद्यालयों का संचालन विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के मार्गदर्शन में होता है, जबकि भारतीय शिक्षा समिति, उत्तराखंड विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर विशेष ध्यान देती है।
प्रदेश निरीक्षक डा. विजय पाल सिंह के अनुसार, “हमारे शिशु मंदिर विद्यार्थियों को भारतीयता से जोड़ते हैं। यहां राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ शिक्षा दी जाती है। देवभूमि उत्तराखंड सनातन की जननी है, और हम यही संस्कार अपने गुरुओं के माध्यम से विद्यार्थियों तक पहुंचा रहे हैं।”
हर साल टॉप लिस्ट में शामिल रहते विद्यार्थी
राज्य के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं में हर साल टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में सरस्वती शिशु मंदिर के विद्यार्थियों का नाम शामिल होता है। चाहे बोर्ड परीक्षा हो या प्रतियोगी परीक्षा—विद्या भारती के इन मंदिरों से निकले विद्यार्थी उत्तराखंड की शिक्षा की पहचान बन चुके हैं।
सरस्वती शिशु मंदिर — जहां शिक्षा बनती है संस्कार, और ज्ञान बनता है राष्ट्र सेवा का माध्यम।
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