@शब्द दूत ब्यूरो (16 अक्टूबर 2025)
काशीपुर। दीवाली के अवसर पर शब्द दूत ने काशीपुर निवासी वरिष्ठ नागरिक श्रीमती प्रेमलता शर्मा से बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने अपने बचपन की दिवाली की यादें साझा करते हुए बताया कि पहले त्योहार सादगी, अपनापन और मिलजुल कर मनाने की भावना से भरे होते थे, जबकि आज के समय में त्यौहार अधिकतर दिखावे और खर्चे का प्रतीक बन गए हैं।
प्रेमलता शर्मा ने कहा, “हमारे समय में लाइटें नहीं होती थीं। बच्चे मोमबत्तियां और कागज की झालरें बनाते थे। कंदीलें खुद तैयार की जाती थीं, अब तो सब बाजार से रेडीमेड मिल जाता है। पहले दिवाली में प्यार था, अब पैसे का रुतबा ज्यादा है।”
उन्होंने बताया कि बचपन की दिवाली में पटाखों की जगह सादगी और मिठास थी — “पटाखे बहुत कम होते थे, मिठाई घर में बनती थी। मीठी पूरी और खीर बनाकर सब मिलकर खाते थे। अब सब कुछ बाजार से आता है।”
परिवार और पड़ोस के रिश्तों में आए बदलाव पर उन्होंने कहा, “पहले दिवाली लोगों को जोड़ती थी, झगड़े भी खत्म कर देती थी। लोग एक थाली में खाते थे, एक साथ दीप जलाते थे। अब तो पैसों की बराबरी में रिश्तों की मिठास खो गई है।”
नई पीढ़ी के त्यौहार मनाने के ढंग पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “पहले बच्चे बड़ों की बात मानते थे, अब बड़े बच्चों की बात मानते हैं। हम भी बच्चों के साथ रम जाते हैं, क्योंकि अब वक्त बच्चों का है।”
महंगाई पर उन्होंने व्यंग्य भरे लहजे में कहा, “पहले जो चीज ₹1 में आती थी, अब ₹100 में आती है। पहले गरीब और अमीर एक जैसे त्यौहार मनाते थे, अब त्योहार नोटों वालों का रह गया है।”
अंत में उन्होंने कहा कि “पहले की दिवाली सस्ती थी पर सच्ची थी। अब की दिवाली चमकदार है पर भावनाओं से खाली होती जा रही है। त्योहार इंसान की इज्जत का था, अब पैसे की इज्जत का बन गया है।”
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