@शब्द दूत ब्यूरो (11 अक्टूबर 2025)
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड की पवित्र भूमि पर लगातार बढ़ रहे अवैध कब्जे अब राज्य की डेमोग्राफी के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। राज्य के चारों मैदानी जिलों — देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर — में हजारों हेक्टेयर सरकारी भूमि पर बाहरी लोगों द्वारा कब्जा किए जाने के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि “देवभूमि का सनातन स्वरूप किसी भी हाल में बिगड़ने नहीं देंगे। अवैध कब्जाधारियों को स्वयं हटना होगा, अन्यथा बुलडोजर कार्रवाई तय है।”
गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान — “घुसपैठिए तय नहीं करेंगे कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा” — की गूंज भी अब उत्तराखंड की राजनीति में सुनाई दे रही है। यह बयान सीधे तौर पर उन क्षेत्रों पर असर डाल रहा है जहां बाहरी मुस्लिम आबादी तेजी से बस रही है और स्थानीय हिंदू जनसंख्या का पलायन जारी है।
राज्य में डेमोग्राफिक बदलाव का मुद्दा अब राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बन चुका है। सीएम धामी के नेतृत्व में सरकार ने अतिक्रमण हटाने के कई अभियान चलाए हैं, लेकिन जिला स्तर पर प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक दबाव के चलते इन कार्रवाइयों की रफ्तार धीमी है। हरिद्वार जैसी धार्मिक नगरी में तो “हरी चादर” तेजी से फैलती जा रही है, जिससे संत समाज और सनातनी संगठन गहरी चिंता में हैं।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 3,500 एकड़ भूमि अतिक्रमण से मुक्त करवाई जा चुकी है, लेकिन 8,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अब भी अवैध कब्जे बने हुए हैं। वहीं, रेलवे, जलविद्युत, सिंचाई और राजस्व विभाग की करोड़ों रुपये मूल्य की जमीनें भी कब्जाधारियों के नियंत्रण में हैं। हल्द्वानी, रामनगर, और देहरादून में रेलवे की जमीनों पर चल रहे कब्जे के मामले अदालतों में विचाराधीन हैं।
वन भूमि पर हुए अतिक्रमणों को लेकर कराए गए सरकारी सर्वे में सामने आया है कि बाहरी राज्यों — उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल — से आए लोगों ने 11,814 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा किया हुआ है। इनमें बड़ी संख्या में वे लोग शामिल हैं जो 2005 के बाद खनन कार्यों के बहाने यहां आकर स्थायी रूप से बस गए।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा है कि “हम नदियों, जंगलों और सरकारी भूमि को कब्जे से मुक्त कराने का अभियान चला रहे हैं। देवभूमि हमारे आराध्य देवी-देवताओं का वास है, इसका स्वरूप किसी भी कीमत पर बिगड़ने नहीं दिया जाएगा।”
धामी सरकार ने इस दिशा में सख्त कानून बनाने का प्रस्ताव भी पास किया है, जिसके तहत सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही, जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी राजनीतिक या सामाजिक दबाव में आए बिना अवैध रूप से बसे लोगों को बेदखल किया जाए।
राज्य के कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में मुस्लिम गुर्जरों द्वारा कब्जाई गई जमीनें भी अब कार्रवाई के दायरे में हैं। वन विभाग अब तक 3,000 एकड़ से अधिक भूमि को मुक्त करा चुका है। वहीं, धार्मिक चिन्हों की आड़ में बने 594 अवैध धार्मिक ढांचे, जिनमें 552 मज़ारे शामिल हैं, को भी ध्वस्त किया जा चुका है।
शत्रु संपत्ति पर भी सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। नैनीताल के होटल मेट्रोपॉल समेत कई करोड़ों की संपत्तियां सरकार ने कब्जाधारियों से मुक्त करवाई हैं।
सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के तहत भी राज्य सरकार धार्मिक और पर्यावरणीय अतिक्रमणों को लेकर कार्रवाई कर रही है। न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सरकारी भूमि पर कोई भी नया धार्मिक ढांचा बिना अनुमति नहीं बनाया जा सकता।
राज्य सरकार अब “अतिक्रमण मुक्त देवभूमि” अभियान को मिशन मोड में आगे बढ़ा रही है। सीएम धामी ने चेतावनी दी है कि जो भी लोग अवैध कब्जे में शामिल पाए जाएंगे, उनके खिलाफ गैंगस्टर और रासुका जैसे कठोर कानूनों के तहत भी कार्रवाई की जाएगी।
मुख्य तथ्य:
राज्य में 11,814 हेक्टेयर वन भूमि पर अवैध कब्जे।
अब तक 3,500 एकड़ भूमि मुक्त करवाई जा चुकी।
8,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि अब भी कब्जाधारियों के पास।
594 धार्मिक अतिक्रमण हटाए गए, जिनमें 552 मज़ारे शामिल।
कैबिनेट ने 10 साल की सजा वाले कानून का प्रस्ताव मंजूर किया।
धामी सरकार का यह अभियान न केवल अवैध कब्जों को समाप्त करने की दिशा में कदम है, बल्कि “देवभूमि के सनातन स्वरूप” की रक्षा का एक सशक्त राजनीतिक संदेश भी देता है।
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